जय माँ जय माँ
माँ आनंदमयी की कृपा
हमारे ग्रुप में ४ वर्ष की सरगम से लेकर ४५ वर्ष का मैं था.आज ३५ वर्ष बाद कोई आश्चर्य नहीं क़ी ह्म में से किसी को भी याद नहीं है क़ी उन ४०-४५ मिनिटों में ,जब ह्म भजन गा रहे थे तब ह्मारे आमने सामने या आगे पीछे क्या हो रहा था .अतीत के धूमिल पृष्ठ पलट कर देखता हूँ.
अपनी भजनान्जिली अर्पित करने से पूर्व हमने केवल इतना ही देखा था :
अति सुगंधमय उज्ज्वल पुष्पों से सुसज्जित उच्च सिंघासन पर बिराजीं ,दूध से भी धवल परिधान धारण किये श्री श्री माँ का दिव्य विग्रह.माँ की मुस्कुराती हुई मनमोहिनी छवि.और सोने के फ्रेम में से ,ज्योति शिखा सी दमकतीं कृपा लुटाती उनकी दो बड़ी बड़ी आँखें तथा श्री माँ की वह नजर जो जिधर घूमतीं उधर प्रेमामृत की बौछार हो जाती. हमारे जीवन का यह पहला अवसर था जब ह्म किसी ऎसी सिद्ध विभूति को इतने निकट से देख पा रहे थे. ह्म रोमांचित थे, हमे एक अति विशेष आत्मिक आनंद का रसास्वादन हो रहा था.
ह्म एक के बाद एक ,मात्रु वन्दन के पद गा रहे थे. अगला पद हमारी छोटी बहन मधू चंद्रा ने शुरू किया. .धीरे धीरे ह्म सब और ह्मारे साथ साथ पूरा पंडाल ही गा उठा
जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय। जगजननी ..
तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥ जगजननी ..
आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥ जगजननी ..
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥ जगजननी ..
तू विधि वधू, रमा तू , उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥ जगजननी ..
जग जननी जय जय ,माँ जग जननी जय जय
प्रियजन. ह्म सब गा रहे थे .सारा पंडाल माँ की जयकार से गूँज रहा था .जैसा बता चुका हूँ,मेरी आँखें बंद थीं,बंद ही रहीं जब तक माँ बोलीं नहीं.
अभी अनेक भजन हैं जो हमने उस शाम गाये थे लेकिन मैं आपको सब नहीं सुना रहा हूँ .आपकी तरह मैं भी बेताब हूँ माँ का अमोलक प्रवचन सुनने सुनाने को, कल कहूंगा.
निवेदक:: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
अति सुगंधमय उज्ज्वल पुष्पों से सुसज्जित उच्च सिंघासन पर बिराजीं ,दूध से भी धवल परिधान धारण किये श्री श्री माँ का दिव्य विग्रह.माँ की मुस्कुराती हुई मनमोहिनी छवि.और सोने के फ्रेम में से ,ज्योति शिखा सी दमकतीं कृपा लुटाती उनकी दो बड़ी बड़ी आँखें तथा श्री माँ की वह नजर जो जिधर घूमतीं उधर प्रेमामृत की बौछार हो जाती. हमारे जीवन का यह पहला अवसर था जब ह्म किसी ऎसी सिद्ध विभूति को इतने निकट से देख पा रहे थे. ह्म रोमांचित थे, हमे एक अति विशेष आत्मिक आनंद का रसास्वादन हो रहा था.
ह्म एक के बाद एक ,मात्रु वन्दन के पद गा रहे थे. अगला पद हमारी छोटी बहन मधू चंद्रा ने शुरू किया. .धीरे धीरे ह्म सब और ह्मारे साथ साथ पूरा पंडाल ही गा उठा
जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय। जगजननी ..
तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥ जगजननी ..
आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥ जगजननी ..
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥ जगजननी ..
तू विधि वधू, रमा तू , उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥ जगजननी ..
जग जननी जय जय ,माँ जग जननी जय जय
प्रियजन. ह्म सब गा रहे थे .सारा पंडाल माँ की जयकार से गूँज रहा था .जैसा बता चुका हूँ,मेरी आँखें बंद थीं,बंद ही रहीं जब तक माँ बोलीं नहीं.
अभी अनेक भजन हैं जो हमने उस शाम गाये थे लेकिन मैं आपको सब नहीं सुना रहा हूँ .आपकी तरह मैं भी बेताब हूँ माँ का अमोलक प्रवचन सुनने सुनाने को, कल कहूंगा.
निवेदक:: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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