मंगलवार, 6 जुलाई 2010

FAITH-GRACE-SUCCESS

विश्वास-आशीर्वाद-सफलता 
निज अनुभव


वेस्ट इंडीज़ में अपना  नया असाईनमेंट सम्हालने के लिए सपरिवार भारत छोड़ने से पहले अपने गुरुदेव के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए ह्म दिल्ली आये. हमारा सौभाग्य था महाराज जी एकांत में ह्म से मिले .उन दिनों महाराज जी अधिकतर मौन रहते थे.  उनके अंग संग रहने वाले साधक इशारों से ही उनकी बात समझ कर ह्म जैसे दर्शनार्थी साधकों को महाराज जी का सन्देश दे देते थे.

उस दिन दर्शन पा कर ह्म वापस चल पड़े. लेकिन अभी दरवाज़े तक भी नहीं पहुंचे थे क़ी  महाराज जी के मुहं से कुछ अस्पष्ट शब्द निकले जो ह्म   समझ न  सके  .यह सोच कर क़ी महाराज जी अपने सहयोगी साधक से कुछ  क़ह रहे होंगे ह्म आगे बढ़ते गये. लेकिन फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ क़ी पीछे से दौड़ कर गुरुदेव के सहयोगी ने हमें रोक लिया .


हमने घूम कर देखा . महाराज जी दोनों बांह पसारे ,अश्रु पूरित नैनों से हमें  निहार रहे थे. उनके सहयोगी ने  हमसे कहा क़ी महाराज जी क़ह  रहे हैं क़ी "क्या गले नहीं लगेंगे?" ह्म गुरुदेव की वह अहैतुकी कृपा याद कर आज  भी रोमांचित हो जाते हैं. ह्म दौड़ कर  वापस लौट आये .महाराज जी के चरण छूने का प्रयास किया लेकिन महाराज जी ने रोक कर गले लगा लिया और अति प्रगाढ़ आलिंगन दिया  . आनंद की एक लहर महाराज जी के अंतस्थल से प्रगट हुई और मेरे अंदर समा गयी. डगमगाती मनः स्थिति वाला मैं उसी पल आत्म विश्वास से  भर गया. ऐसा लगा जैसे महाराज जी साक्षात् श्री राम जी के स्वरुप में अवतरित होकर मुझे अभय दान दे कर मुझसे क़ह रहे हैं "अटूट विश्वास के साथ साधना करने वाले साधक की मैं पल पल रक्षा करता हूँ." तुलसी के शब्दों में :-


सुनु मुनि तोही कहऊ सहरोसा, भजहीं जे मोहि तजी सकल भरोसा.
करऊँ सदा तिन्ह के रखवारी   ,  जिमि बालक राखई  महतारी 
सखा सोच त्यागहु बल मोरे ,     सब बिधि घटब काज मैं तोरे 


हमें  विश्वास हो गया क़ी ह्म़ारी इस पोस्टिंग में हमें किसी तरह की कोई क्षति नहीं  होगी . ह्म आश्वस्त हो गये क़ी हमारा कल्याण ही होगा और वैसा ही हुआ भी.संकट की अनेकों घड़ियाँ आयीं पर इष्ट देव की कृपा से ह्म उन सब से अछूते बच गये.


क्रमशः 
निवेदक : व्ही. एन.  श्रीवास्तव  "भोला".


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