रविवार, 18 जुलाई 2010

JAI MAA JAI MAA

जय माँ , जय माँ 
माँ आनंदमयी की कृपा 


प्रियजन, मैं जो भी बयान कर रहा हूँ वह केवल इस मकसद से क़ी मैं आपको उस महान जादूगर के अप्रत्याशित करतब का एक छोटा सा नमूना दिखा सकूँ .


कहाँ हमे पंडाल में प्रवेश नहीं मिल रहा था और कहाँ माँ के अति निकट उनसे केवल दो गज की दूरी पर,बिलकुल उनके सामने बैठने का अवसर मिल जाना.क्या यह किसी अजूबे से कम है?आप ही देखें,कैसे ह्मारे प्यारे प्रभु ने ह्म जैसे नगण्य व्यक्तियों को श्री श्री माँ आनंदमयी के दिव्य विग्रह का ऐसा भव्य दर्शन इतने पास से संभव करा दिया. प्रियजन  तुलसी ने कितना सच कहा है:


"कोमल चित अति दीन दयाला , कारण बिनु रघुनाथ कृपाला."


कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ हुआ,हमे माँ के सन्मुख भजन सुनाने का आदेश हुआ.समय दिया गया पन्द्रह  मिनिट का .हमने प्रारंभ किया देवी माता की अति प्रसिद्द प्राचीन वन्दना से.


सर्व मंगल मान्गालाये शिवे सर्वार्थ साधिके 
शरण्ये त्रेम्बिकेगौरी नारायणी नमोस्तुते


और उसके बाद ह्म सबने गाया हरि ॐ शरण जी का अति लोकप्रिय भजन :
जगदम्बिके जय जय जग जननी माँ  क्या मनहर नाम सुहाया है 
वारूँ सब कुछ माँ चरणों पर , मेरे मन को यह भाया  है.....
जगदम्बिके ..जय माँ.....
श्री राम तुही श्री कृष्ण तुही दुर्गा काली श्री राधा तू ,
ब्रम्हा बिष्णू शिव शंकर में तेरा ही तेज समाया है.......
जगदम्बिके....जय माँ .....


जय माँ ,जय माँ ,जय माँ ,जय माँ ................................................
और फिर न जाने कितनी देर तक जय माँ जय माँ की धुन माँ के पंडाल में गूंजती रही.जब ह्म रुक जाते इधर उधर से फिर वही जय माँ जय माँ की धुन उठ आती और उसके रुकने से पहले फिर कोई धीरे से कहता " प्लीज़ रुकिए नहीं,गाते रहिये  "हमारी मंडली से कोई एक हमारा नया भजन शुरू कर देता. यही क्रम चलता रहा,.


केवल इतना ही नही आगे बहुत कुछ हुआ जिसकी कथा फिर कभी जब भी  प्रभु की आज्ञा होगी सुनाऊंगा. भाई अब वादा नही करूँगा. वादा तोड़ना बुरी बात है ,लेकिन कभी कभी वादे टूट ही जाते हैं .कल की ही लें ,बहुत चाह कर भी सन्देश नही भेज पाया.ऊपर वाले की मर्ज़ी नही थी.मैं क्या करता..


निवेदक : व्ही  एन  श्रीवास्तव "भोला"

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