बुधवार, 7 जुलाई 2010

NIJ ANUBHV

शरणागत का साथी राम 
सफल  कराये  सारे काम 

निज अनुभव 

मेरे प्रिय पाठकगण ,आप मेरा लेख आज भी पढ़ रहे हैं -यह इस सत्य का प्रतीक है क़ी आप वास्तविक जिज्ञासु  हैं और आप पर आपके सिद्ध गुरुजनों की कृपा हो चुकी है. प्रियजन यदि ऐसा न होता तो कदाचित आप पिछले ९० दिनों से हमारी अनगरल वार्ता इतनी शांति से नहीं झेल पाते. अस्तु आप जैसे गुरुमुखियों के लिए मुझे अब "गुरुजन" की महानता पर कुछ लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है..आपने तो स्वयम ही दशहरी, लंगडा और  अल्फांजो का स्वाद चखा है ,मुझे आम के स्वाद पर लाल्टेनी प्रकाश डालने से क्या लाभ ? चलिए मिल जुल कर ह्म अपने गुरुजनों को शत शत नमन करें.

प्रियजन हो सकता है,सदगुरु के आशीर्वाद से आपको इस जीवन में मुझसे कहीं अधिक चमत्कारिक लाभ हुए हों और आपकी उपलब्धियों की तुलना में मेरे अनुभव हलके लगें. अस्तु मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ क़ी आप उचित समझें तो आपके  निजी अनुभव की कथाएं ,बहुजन हिताय,हमारी इस लेखमाला मे प्रकाशित करवा दें . आपने सुना ही होगा क़ी यदि आप की कथा जान कर कोई एक प्राणी भी हरिभक्ति की प्रेरणा पा सके तो निश्चित ही आपकी अपनी आध्यात्मिक साधना सफल हुई. (प्रियजन  अनुभवों को सर्व विदित करने से पहले अपने गुरुजन की अनुमति अवश्य प्राप्त करलें.)
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जहाँ पूर्ण समर्पण और अटूट विश्वास हो वहाँ जीवन में घटी  हरेक घटना के होने में सच्चे  विश्वासी व्यक्ति को ,उसके इष्ट की कृपा के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिखाई देता.  प्रज्ञाचक्षु पूज्य श्री स्वामी शारनानंदजी महाराज का   कथन है "भक्तजनों का अपना कोई संकल्प नहीं होता ,प्रभु का संकल्प ही उनका अपना संकल्प है.और वे प्रत्येक घटना में अपने प्यारे प्रभु की कृपा और उनकी अनुपम लीला का ही दर्शन करते हैं." 

मुझे कभी कभी ऐसा लगता है क़ी म्रेरे जीवन में जो कुछ भी अब तक हुआ ,जो अभी हो रहा  है और आगे होने को है उन में से किसी भी कार्य का कर्ता मै नहीं हूँ  .जो हुआ और होता है उन सब कार्यों का करने वाला यंत्री वह परमपुरुष है ,ह्म तो यंत्र मात्र हैं जिसे वह निपुण यंत्री अपने कर कमलों से चलाता है और अंततः कार्य की सफलता का सम्पूर्ण श्रेय हमे दिला देता है. गृहस्थ  ऋषि हनुमान प्रसाद जी पोद्दार "भाई जी" का यह कथन कितना  सार्थक है :-       
                                        प्यारे प्रभु 
                            मैं अकल खिलौना तुम खिलार 
  तुम यंत्री ,मैं यंत्र ,काठ की पुतली मैं ,तुम सूत्रधार 
          तुम कहलाओ ,करवाओ,मुझे नचाओ निज इच्छानुसार 
                      मैं कहूँ ,करूं ,नित नाचूँ ,परतंत्र न कोई अहंकार.
                           मैं अकल खिलौना तुम खिलार 

क्रमशः
निवेदक: व्ही .एन. श्रीवास्तव "भोला"

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