श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण का संदेश है 'संशयात्मा विनश्यति " संशयशील अर्थात अविश्वासी व्यक्ति सदैव असफल ही रहता है ,न इस लोक में न परलोक में अविश्वासी व्यक्ति को कहीं भी सिद्धि नहीं मिलती .(अध्याय ४,श्लोक ४०)
गुरुदेव स्वामी श्री सत्यानन्द जी महाराज ने कहा है,"विश्वास जितना प्रबल सुदृढ़ और सुनिश्चित होगा उतना ही अधिक लाभ विश्वासी को होगा,उसका व्यवहार सुधरेगा और परमार्थ भी. जैसे जैसे उसका विश्वास दृढ़ होगा उसका जीवन ओजस्वी और तेजस्वी होता जायेगा "
विश्वास ऐसा अविचल हो जैसा पवनपुत्र हनुमानजी का.'राम नाम' पर था..नाम अंकित मुद्रिका मुख में रख कर,"जय श्री राम" की उद्घोषणा कर वह एक छलांग में हीसमुद्र पर कर गये ." जलधि लाँघ गये अचरज नाहीं " विश्वास में वह दृढ़ता हो जैसी प्रहलाद की थी.उनका विश्वास सत्य करने के लिए स्वयं नारायण,"नरसिंह" स्वरूप में पत्थर के स्तम्भ से प्रगट हो गये. रावण की भरी सभा में राम दूत अंगद के इस दृढ़तम विश्वास ने क़ि लंका का कोई महारथी उसका पैर हिला नहीं सकता लंकापति को उसके समक्ष झुकने को मजबूर कर दिया. स्मरणीय है भीलनी शबरी का वह विश्वास जो उसे मतंग ऋषी के इस अंतिम वचन पर था क़ि "प्रतीक्षा कर, एक दिन प्रभु श्रीराम स्वयं यहाँ पधार कर तुझे दर्शन देंगे और तेरा उद्धार करेंगे". इस विश्वास के सहारे ही एक दिन उसने प्रभु राम का न केवल दर्शन पाया,उनसे नवधा भक्ति जानी और उनकी भगिनी बन गयी और अन्तत: मुक्त हो परम धाम पधारीं. ऐसे विश्वासी व्यक्तियों की विश्वासमयी जीवनी और विश्वास के सहारे विजित उपलब्धियां ,हमें भी विश्वासमय आचरण करने की प्रेरणा देते हैं
.
आज के मनीषी जन जीवन में इसी विश्वास का बीज 'सकारात्मक विचार' के द्वारा बो रहें हैं और अविश्वास की वृत्ति को "नकारात्मक विचार'के रूप में अनुपयोगी ठहरा रहे हैं .हमारी सर्वशक्तिमान प्रभु से प्रार्थना हैं की वह हमें ऎसी सकारात्मक सोच प्रदान करे जिसके आधार पर हम सब एक दूसरे पर अटूट विश्वास कर ,प्रीति की डोरी से बंध जाएँ,एक दूसरे का हाथ थामे सत्य की राह पर चलें,.एक दूसरे को प्रोत्साहित कर प्रगति पथ पर अग्रसर रहें.
गुरुदेव स्वामी श्री सत्यानन्द जी महाराज ने कहा है,"विश्वास जितना प्रबल सुदृढ़ और सुनिश्चित होगा उतना ही अधिक लाभ विश्वासी को होगा,उसका व्यवहार सुधरेगा और परमार्थ भी. जैसे जैसे उसका विश्वास दृढ़ होगा उसका जीवन ओजस्वी और तेजस्वी होता जायेगा "
विश्वास ऐसा अविचल हो जैसा पवनपुत्र हनुमानजी का.'राम नाम' पर था..नाम अंकित मुद्रिका मुख में रख कर,"जय श्री राम" की उद्घोषणा कर वह एक छलांग में हीसमुद्र पर कर गये ." जलधि लाँघ गये अचरज नाहीं " विश्वास में वह दृढ़ता हो जैसी प्रहलाद की थी.उनका विश्वास सत्य करने के लिए स्वयं नारायण,"नरसिंह" स्वरूप में पत्थर के स्तम्भ से प्रगट हो गये. रावण की भरी सभा में राम दूत अंगद के इस दृढ़तम विश्वास ने क़ि लंका का कोई महारथी उसका पैर हिला नहीं सकता लंकापति को उसके समक्ष झुकने को मजबूर कर दिया. स्मरणीय है भीलनी शबरी का वह विश्वास जो उसे मतंग ऋषी के इस अंतिम वचन पर था क़ि "प्रतीक्षा कर, एक दिन प्रभु श्रीराम स्वयं यहाँ पधार कर तुझे दर्शन देंगे और तेरा उद्धार करेंगे". इस विश्वास के सहारे ही एक दिन उसने प्रभु राम का न केवल दर्शन पाया,उनसे नवधा भक्ति जानी और उनकी भगिनी बन गयी और अन्तत: मुक्त हो परम धाम पधारीं. ऐसे विश्वासी व्यक्तियों की विश्वासमयी जीवनी और विश्वास के सहारे विजित उपलब्धियां ,हमें भी विश्वासमय आचरण करने की प्रेरणा देते हैं
.
आज के मनीषी जन जीवन में इसी विश्वास का बीज 'सकारात्मक विचार' के द्वारा बो रहें हैं और अविश्वास की वृत्ति को "नकारात्मक विचार'के रूप में अनुपयोगी ठहरा रहे हैं .हमारी सर्वशक्तिमान प्रभु से प्रार्थना हैं की वह हमें ऎसी सकारात्मक सोच प्रदान करे जिसके आधार पर हम सब एक दूसरे पर अटूट विश्वास कर ,प्रीति की डोरी से बंध जाएँ,एक दूसरे का हाथ थामे सत्य की राह पर चलें,.एक दूसरे को प्रोत्साहित कर प्रगति पथ पर अग्रसर रहें.
निज निश्चय का तेज दे,प्रीति किरन के साथ
साथ रहे शुभ कर्म में , मंगल मय तव हाथ .
निश्चय अपने नाम का भक्ति प्रेम प्रकाश.
दे निश्चय निज रूप का अपना दृढ़ विश्वास .
निवेदक:- व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें