रविवार, 25 जुलाई 2010

JAI MAA JAI MAA




जय माँ   जय माँ

श्री श्री माँ आनंदमयी क़ी कृपा दृष्टि 
=====================================
आज २५ जुलाई २०१० है, गुरु पूर्णिमा का मंगल दिवस.
सभी गुरुजनों को हमारा कोटिश प्रणाम .गुरुजन कृपा करें, हमें सुबुद्धि एवं सुप्रेरणा प्रदान करे. 
हम जहाँ भी रहें हमें सत्संग का लाभ मिलता रहे.
===============================                
मैया मोहे मंगल दर्शन दीजे 
विमल मधुर तेजोमयी  मूरति, मनोगमा मैं निहांरू,
निज ममता-मंदिर में ,मैया ,   मुझको अपना लीजे 
मंगल दर्शन दीजे मैया 

श्री स्वामी जी महाराज का मातृवंदन का यह पद मैं , १९५९ के अपने प्रथम पंच- रात्रि -सत्संग में शामिल होने के बाद अक्सर श्री राम शरणम के सत्संगी साधकों के सन्मुख गाता रहता हूँ. कितनी बार इसे गाते गाते बहुत भावुक हो गया, एक विचित्र स्थिति में पहुच गया , किसी ने उसे आवेश कहा किसी ने कहा "हाल में इनकी माँ नहीं रहीं , इससे भावुक हो रहे हैं"आदि आदि..सच पूछो तो मुझे स्वयम नहीं पता क़ी कभी कभी भजन गाते गाते. मुझे की हो जाता है. मैं तो केवल इतना जानता हूँ:

जब भी उन को भजन सुनाता , जाने क्या मुझको हो जाता,
रुन्धता कंठ ,नयन भर आते , बरबस मैं गुमसुम हो जाता .

एक बात बताऊं,सीक्रेट है,किसी से कहियेगा नहीं. शुरू शुरू में मुझे ऐसा लगता था कि यह आसुओं का बहना , गले का रुंध जाना,सब ,नकली है, मैं नाटक करता हूँ. तब सोचता था , मैंने कौन सी ऎसी साधना की है जो मुझे आनंद की यह ऊंची स्थिति मिलती? छोडिये इसका निश्चय उस परम के हाथ, वह जाने क्या सच है क्या झूठ. मैं आनंद लूटता हूँ . आप भी बहती गंगा में हाथ धो ले. अपने गुरुजन का, अपने अपने इष्ट का स्मरण ,नाम जाप करते रहिये आनंदित रहिये.

रासलीला मंचन के समापन पर हमे श्री माँ का मंगलमय दर्शन, अति निकट से हुआ . श्री माँ की ज्योतिर्मयी आँखों से निकली वात्सल्य-करुणा व  ममतामयी शुभ कामनाओं की संजीवनी फुहार ने मेरी दर्शन प्यासी आँखों
को तृप्त कर दिया .पूर्णमासी का चाँद देख कर जैसे सागर का ज्वार तट की तरफ दौड़ पड़ता है , वैसे ही परमानंद क़ी धारा मेरे अन्तस्थल में प्रवेश कर गई . प्रियजन,मेरा अंतर्घट पूरा भर कर छलकने लगा , मेरी आँखे भर आयीं

वह मई १९७४ की एक शाम थी और आज जुलाई २०१० का यह सवेरा है, ३६ वर्ष से ऊपर हो गये , अभी भी, ह्मारे मन में ,माँ से दृष्टि दीक्षा में मिली, आनंद की वह लहराती भेट वैसे ही हिचकोले ले रही है,विश्वास करिये अभी इस पल भी, मैं रोमांचित हो रहा हूँ श्री श्री माँ के स्मरण मात्र से. (और फिर आज तो गुरु पूर्णिमा है ) मन करता है जय माँ, जय माँ जय माँ जय माँ करके सारा भू-मंडल गुंजायमान कर दूँ.

हाँ १९७४ के बाद भी मैंने अनेक प्रयास किये माँ के दर्शन प्राप्ति के लिए. पर सफल केवल एक बार हुआ. वह घट्ना भी अति मार्मिक और चमत्कारिक है.प्रियजन, मेरा सौभाग्य सराहिये , इस बार हमे एकदम एकांत में केवल दो हाथ की दूरी से माँ का दर्शन हुआ. कल सविस्तार पूरी कथा सुनाऊंगा.

निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

कोई टिप्पणी नहीं: