गुरुजन की कृपा
निज अनुभव
पिछले कुछ दिनों से गुरुजन की स्मृति मन में एक दिव्य आनंद-ज्योति जगा रही है. .
प्रेम योगिनी जननी माँ ने विशुद्ध प्रेम,सत्य एवं करुना युक्त भक्ति का पय पान, करा कर हमे शैशव में ही आत्मोत्थान के प्रथम सोपान पर चढ़ा दिया. तदोपरांत धर्म पत्नी के साथ साथ दहेज़ में मिली ,हमारी सुसुराल की दैनिक प्रार्थना की पुस्तिका "उत्थान पथ" ने हमारा मार्ग दर्शन किया .यह पुस्तिका मेरे विवाह के अवसर पर उपहार स्वरूप देने के लिए ही मेरे सुसुराल में छपवाई गयी थी . इस पुस्तिका के पदार्पण ने ह्मारे पूरे परिवार के आत्मिक उत्थान में बड़ा योग दान दिया जिसके फल स्वरूप ही मैं यह सन्देश भेजने के काबिल हो पाया हूँ. जननी माँ और सुसुराल की प्रेरणा से प्राप्त मार्गदर्शन के बाद गुरुदेव श्री श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने हमारा परिचय वास्तविक आध्यात्म से करवाया उन्होंने हमे भगवत प्राप्ति हेतु अति सरल साधन बताया "श्रद्धा-विश्वास सहित नाम-जाप, सिमरन तथा ध्यान".महाराज जी ने ये सरलतम मार्ग दिखा कर हमारी साधन यात्रा अति सुगम कर दी
.
इस साधना ने मन में एक प्यास जगा दी ,अधिक से अधिक संतो से मिलने की. .महाराज जी के स्नेहिल आशीर्वाद के फल स्वरूप ही मुझे जीवन में, अनेकानेक संतो के दर्शन हुए, हमे हर जगह-क्या दफ्तर क्या घर ,क्या रेल-क्या बस यात्रा ,क्या हवाई सफर ,हर जगह ही संत मिलते रहे और श्री हरि कृपा से फिर आनंद हीआनंद.
तुलसी क़ी ये लोकोक्तियाँ "बिनु हरि कृपा मिलही नहि संता "और "संत मिलन सम सुख जग नाहीं"ह्मारे जीवन में चरितर्थ होती ही गईं .मुंबई की पोस्टिंग में योगीराज स्वामी मुक्तानंद जी महाराज , श्री स्वामी अखंडानंद जी महाराज ,श्री स्वामी चिन्मयानद जी ,श्री श्री माँ निर्मला देवी जी, श्री माँ योग शक्ति और अंततःसर्वोपरि श्री श्री माँ आनंदमयी के दिव्य दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ साथ ही सभी संतों के सान्निध्य का ,उनकी.कृपा और उनके आशीर्वाद पाने का भी सुअवसर मिला मेरा तो जीवन धन्य हो गया और जैसा तुलसी ने कहा .मैं गुनगुना उठा :
"आज धन्य मैं धन्य अति ,यद्यपि सब बिधि हीन .
निज जन जानि राम मोहि संत समागम दीन". तथा
" यह सुख साधन से नही होई,: राम कृपा बिनु सुलभ न सोई"
अस्तु प्रियजन '"मांगूं में राम कृपा दिनरात "का गायन करते हुए प्रभु की कृपा प्राप्ति के साधना में जुटे रहिये..फिर बच कर वो जायेंगे कहाँ . निज स्वभावानुसार कृपा करेंगे ही
माँ की कृपा-कथा कल सुनाऊंगा . भरोसा रखिये कल भटकूंगा नही. ये वादा रहा.
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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