जय माँ जय माँ
माँ आनंदमयी की कृपा
लगभग आधे घंटे की (होई-चोई)-,धूम -धडाके दार (होरी)-हरिकीर्तन रुकने पर एक अनोखी निश्त्ब्धता पूरे पंडाल में छा गयी.करीबन मिनिट भर के लिए जैसे सब कुछ थम गया .ऎसी नीरवता कि यदि सुई गिरती तो उसकी आवाज़ भी सुनाई पड़ जाती.
सब स्तब्ध थे.ह्म माँ के सबसे करीब,ठीक उनके सामने बैठे थे.ह्मारे और उनके बीच पुष्पों ,अगर बत्तियों और धूप की पवित्र सुगन्धि से भरे सूक्ष्म वायुमंडल के अतिरिक्त और कुछ भी नही था. माँ की पतितपावनी विग्रह से प्रसारित हो रहीं उनकी परमानन्द दायिनी ऊर्जा ,अछूती ,सीधे मुझे सिर से पाँव तक रोमांचित कर रही थी. सर्वत्र शांति ही शांति थी.आनंद ही आनंद था.
थोड़ी देर में एक हल्की सी आवाज़ स्पीकर पर सुनाई पड़ी "हे राम" .ह्मारे कान खड़े हो गये..मेरी आँखे बंद थीं समझ न सका किसने लगाई यह प्रेम भरी गुहार ह्मारे इष्ट देव को.. चंद पल बाद सुनाई दिया एक अन्य अनूठा संबोधन "पिताजी..."(ह्मने पहिले कभी माँ का प्रवचन नहीं सुना था इसलिए नहीं जानता था कि माँ अक्सर यह सम्बोधन पंडाल के सभी पुरुषों का ध्यान एकाग्र करने के लिए करतीं थीं). मैंने भी सुना "पिताजी" पर तब तक न मेरी आँखे खुलीं थीं ,न मेरा द्रवीभूत हृदय ही स्थिर हो पाया था अस्तु समझ न पाया कि कौन बोल रहा है ..पर एकाग्रता से सुनता रहा .कुछ पलों में जान गया कि जो मैंने सुनी वह श्री श्री माँ आनंदमयी की ही अमृतवाणी थी.आगे माँ बोलीं:
"पिताजी ,आप सब बहुत बहुत दूर से यहाँ आये हैं.कितना कितना बस और लोकल में धक्का खाकर यहाँ पहुंचे हैं. क्यों आये और कैसे आ पाए आप ?बोलून, पिताजी " कौन बोलता,माँ ने स्वयम ही अपने प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया.\
"पिताजी, कोई भी कार्य भलीभांति सम्पन्न करने के लिए कर्ता को ये तीन बातों का ध्यान रखना है ,जैसा आपने भी किया होग़ा . "प्रथम-आपने यहाँ आने का दृढ़ निश्चय किया होग़ा . दूसरा आप निकल पड़े होंगे और तीसरी सबसे विशेष क्रिया जो आपने की होगी यह कि अपने आपको पूर्णतः अपने भगवान को समर्पित कर दिया होग़ा .इस प्रकार (1.Determination ,2.Action ,3.Surrender ) आपकी इन तीनों क्रियाओं ने आपको यहाँ पहुंचा दिया.यदि आप इन तीनो मे से एक क्रिया भी ठीक से नहीं करते तो आप यहाँ तक नहीं पहुँच पाते."
क्रमशः
निवेदक : व्ही. एन, श्रीवास्तव "भोला"
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