शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

MAA ANANDMAYII's GRACE



श्री श्री माँ आनंदमयी का आशीर्वाद 


निज अनुभव 


गतांक से आगे 


माँ ने फिर कहा "आमी आर आपोनीयो ,शाब केऊ शूँन्नो आची" (All of us are just Ciphers) .यह क़ह कर माँ ने वहाँ उस्थित हज़ारों साधकों को उनकी न्यूनता और शून्यता से परिचित करा दिया .माँ  आगे बोलीं." पिताजी. मानव मन काम,क्रोध ,लोभ मोह और अहंकार जैसी दुष्प्रवृत्तियों का भण्डार हैं. हमे इनके अधीन नहीं रहना है, इन्हें सद्वृत्तियों से मर्यादित रखना है. पिताजी. अंतःकरण में जहां  इतनी प्रचुर मात्रा  में अवगुण भरे हों वहाँ  दैवी गुणों के रखने की जगह कहां से होगी? इन दुर्विकारों का मूल अहंकार है . निकाल फेकिये अपने मन,वचन ,कर्म से इन्हें और निरहंकारी हो कर अपने सब सांसारिक कार्य करते रहिये..

पुनः माँ अपनी बात समझाते हुई बोलीं"आप व्यापारी हो ,सरकारी अफसर हो,कर्मचारी हो, नेता हो या न्यायाधीश हो, आप किसी भी पद पर आसीन हो यदि आप कार्य करते समय ,अपनी गद्दी का अहम भाव, अपने मन से निकालकर और  कर्तापन का भाव छोड़ कर अपने काम करें,विश्वास करें पिताजी आपसे उस कार्य में कोई भूल नहीं होगी."

उदाहरण स्वरूप: जैसे आप सुबह से शाम तक अगणित कागजों पर हस्ताक्षर करते हो आपके हस्ताक्षर होने पर किसी को फांसी होती है, कोई परीक्षा में उत्तीर्ण होता है,किसी को आयात-निर्यात व्यापार से लाखों का लाभ होता  है. आप इतने शक्तिशाली पद पर हैं .आप इस का अभिमान छोड़ कर ,अपने आपको अहंकार शून्य करके उस सर्वग्य प्रभु का ध्यान लगाओगे उन से  प्रार्थना करोगे,अपरोक्ष रूप में सत्य का ज्ञान प्राप्त करोगे और उस ज्ञान पर आधारित होकर निर्णय लोगे तो आप अन्याय कर ही नही पाओगे ... 

पिताजी.आपने  कागज़ पर जहाँ कलम रखी और लिखना शुरू किया,उस जगह पर और उस जगह जहाँ  लिखना बंद किया ,उन  दोनों जगह केवल शून्य के चिन्ह ही अंकित होते है. दोनो ही आपकी शून्यता और आपकी अज्ञानता ,मति हीनता, कुबुद्धि और मोह युक्त सांसारिकता के प्रतीक हैं.. पिताजी हस्ताक्षर करने से पहले ,आप का पल भर को मौन रखकर , "कुमति निवारक एवं सुमति के संगी " विक्रम बजरंगी महावीर जी  का ध्यान करने से ,दामिनी सी दमकती हुई सुमति आपके मानस में अनायास ही प्रगट हो जायेगी और आप चाह कर भी कोई अन्याय और अनुचित कार्य नहीं कर पायेंगे" .

प्रियजन,माँ की उस प्रवचन में कही हर एक बात हमारी तत्कालीन निजी समस्याओं का हल हमे बता गयी. हाँ उन्होंने अपना प्रवचन जिस वाक्य से शुरू किया वह आपको बता दूँ. उन्होंने कहा था "पिताजी, सारा दींन सोई करता है, बड़ा बड़ा निर्णय लेता है.काम इतना है क़ी कागज़ ठीक से पढ़ भी नहीं पाता ,पर अंतिम आदेश देना ही पड़ता है. आर आप देता भी है किन्तू आश्चर्य होता है क़ी आपसे कोई भूल नह़ी होती ,आपके काम की  ,कोई शिकायत कहीं से नह़ी आती.  माँ ने प्रश्न किया ,कोई बोलो क्यों? कोई नहीं बोला तो उस प्रश्न का उत्तर माँ ने स्वयम अपने इस प्रवचन में दिया था  .प्रियजन उम्र का तकाजा है थक रहा हूँ ,अस्तु आज इतना ही ,शेष कल सुनाऊंगा.


निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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