जिस जीव पर प्रभु की असीम कृपा होती है उन्हें परम सिद्ध महापुरुषों के दर्शन स्वयमेव होते रहते हैं ! आवश्यकता पड़ने पर ये संत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में उपस्थित होकर 'जीव' के भौतिक और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान करते हैं और उस जीव के मानवीय व्यक्तित्व को उत्तरोत्तर विकसित करते रहते हैं !
फेरो न कृपा की नज़र, हे गुरुवर.......
नयन कटोरे भर भर तुमने, दिव्य प्रेम रस पान कराया।
जलते मरुथल से अन्तर पर ,तुमने अमृत रस बरसाया।।
झरने दो निर्झर।
फेरो न कृपा की नज़र,हे गुरुवर।
भटकूंगा दर दर  हे स्वामी ,यदि तुमने निज हाथ छुड़ाया  ।
शरण कहाँ पाऊंगा जग में ,यदि न मिली चरणों की छाया।।
हूं  तुम पर निर्भर ।
फेरो न कृपा की नज़र,हे गुरुवर।
 
 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें