स्वर से ईश्वर तक
"संगीत शिक्षा"
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शिक्षण-प्रशिक्षण का काम "गुरुओं" का है और यह केवल प्रशिक्षित ज्ञानी महापुरुषों को ही शोभा देता है ! मेरे जैसे 'अज्ञानी - अनाड़ी' व्यक्ति के लिए यह एक सर्वथा अनाधारिक एवं अनुचित चेष्टा है !
आप ही देखें , बिना कोई औपचारिकता निभाए हुए , बिना सम्बंधित व्यक्तियों की अनुमति प्राप्त किये मैंने वह कदम उठा लिया ? गलती की हैं मैंने ! पर ---
आप जानते ही हैं कि मैं जो कुछ लिखता हूँ ,उस "ऊपरवाले" के आदेश से और "उनकी" भेजी हुई प्रेरणा के आधार पर ही लिखता हूँ ! पिछले अंक मैं क्या लिखा ? क्यूँ लिखा ? क्या सोंच कर लिखा ? आपके इन प्रश्नों का उत्तर भी समय आने पर "वह ऊपर वाले ही" मुझसे कभी न कभी लिखवा लेंगे !
इस समय भी "वह" मुझे "कुछ" करने की प्रेरणा दे रहे हैं , जो मैं शीघ्रातिशीघ्र कार्यान्वित करने जा रहा हूँ ! उस कार्यवाही का फल क्या हुआ, सविस्तार अगली खेप में पेश करूँगा !
हो सकता है कि आपके सभी प्रश्नों का उत्तर उसमे मिल जाये !
आज मेरी उपरोक्त भावनाओं को मेरे प्रति सहानुभूति के साथ स्वीकारें , कृपा होगी !
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निवदक:- व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग :- श्रीमती कृष्णा "भोला" श्रीवास्तव
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