शनिवार, 28 अप्रैल 2012

संगीत शिक्षा - भाग ३

स्वर से ईश्वर प्राप्ति 
प्रथम संगीत गुरु - जनाब उस्ताद गुलाम मुस्तफा खां साहेब ( पद्म भूषण )
से प्राप्त मार्ग दर्शन 


संगीत शिक्षा पर अपना प्रथम सन्देश प्रेषित करने के बाद मेरे मन में  उठी हलचल के बीच मुझे मेरे 'प्रेरणा स्रोत' - "प्यारे प्रभु" का जो आदेश मिला उसका पालन करते हुए  अगली सुबह मैंने यहाँ "यू.एस. ए" से भारत - फोन लगाया !

मैं मुम्बई निवासी , अपने उस्ताद गुलाम मुस्तफा खां साहब से यह जानना चाहता था कि मेरे द्वारा अपने ब्लोगर बंधुओं और अन्य संगीत प्रेमियों के बीच 'उनसे' - ('उस्ताद से) सीखे हुए 'अनमोल पाठ' का प्रचार करने में उन्हें कोई एतराज़ तों नहीं है साथ ही मैं उनसे एक बार 'कन्फर्म'  कर लेना चाहता था कि लगभग ५० वर्ष पहिले उनसे सीखे पाठ का वास्तविक अर्थ मैं ठीक से समझ भी पाया हूँ या नहीं !

बड़ी मुहब्बत के साथ उन्होंने हमसे बात की ! १०-१५  मिनट की इस बातचीत के दौरान भी उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी के अनुभूतियों में वर्णित उस महाकाशीय "शून्य" की चर्चा की जिसमे संगीत के सभी स्वर -श्रुति समेत समाहित हैं ! तत्पश्चात उनके बेटे उस्ताद मुर्तुजा खां से भी कुछ और जानकारी ली !

इस विषय में यह उल्लेखनीय है कि :


 मेरे आध्यात्मिक गुरु परम श्रद्धेय श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने मुझे 'नाम -दीक्षा सन१९५९ में दी थी ! जिस नाम का सतत सिमरन, मनन ,गायन तथा जाप करने की आज्ञां श्री स्वामी जी महाराज ने मुझे तब दी थी , मेरे संगीत के उस्ताद [ गुरु ]  गुलाम मुस्तफा खां  साहेब ने कुछ वर्ष पूर्व - १९५७ में उसी नाम के आधार पर , उसको ही षडज स्वर में उतार कर , उस् ध्वनि को ही अपनी नाभि से उद्भूत करने और उसको ही नींव का पत्थर मान कर अपनी कंठसंगीत की साधना का शुभारंभ करने की सलाह दी !


उनका कहना था कि परमात्मा के जिस स्वरूप पर तम्हे परम श्रद्धा हो, उस स्वरूप के नाम को अपना "षडज" मान कर , "सा" के स्थान पर उसे उच्चारित करो ! जैसे "ओम", "राम" , "अल्लाह" , "मौला" !  जितनी श्रद्धा-भक्ति  से तुम अपने इष्ट को पुकारोगे , उतनी ही सफल होगी तुम्हारी "स्वर साधना" ! रस प्रवाहित होगा ;तुम स्वयं उसमें डूब जाओगे !

आज से ५०-६० वर्ष पूर्व , उस्ताद ने किन शब्दों में मुझे अपना उपरोक्त आदेश दिया होगा वो तों आज मुझे याद नहीं है ! मैंने  अभी उनके आदेश में समाहित वह गूढ़ भावना जो मुझे तब ६० वर्ष पूर्व  तत्काल समझ में आई , उसे ही अपने शब्दों में व्यक्त करने का प्रयास किया है ! भूल चूक के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !

मेरी उपरोक्त समझ पर , उसके सत्य होने का , उसकी प्रमाणिकता का ठप्पा १९८० -९० के दशक में लगा जब हमारे कानपुर के घर में एक रविवार के प्रातःकाल , "अमृतवाणी सत्संग" के समापन के उपरांत , हम सब के समक्ष अचानक ही उस्ताद जी अपने लाव लश्कर के साथ प्रगट हो गये ! अंग्रेजी में जिसे surprise देना कहते हैं , उन्होंने वही हम सब को दिया ! साथ में  थे उनके दो बेटे , उनका "हार्मोनियम" , तबले के साथ उनका  खास तबलची , तानपुरा , और उनका "स्वर मंडल" !

हमे विश्वास नहीं हुआ - लेकिन यह हुआ ! प्यारे प्रभु की कृपा से ऐसी घटनाएँ घटती ही रहतीं हैं !  उस प्रातः हमारे  राम नामी अधिष्ठान के सन्मुख उस्ताद ने जो मर्मस्पर्शी कीर्तन गाया वह था :

राम राम राम सीता राम राम राम

जय मीरा के गिरिधर नागर , सूरदास के राधेश्याम 
राम राम राम सीता राम राम राम
जय नरसी के साँवरिया तुम तुलसिदास के सीताराम
राम राम राम सीता राम राम राम  


 आप भी सुनिए,
30 - 40 वर्ष पूर्व घरेलू केसेट रेकोर्डर पर रिकोर्ड किया यह टेप बजते बजते 
अब बिलकुल घिस गया है ;लेकिन यह नामकीर्तन अभी भी अति प्रभावशाली है ! 

  



राम राम का कीजिये  आठ प्रहर उच्चार 
बाहर कामना त्याग के राम चरन मन डार
राम राम राम सीता राम राम राम 


चिंतामणि हरि नाम है सफल करे सब काम  
महा मंत्र मानो यही राम राम श्री  राम 
राम राम राम सीता राम राम राम  


दुःख दरिया संसार है, सुख का सागर राम,
सुख सागर चले जाइए दादू तज कर काम 
राम राम राम सीता राम राम राम


जय मीरा के गिरिधर नागर , सूरदास के राधेश्याम 
जय नरसी के साँवरिया तुम तुलसिदास के सीताराम
राम राम राम सीता राम राम राम 
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शायद आपको उस्ताद जी के इस कीर्तन गायन में कोई चमत्कार न महसूस हुआ हो ! पर राम नाम के उपासकों को विशेषतः स्वामी सत्यानन्द जी महाराज से नाम दीक्षा प्राप्त नामोपासकों  को इस कीर्तन में यह दोहा सुनकर अवश्य ही अत्यधिक आनंद आया होगा

चिंतामणि हरि नाम है सफल करे सब काम  
महा मंत्र मानो यही राम राम श्री  राम 





ये दोहा स्वामीजी महाराज के महान ग्रन्थ भक्ति प्रकाश से संकलित है ! उस्ताद  जी ने यह दोहा कहाँ सुना, कब सुना, किससे सुना और किस प्रेरणा से उन्होंने इसे अपने गायन में शामिल किया इस विषय में उनसे कुछ भी पूछना मेरे लिए कठिन है !

आप तों केवल यह देखें कि इस"बगुला भगत भोला" के दो गुरु, एक आध्यात्मिक गुरु तों दुसरे संगीत -कला के गुरु ,ने  एक ही मंत्र दिया -   राम नाम का , जिसके सतत जाप से "भोला" को सदा सदा के लिए चिंता मुक्त हो जाना था ! कितना हो सका ? राम जाने !

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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा "भोला" श्रीवास्तव 
( प्रियजन , ध्यान रहे ,सहयोगी सर्वदा सहमत नही होते )
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