गुरुवार, 31 मई 2012

श्री गुरु दर्शन


जादुई "राम नाम" एवं श्री गुरु चरण दर्शन  
के 
विलक्षण  प्रभाव 
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 मेरी बैटरी पूरी खाली हो गई थी ! मैं लगभग एक मास से मौन पड़ा था ! 
यहाँ यू एस ए ,के खुले सत्संग में , मई १७ से २० तक प्रति दिन , 
गुरुदेव डाक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज 
के दर्शन से मेरी लेखनी पुनः जीवंत हो गई .

मेरी नाम दीक्षा 

लगभग ५५ वर्ष पूर्व - तीन  नवम्बर १९५९ के परम पवित्र - शुभ दिन ,गुरूवर श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने अपने सन्मुख सहमे से बैठे - धृति धारणा हीन , धर्म-कर्म  में अतिशय दीन, मुझ ३० वर्षीय  नवयुवक  को मुरार ,ग्वालियर के, सौदागर सन्तर में अपने परम स्नेही शिष्य ,डॉक्टर देवेन्द्र सिंह बैरी के 'पूजा -प्रकोष्ठ' के एकांत में परम मंगलमय राम नाम का 'मन्त्र रत्न' प्रदान किया था !

प्रियजन , मैं उस समय श्री महाराज जी  के तेजस्वी मुखमंडल से निस्तरित विलक्षण ज्योति पुंज की चकाचौंध से ऐसा सकपकाया हुआ था कि मुझे उस पूजास्थल में बिराज रहे स्वामी जी महाराज की ओर आँख उठा कर देखने का साहस ही नहीं हुआ ! मैं केवल महाराज जी के सुन्दर गुलाबी गुलाबी चरणों की ओर ' चकोर' सा निहारता रहा !

एक चमत्कार - सन २००७ में , भारत से यू.एस.ए. वापस आने से पहले गुरुदेव श्री श्री विश्वमित्र जी महराज के दर्शनार्थ श्री राम शरणम गया !  महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त कर , प्रकोष्ठ से बाहर निकला ही था कि ऐसा लगा जैसे महाराज जी ने कुछ कहा ! पलट कर उनके निकट गया ! महराज जी , अलमारी से निकाल कर कुछ लाए और उसे मेरे हाथों में देते हुए कुछ इस प्रकार बोले ," श्रीवास्तव जी , आपके हृदय में श्री  गुरुचरणों की मधुर स्मृति सतत बनी रहती है ! मैं बाबा गुरु के वही श्रीचरण आपको दे रहा हूँ  ! "  प्रियजन , मेरी भारत से विदाई के उस पल मेरे ऊपर हुई गुरु कृपा की इस अमृत वर्षा  ने मुझे सराबोर कर दिया और स्वजनों ,इस समय भी जब मैं उस घडी के असीम आनंद का  वर्णन करने का असफल प्रयास कर रहा हूँ , मेरी आँखें सजल हैं ! वह आनंद है ही इतना मीठा , इतना सरस - काश उसकी एक भी बूंद आप पर छिडक सकता ]

अब सुनिए, मैं अपनी  "नाम दीक्षा" का उल्लेख यहाँ क्यूँ कर रहा हूँ ?

स्वामीजी महराज ने  नाम दीक्षा वाले दिन ही मुझे 'अधिष्ठान जी' भी प्रदान कर दिए थे  और उन्होंने मुझे अगले दिन ग्वालियर में लगने वाले  'पंचरात्रीय साधना सतसंग'  में सम्मिलत होने की अनुमति भी दे दी थी ! मेरे ऊपर महाराज जी की इस विशेष कृपा ने ग्वालियर के साधकों को स्तम्भित एवं आश्चर्यचकित कर दिया था !

अंग्रेजी में एक कहावत है ,"History repeats it self ".अब इतिहास के कुछ पृष्ठ पलटें !

१९५९ के उस सौभाग्यशाली दिवस से दो मास पूर्व ही श्री राम कृपा से ,हमे  प्रथम संतान - पुत्री प्राप्त हुई थी ! वह नवजात कन्या जब पहली बार अपने परम रामभक्त , गृहस्थ संत बड़े मामा #  की गोद में गई  तों खिलखिला कर हँस पड़ी !
                                                                                                                 
उस नन्हीगुडिया के  बड़े मामा #  ने  उसे गोद में लेकर  ,बड़ी श्रद्धा से  " जय सीता राम सीता राम , सीता राम . जय सीता राम " की  मधुरतम राम धुन लगाई ! पास खड़े हम सब भी प्रेम सहित वह धुन गुनगुनाते  रहे  ! जितनी देर तक राम नाम की  मंगलकारी धुन वहाँ गूँजती रही , वह छोटीसी गुडिया मुसकुराती ही रही ! केवल मेरा ही नहीं ,हमारे पूरे परिवार के लिए यह एक विलक्षण अनुभव था !

उसके बड़े मामा ने कहा " भोला बाबु , राम नाम की सुमधुर झंकार अत्यंत आनन्द प्रद होती है !  हमारे कान में पड़ने वाले अन्य सभी कर्कश नाद् इस झंकार में डूब कर सदा सदा के लिए लुप्त हो जाते हैं "  और फिर कदाचित प्रभु श्रीराम की प्रेरणा से उन्होंने कहा " अबकी दीपावली पर  आप ग्वालियर आइये और  सद्गुरु श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के दर्शन करिये  ! स्वामी जी की कृपा हुई तों उनके श्री मुख से ही इस परम चमत्कारिक "राम मंत्र" का उच्चारण स्वयं सुन कर अपना मानव जीवन धन्य करिये "!  

प्रियजन ,बिटिया के बड़े मामा के अनुरोध पर  मैं तब ग्वालियर गया , सौभाग्यवश श्री स्वामी जी महराज की कृपा मुझ नाचीज़ पर हो गई और  विश्वास करिये  मुझे अपने जीवन की सबसे अनमोल सम्पदा मिली - "नाम दीक्षा"  !

पायो निधि राम नाम
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पायो निधि राम नाम , सकल शांति सुख निधान  
पायो निधि राम नाम

सिमरन से पीर हरे ,  काम क्रोध मोह जरे 
आनंद रस अजर झरे ,होवे मन पूर्ण काम  
पायो निधि राम नाम






रोम रोम बसत राम, जन जन में लखत राम
सर्व व्याप्त ब्रह्म राम , सर्व शक्तिमान राम 
पायो निधि राम नाम

ज्ञान ध्यान भजन राम,पाप ताप हरन काम 
सुविचारित तथ्य एक ,आदि अंत राम नाम 
पायो निधि राम नाम
[ "भोला" ]

चलिए कथा आगे बढाएं
               
बड़े मामा की प्रिय उस छोटी सी गुडिया का नाम पड़ा श्री देवी ! आज वह ५३ वर्ष की हो गयी है !  जन्म से ही अपने ननिहाल  में, अपने ददिहाल में  राम नाम की मधुरतम झनकार सुनते सुनते तथा ससुराल के परम आस्तिक परिवार में विधि विधान से वेद मंत्रों के उच्चारण करते करते , उसके ह्रदय सिंहासन पर "श्री राम" अति दृढ़ता से आसीन हो गये ! और अब गुरुजनों की विशेष अनुकम्पा से -----

इस बार के यू. एस. ए, के खुले सत्संग में 
श्रद्धेय गुरुदेव श्री विश्वमित्र जी महाराज ने उसे नाम दान दिया !  

क्रमशः 
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निवेदक दास की रहनी सहनी और करनी पर स्वामी जी महाराज के श्री चरणों की अमिट छाप एवं नाम देते ही अधिष्ठान जी की प्राप्ति से सम्बंधित कथाएँ -  अगले अंकों में !
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# बड़े मामा- 
 स्वर्गीय श्री शिव दयाल जी श्रीवास्तव ,भूतपूर्व चीफ़ जस्टिस मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय 
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निवेदक: व्ही. एन.  श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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3 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

बहुत दिनों बाद आपकी मधुर आवाज़ में ये भजन सुना। बहुत आनंद आया। आप स्वस्थ रहे, सानंद रहे ,आपकी लेखनी सतत चलती रहे। --प्रणाम।

G.N.SHAW ने कहा…

काका जी - प्रणाम अब आप का सेहत कैसा है ? अस्वस्थता के बारे में जान कर दुःख हुआ !बहुत दिनों से आप के ब्लॉग पर न आ सका था ! क्षमाप्रार्थी हूँ ! ईश्वर की कामना बनी रहें !

Bhola-Krishna ने कहा…

स्नेहमयी जील जी , स्नेही गोरख जी , प्यारे प्रभु की असीम कृपा है ! उम्र के लिहाज़ से अत्याधिक स्वस्थ हूँ ! शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद ! अलिखित भाव तरंगें आती जातीं रहती है ! राम कृपा सब पर बनी रहे -- शुभचिंतक - "भोला" (अंकल, बाबा, काका )