शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 1 8 4

हनुमत कृपा
निज  अनुभव 

उस विलक्षण बालक ने मेरे मन में छिड़ा "भावना - कर्त्तव्य" युद्ध तत्काल शांत कर दिया था ! उसने न जाने कहां से अकस्मात प्रगट हो कर खेल खेल में वह काम कर दिया था जो कि वास्तव में मुझे करना था और जिसे मैं अपने संस्कार और आस्था के बंधन के कारण नहीं करना चाहता था!उस काम को कर के उसने न केवल मुझे अकर्मण्यता के अपमान से बचाया था बल्कि उसने हमारी भारत सरकार को भी वहाँ की सरकार के साथ हुए द्विपक्षीय समझौता भंग करने का गुनहगार होने से बचा लिया !

उसके इन उपकारों के कारण मैं हृदय से उसका अति आभारी बन गया था !पर विडम्बना तो देखिये कि न तो मैं उसे धन्यवाद दे पाया और न किसी प्रकार मैं उससे अपना आभार  प्रगट कर सका क्यूंकि वह वहाँ से अचानक अदृश्य हो गया था ! मैंने तब उसे इधर उधर, आगे पीछे हर तरफ ढूँढा था पर वह कहीं नहीं दिखा था!मैंने अपने प्रोजेक्ट कोऔरडिनेटर     से उसे ढूँढने को कहा जिससे ह्म उसका सम्मान करते हुए वहाँ की सरकार से उसे कुछ पारतोषिक दिलवा सकें !पर ह्मारे सारे प्रयास निष्फल रहे! उस दिन वह कहीं नहीं मिला !  मैं ह़ी क्यों मेरे सभी संगी -साथी भी आश्चर्यचकित रह गये !अवश्य ही आप भी कुछ मेरी तरह ही चकरा गये होंगे सोंच में पड़ गये होंगे की आखिर वह था कौन ?

बहुत दिनों तक उस घटना क्रम को याद कर मुझे रोमांच  हो जाता था !मुझे ऐसा लगता था की हो नहो ,वह नन्हा फरिश्ता जो मेरी मदद करने आया ,जिसने मुझे उस धर्म -संकट से उबारा,उसने अपनी करनी से मेरा  यह विश्वास तो सुदृढ़ कर ही  दिया की परमकृपालु प्रभु किसी न किसी रूप में हर पल विश्वासी साधकों के साथ रहते हैं और आवश्यकता पड़ते ही फ़ौरन शरणागत की मदद कर देते हैं ! मुझे कुछ कुछ यह भी लगने लगा की  उसी घटघट वासी भगवान ने उस बालक के रूप में प्रगट होकर मेरी मदद की !

मेरी ऎसी सोच को आप हिन्दी में क्या नाम देंगे ? मेरी समझ में नही आ रहा है इसलिए  तो आप से पूछ रहा हूँ !अंग्रेज़ी में तो शायद इसे Wishful Thinking  कहते हैं !पर कभी कभी ऐसे wishful thoughts भी सच हो जाते हैं ! मेरा सच हुआ या नहीं ,आगे देखिये  !

क्रमशः 
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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