मंगलवार, 5 अक्टूबर 2010

JAI JAI JAI KAPI SUR # 181 (the 2nd BLOG of Oct,. 5,'10)


हनुमत कृपा 
एक "निज अनुभव" कथा का समापन 

अब तक मेरे दो प्रयास विफल हो चुके हैं !आपको निज अनुभव के समापन तक नहीं पहुंचा पाया !तीसरी बार अब कोशिश कर रहा हूँ! इस बार ,अपनी सफलता के लिए मै तो अपने ढंग से प्रार्थना कर ही रहा हूँ आप भी कृपया मेरी ओर से उनसे अर्ज़ करिये क़ि यदि मैं कुछ अनुचित न कर रहा हूँ तो वह मुझपर कृपा कर के मेरा यह संदेश मेरे प्रियजनों तक पहुँच जाने दे!

ऐसा लगता है क़ि कदाचित ह्मारे इष्ट देव चाहते हैं क़ि इस बार मैं अपना संदेश प्रारम्भ करने से पहिले  समुचित बल बुधि विद्या प्राप्त करने हेतु मैं  सर्व प्रथम अपने सद्गुरु और उसके बाद सर्व शक्तिमय दुःख भंजन श्री सीता रामजी, लखनलाल जी , भरत जी, शत्रुघ्न जी और अंत में अपने इष्ट कुलदेव  श्री  हनुमान जी की ,तुलसीकृत राम चरितमानस से सीखी भाषा में अति श्रद्दा भक्ति से वन्दना करू !
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बन्दों गुरु पद  पदुम परागा,   सुरुचि सुबास सरस अनुरागा!!
जनकसुता जगजननि जानकी अतिसय प्रिय करुणानिधानकी!!
ताके जुग पड़ कमल मनावउ  जासु कृपा निर्मल मति पावउ!!
पुनि मन वचन कर्म रघुनायक चरण कमल बन्दों सब लायक!!
राजिव नयन धरे धनु सायक भगत बिपति भंजन सुखदायक !!
प्रणवों प्रथम भरत  के चरना जासु नेम व्रत जाई न बरना!!
बन्दों लछमन पद जल जाता सीतल सुभग भगत सुख दाता!!
रिपुसूदन पड़ कमल नमामी सूर सुसील भरत अनुगामी!!
महावीर बिनवौं हनुमाना राम जासु जस आप बखाना!!


जय सिया राम ,प्रियजनों ,अभी इतना ही भेज कर देखूँ आप तक पहुंचता है या नहीं !जैसे जैसे ऊपर से प्रेरणा मिलेगी कथा समापन की ओर बढ़ेगी!

निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
 (आज का यह दूसरा संदेश है !इससे पूर्व आज ही एक संदेश और भेज चुका हूँ उसे पढ़कर मुंह मीठा कर लीजिएगा )















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