हनुमत कृपा
पिताश्री के अनुभव
प्रियजन, ह्मारे पिताश्री की यह कथा आज से लगभग १०० वर्ष पहले की है!
कुँए की जगत पर बैठे पिताश्री सोच रहे थे कि पिछले वर्ष ही वह मानव शरीर की चीर फाड़ करने में अपनी स्वाभाविक अरुचि के कारण ,पटना मेडिकल स्कूल के मेडिकल डिप्लोमा की पढ़ाई छोड़ कर भाग आये थे, जिसके कारण उन्हें बहुत लज्जित होना पड़ा था !और अब इस वर्ष दुबारा स्कूल लीविंग की परीक्षा पास न कर पाने पर तथा किसी अन्य प्रोफेशनल स्कूल में एडमिशन न मिल पाने पर वह क्या मुंह लेकर अपने बड़े भाइयों के सामने जाये? क्या करें वह यह नहीं समझ पा रहे थे !
लगभग २० वर्ष के हो चुके थे वह ! विवाहित थे ,उनकी पत्नी (हमारी प्यारी माँ ) हमारे पुश्तैनी घर बलिया में दो तीन वर्ष पहले ही गवना करवा के लायी जा चुकीं थीं !गनीमत यह थी कि कुलदेव श्री हनुमान जी की अपार कृपा से , घर के बुजुर्ग महिलाओं की दैनिक मनौतियों और अम्मा पर थोपे जाने वाले कटु उलाहनों के बावजूद ( नहीं बताउंगा आपको किस किस उपाधि से हमारी अम्मा को विवाह के २-३ वर्ष बाद भी ,"माँ" न बन पाने के कारण विभूषित किया जाता था )!चलिए छोड़ें इस उपेक्षनीय प्रसंग को !ह्मारे माता पिता के जीवन में तब तक किसी बच्चे का पदार्पण नहीं हुआ था जो उनके लिए वरदान जैसा ही था !
प्रियजन सो ह्मारे पिताश्री उस गर्म दुपहरी में कुँए के जगत पर ,अपनी असफलताओं से उत्पन्न ग्लानि में डूबे हुए बैठे थे और यह निश्चित नहीं कर पा रहे थे कि ऎसी स्थिति में अब वह कहाँ जाएँ और ,क्या करें ? वह केवल दो जगह जा सकते थे !या तो वह उसी नगर आजमगढ़ में (जहाँ वह उस समय थे) अपने मधुर भाषी ,बड़े भाई वहाँ के सबजज बाबू हरिहर प्रसाद जी (जिनकी सलाह और आदेशों का पालन करना वह अपना धर्म मानते थे ) के पास जाएँ या बलिया वापस जा कर अपने बड़े भैया बाबू हरनंदन प्रसाद जी (प्लीडर) के सामने सर झुकाए खड़े हो कर उनकी ऎसी ज़ोरदार फटकार सुनें जो भीतर नवविवाहिता उनकी पत्नी (हमारी अम्मा) को भी साफ साफ सुनाई पड़े !
ऐसे में "जब चारोँ तरफ अन्धियारा हो" "आशा का दूर किनारा हो ""जब कोई न खेवन हारा हो " तब वो ही बेड़ा पार करे " प्रियजन !-- बोलो कौन ? तुम्हारा प्रियतम प्रभु !
ह्मारे बाबूजी अपने जन्मजात संस्कार और पारिवारिक मान्यताओं पर आधारित आस्था से पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ कुलदेव श्री महाबीर जी का सिमरन करने लगे !
काज कियो बड़ देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि विचारो,
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसे नहीं जात है टारो,
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो,
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो !
कुँए की जगत पर बैठे पिताश्री सोच रहे थे कि पिछले वर्ष ही वह मानव शरीर की चीर फाड़ करने में अपनी स्वाभाविक अरुचि के कारण ,पटना मेडिकल स्कूल के मेडिकल डिप्लोमा की पढ़ाई छोड़ कर भाग आये थे, जिसके कारण उन्हें बहुत लज्जित होना पड़ा था !और अब इस वर्ष दुबारा स्कूल लीविंग की परीक्षा पास न कर पाने पर तथा किसी अन्य प्रोफेशनल स्कूल में एडमिशन न मिल पाने पर वह क्या मुंह लेकर अपने बड़े भाइयों के सामने जाये? क्या करें वह यह नहीं समझ पा रहे थे !
लगभग २० वर्ष के हो चुके थे वह ! विवाहित थे ,उनकी पत्नी (हमारी प्यारी माँ ) हमारे पुश्तैनी घर बलिया में दो तीन वर्ष पहले ही गवना करवा के लायी जा चुकीं थीं !गनीमत यह थी कि कुलदेव श्री हनुमान जी की अपार कृपा से , घर के बुजुर्ग महिलाओं की दैनिक मनौतियों और अम्मा पर थोपे जाने वाले कटु उलाहनों के बावजूद ( नहीं बताउंगा आपको किस किस उपाधि से हमारी अम्मा को विवाह के २-३ वर्ष बाद भी ,"माँ" न बन पाने के कारण विभूषित किया जाता था )!चलिए छोड़ें इस उपेक्षनीय प्रसंग को !ह्मारे माता पिता के जीवन में तब तक किसी बच्चे का पदार्पण नहीं हुआ था जो उनके लिए वरदान जैसा ही था !
प्रियजन सो ह्मारे पिताश्री उस गर्म दुपहरी में कुँए के जगत पर ,अपनी असफलताओं से उत्पन्न ग्लानि में डूबे हुए बैठे थे और यह निश्चित नहीं कर पा रहे थे कि ऎसी स्थिति में अब वह कहाँ जाएँ और ,क्या करें ? वह केवल दो जगह जा सकते थे !या तो वह उसी नगर आजमगढ़ में (जहाँ वह उस समय थे) अपने मधुर भाषी ,बड़े भाई वहाँ के सबजज बाबू हरिहर प्रसाद जी (जिनकी सलाह और आदेशों का पालन करना वह अपना धर्म मानते थे ) के पास जाएँ या बलिया वापस जा कर अपने बड़े भैया बाबू हरनंदन प्रसाद जी (प्लीडर) के सामने सर झुकाए खड़े हो कर उनकी ऎसी ज़ोरदार फटकार सुनें जो भीतर नवविवाहिता उनकी पत्नी (हमारी अम्मा) को भी साफ साफ सुनाई पड़े !
ऐसे में "जब चारोँ तरफ अन्धियारा हो" "आशा का दूर किनारा हो ""जब कोई न खेवन हारा हो " तब वो ही बेड़ा पार करे " प्रियजन !-- बोलो कौन ? तुम्हारा प्रियतम प्रभु !
ह्मारे बाबूजी अपने जन्मजात संस्कार और पारिवारिक मान्यताओं पर आधारित आस्था से पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ कुलदेव श्री महाबीर जी का सिमरन करने लगे !
काज कियो बड़ देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि विचारो,
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसे नहीं जात है टारो,
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो,
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो !
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