सब हनुमत कृपा से ही क्योँ?
निज अनुभव मैं अनमना ,हाथ में वह यंत्र थामे धीरे धीरे गन्तव्य की ओर बढ़ रहा था! पर मेरे मन में मेरी पारिवारिक मान्यताओं ,जन्मजात आस्थाओं और सांसारिक कर्तव्यों में भयंकर युद्ध चल रहा था ! महापुरषों का वह कथन याद कर के क़ि"भावना से कर्तव्य ऊंचा है" मैंने वह यंत्र उठा लिया था ठीक वैसे ही जैसे महाभारत में योगेश्वर श्री कृष्ण का आदेश मान कर अर्जुन ने गांडीव उठाया था ! पर मेरी स्थिति वैसी नहीं थी ! भाई मैं न तो अर्जुन सा शिष्य था और न मेरे सन्मुख योगेश्वर श्रीकृष्ण सा सद्गुरु ही था !
आसमान से उतरे उस नन्हे फरिश्ते का मुझसे बार बार यह इसरार करना क़ि मैं उसे वह मशीन दे कर ,वह कार्य करवालूँ जिसे करने से मैं झिझक रहा हूं , मुझे अच्छा तो लग रहा था पर ऐसा करना नियम के विरुद्ध होता ! दूसरी ओर उस बच्चे की आँखों से झांकती उसके आत्म विश्वास की प्रचंड ज्योति और उसके शारीरिक हाव भाव मे झलकती विलक्ष्ण इच्छा शक्ति ने मुझे भरोसा दिला दिया क़ि शरणागत वत्सल मेरे प्रियतम प्रभु ने उस विषम परिस्थिति में मेरी रक्षा करने के लिए ही इस देवदूत को भेजा है !
अंततोगत्वा भावनाओ ने कर्तव्य बोध को पछाड़ दिया ! मैंने वहीं माँइक मंगवाकर एलान किया क़ि " अत्यंत गौरव की बात है क़ि इस प्रगतिशील देश का यह नन्हा नागरिक यह आधुनिक मशीन चलाने को प्रस्तुत है !हमे इसे चांस देना चाहिए" मैंने एलान समाप्त भी नही किया था क़ि उसने मेरे हाथ से माइक लेकर उसपर अपना पूरा परिचय बताया और प्रार्थना की क़ि उसे वह मशीन चलाने दी जाय !
क्र्मश:
निवेदक:- वह.एन. श्रीवास्तव "भोला":
. कौन हमारी रक्षा कर रहा है? भयंकर जानलेवा महामारिओं तथा आकस्मिक विपदाओं से कौन हमें बचा रहा है ?
कौन हमारे अंग संग अभेद कवच बना कुसमय के घातक प्रहारं से हमारी रक्षा किये जा रहा है?. कौन इतनी कृपा कर रहा है हम पर?
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