गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 1 9 0

हनुमत कृपा 
निज अनुभव

जैसे जैसे वह आवाज़ निकट आ रही थी दादा जी का डर बढ़ता जा रहा था ! उस अनजाने व्यक्ति के खडाऊं की खटर पटर दादाजी के कान में पड ही रही थी ,साथ में उसके द्वारा  किया हुआ वह अनोखे ढंग का "जय श्री राम" उद्घोष दादाजी को अन्तर तक रोमांचित कर रहा था ! एक विचित्र आशंका से दादाजी काँप रहे थे !

तभी दादाजी को उनके कन्धों पर किसी की भारी हथेलियों का उत्साह वर्धक मधुर स्पर्श महसूस हुआ ! आगंतुक ने ठेठ भोजपुरी में उनसे कहा ( आपकी सुविधा के लिए मैं उसे खड़ी हिंदुस्थानी बोली में यहाँ लिख रहा हूँ )"बच्चे ! तूने कोई जुर्म नही किया है तू झूठमूठ के लिए ही इतना परेशान क्यों हो रहा  है ! ऐसे घर बार छोड़ कर  दर बदर भटकने और अपने नित्य कर्म त्यागने से क्या लाभ?" !फिर उसने अपने  बड़े से झोले में से पीतल का एक चमचमाता हुआ लोटा और मोटे गाढे का धुला हुआ गमछा  निकाल कर दादा जी को दिया और कहा ," आज मंगलवार है ,सामने के कुँए पर मुंह हाथ धो के आओ ,महाबीर जी का प्रसाद पाओ उसके बाद आगे बात होगी !"आश्चर्य चकित हो दादाजी यह सोचने लगे क़ि वह अनजान व्यक्ति कैसे जान गया क़ि वह गिरफ्तारी के भय से फरार एक अपराधी
हैं और दिन भर के भूखे प्यासे हैं !

कुँए से लौटने के बाद दादा जी ने देखा कि आगंतुक के हाथ में एक दोना है जिसमे गरम गरम इमरतियाँ हैं , दोने के कोने में लाल सिदूर का निशान है जैसे अभी कोई हनुमान मन्दिर से प्रसाद चढा कर ला रहा हो !दादाजी को हर मंगलवार के शाम बलिया के अपने घर के आंगन में महाबीरी ध्वजा के नीचे हनुमान जी की मूर्ति पर चढाये जाने वाले प्रसाद की याद आयी!वह मन ही मन श्री हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे ! 

दादाजी को प्रसाद खिला कर अनजान आगंतुक ने दादाजी से कहा कि भोर होते ह़ी वह नहा धो कर ,ठीक से तैयार हो कर सामने के बड़े बंगले में आजायें जहाँ उनकी सुनवायी की पूरी व्यवस्था हो गयी है !अपने झोले में से एक जोड़ा धुला धुलाया वस्त्र निकाल कर आगंतुक ने वहीं छोड़ दिया और "जय श्रीराम" का उद्घोष कर जैसे आया था वैसे ही खडाऊं खड़खड़ाते हुए अन्धकार में अदृश्य हो गया  !

अगली सुबह दादाजी तैयार होकर उस बंगले की ओर गये जिसकी तरफ उस अनजाने व्यक्ति ने इशारा किया था !बंगले के मेन गेट पर खड़े बंदूकधारी पुलिस के सिपाही को देखते ही दादाजी के पैरों तले की धरती खिसक गयी ,उनके हाथ पाँव फूल गये और जुबान लडखडाने लगी !

क्रमशः 
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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