हनुमत कृपा
पिताश्री के अनुभव
उस जमाने की रीति रिवाज़ के अनुसार ,पढ़ लिखकर घर के लड़के कमाई करने के लिए बड़े शहरों में जाते थे लेकिन उनके परिवार बाल बच्चों के साथ गाँव के खानदानी -पुश्तैनी घरों में ही रहते थे ! इसी नियम के अनुसार बड़े पिताश्री भी आजमगढ़ में अकेले ही रहते थे ! उनका घर एक सुव्यवस्थित "अविवाहितों का डेरा " था जहाँ खाने पीने की,खेलने कूदने की और पूजा पाठ की सभी सुविधाएँ मौजूद थीं ! सरकार की ओर से उन्हें घर के कामकाज के लिए दो दो अर्दली मिले थे जो चौबीसों घंटे उनकी सेवा में रत रहते थे!
उनकी कोठी में बैठक के बांये हाथ वाला कमरा उनका दफ्तर था और दायें हाथ वाला उनका छोटा सा मंदिर !अकेले ही थे इसलिए कोर्ट के बाद ,उनका अधिकतर समय इस मन्दिर में ही कटता था ! श्री हनुमान चालीसा का पाठ तो सुबह शाम बिन नागा होता ही था नित्य प्रातः कोर्ट जाने से पहले वह वहाँ श्रीमदभगवदगीता का पाठ करते थे और सायं काल में वह तुलसीदास जी के रामचरितमानस के कुछ अंश अवश्य पढ़ते थे! जिस दिन उन्हें किसी जटिल मुकद्दमें का निर्णय सुनाना होता था ,वह बहुत सबेरे से ही मन्दिर में ध्यानस्थ हो चिन्तन करने लगते थे !यह सब ह्मारे पिताश्री ने हमे अपने अनुभव सुनाते समय बताया था ! लेकिन ====
प्रियजन मैंने उपरोक्त विवरण इतने विस्तार से इसलिए दिया है क्योंकि मैंने स्वयं बड़े पिताश्री की ऎसी रहनी को अपनी आँखों से १९३७ से १९३९ तक देखा है ! उन दिनों वह कानपुर के District & Session Judge के पद पर कार्यरत थे! कानपुर आते ही उन्होंने बड़े प्यार से पिताश्री को अपने साथ ही ,गंगातट पर स्थित सरकारी , 57 Cantonment वाली विशाल कोठी में रहने को मजबूर किया था ! मैं तब ८ -९ वर्ष का ही था पर उन दो ढाई वर्षों में मैने जो देखा सुना और महसूस किया वह सब मुझे अभी तक बहुत अच्छी तरह याद है! बड़े पिताश्री के अनुकरणीय रहनी से ह्म लोगों को बचपन में ही बहुत कुछ सीखने को मिला !
चलिए "पिताश्री के अनुभव" कथा को आगे बढायें !कोठी के मन्दिर में दोनों भाइयों ने बड़ी श्रद्धा के साथ अपने इष्ट देव श्री हनुमानजी की वन्दना की और उनकी महती कृपा के लिए
उन्हें अनेकानेक धन्यवाद दिये !हनुमानजी क़ी कृपा से पिताश्री के जीवन का अंधकार उसी शाम से आशा की ज्योतिर्मय किरणों से जगमगाने लगा !
क्रमशः
निवेदक : वही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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