गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 1 8 3

हनुमत कृपा  
निज अनुभव 

वह बालक शायद मेरी असमंजसता भांप गया ! उसने नीचे से मेरा शर्टजेक खेंच कर एक
बार फिर  गिडगिडाते  हुए कहा कि मैं उसे वह यंत्र चलाने दूँ वह मुझे निराश नहीं करेगा ! ("Let me do that for you Sir. I shall not betray your confidence " )कुछ पल रुक कर वह फिर बोला कि शायद मुझे विश्वास नहीं हो रहा है उसने वह यंत्र पास के एक देश में बखूबी चलाया है ! ("Seems you don't believe me Sir I have worked with this machine for months in the country down south " ) इसके  साथ  ही  उसने वह  मशीन मुझसे झपट कर ले ली ( बिलकुल वैसे ही ,जैसे नाती-  पोते अपने बाबा-दादी से और मथुरा वृन्दावन   के बन्दर ,भक्तों से प्रसाद झपट लेते हैं )! एक झटके में  ह़ी उसने मशीन का स्विच ओंन कर दिया ,मशीन पावर पॉइंट से कनेक्टेड थी ,चल पड़ी ! तुरत ही स्विच ऑफ कर के उसने मशीन मुझे लौटा दी और मेरी आँखों में देखते हुए जैसे प्रश्न किया  कि अब भी विश्वास हुआ या नहीं ? ("Do you believe me now Sir "?  मैं अवाक् था ,मुझे विश्वास हो गया कि अवश्य ही कोई असाधारण बालक  है!  


उसकी वाणी और उसकी आँखों की चमक में एक असाधारण चारित्रिक बल   और अदम्य  आत्मविश्वास  झलक रहा था ! सम्मोहित सा होकर मैंने  स्टेज से माइक मंगवाया और यह एलान कर दिया कि बड़ी सौभाग्य की बात है  कि उस देश का ही एक नन्हा नागरिक वह काम कर दिखाना चाहता है  जिसके लिए मुझे आमंत्रित किया गया है   ,उसे अवसर देना चाहिए !(" Comrades ! It is a matter of great pride and honour for this country that we have amongst us, a young man who is offering to demonstrate the working of this newly imported machine and I feel we should not deny him this honour .May I with your approval Comrades pass on the machine to him ")तालियाँ बजीं ,सब प्रसन्न थे कि जिस  कार्य के लिए विदेशी एक्सपर्ट बुलाये गये थे वही कार्य उस देश का एक बच्चा करने जा रहा था !


बालक ने बड़ी कुशलता से मशीन चलाई !एक बार फिर तालियों की आवाज़  से सभा गृह गूँज उठा !जनता ने उस बालक को  घेर लिया और मिनिस्टर साहेब ने सम्बंधित सरकारी विभाग को आदेश दिया कि बन जाने के बाद नये स्लौटर हाउस में उस होनहार बालक को उचित नौकरी दी जाये !तुरत  ही विभागीय अधिकारियों ने उसका नाम, अता=पता ,पूछ कर नोट कर लिया !केक कटा, नाना प्रकार के सामिश भोज्य पदार्थ सर्व हुए ,सबने जी भर के खाया पिया !


स्टील बेंड एक बार फिर बजा ,पूरे जोशोखरोश के साथ नाच गाना हुआ!सब मस्ती में झूम रहे थे! मेरी निगाह ,जनता की भीड़ में उस नन्हे फ़रिश्ते को खोज रही थी! पर वह कहीं नहीं दिखा ! स्थानीय अधिकारियों ने उसे ढूढ़ निकालने का वादा  किया !


तीन फुट का वह नन्हा फरिश्ता जो काले बादलों में छुपी बिजली की भांति बस एक बार आकाश से उतरा ,मुझे मेरे धर्म संकट से उबारा और फिर उसी शीघ्रता से कहीं और चला गया !जो  हुआ  सब मेरी आँखों के सामने हुआ फिर भी मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं सपना देख रहा हूँ ! मुझे अपनी आँखों पर ही विश्वास नहीं हो रहा था ! देखें आगे और क्या होने को है!


क्रमशः 
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

कोई टिप्पणी नहीं: