सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 1 8 7

हनुमत कृपा
निज अनुभव
मेरी यह सोच (wishful thinking ) कि परम कृपालु परमात्मा ने स्वयं धरती पर उस नन्हे 
फरिश्ते के रूप में प्रगट  होकर मेरे सम्मान की रक्षा के लिए वह कसाइयों वाला काम बिना
किसी धार्मिक अथवा सामाजिक प्रतिरोध का विचार किये , निःसंकोच कर डाला संभवतः आपको उचित न लगे और आप इसकी सत्यता पर विश्वास न करें!आप ही क्यों भैया आज ह्मारे समाज के अधिक पढ़े लिखे लोग ऎसी बातों पर विश्वास नहीं करते ! वे इन बातों को असत्य-अमान्य मानते हैं! यह एक चिंता का विषय बन गया है कि आज  हमारा "विश्वास" इतना अस्थिर क्यों हो गया है ?

प्रियजन ,हमने ,आपने ,सबने ही बचपन में ,अपनी माँ.मौसी ,दादी ,मामी या नानी से, सोते समय ऎसी अनेकानेक कहानियाँ सुनी हैं जिनमें भगवान अपने भक्तों की आन बान शान की रक्षा के लिए सचमुच क्षीर सागर का विश्राम गृह छोड़ कर धरती पर आजाते हैं ! शरणागत वत्सल श्री हरि उन Bedtime Stories में न जाने कितने भिन्न भिन्न रूपों में प्रगट हो कर शरणागत का कष्ट निवारण करते हैं! 

चलिए ह्म एक बार  फिर उन दादी नानी की कहानियों को दुहरा लें ! इसमें मेरा स्वार्थ केवल यह है कि इसी बहाने मेरी ,बहुत दिनों से इस ब्लॉग के चक्कर में छूटी "हरि भजन सिमरन" की साधना कम से कम आज तो हो ही जायेगी ! 

बहुत बचपन में, ४-५  वर्ष की अवस्था तक दादी के साथ उनके बिस्तर पर ही सोता था ! लगभग रोज़ प्रात: ही  दादी का एक भजन सुनता था !उनकी वाणी से ऐसा लगता था जैसे वह किसी परिचित को पुकार रही हैं ! उनके स्वरों  में असाधारण करुणा, पीड़ा ,और कृपा प्राप्ति की पिपासा झलकती थी ! वह भजन था ---
हे गोविंद राखो सरन अब तो जीवन हारे !!
नीर   पिवन  हेतु गयो सिन्धु के किनारे ,
सिन्धु बीच बसत ग्राह चरण धरि पछारे !!
चार  प्रहर  युद्ध भयो  ले गयो   मझधारे , 
नाक  कान  डूबन लागे  कृष्ण को पुकारे !! 
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सूर कहे  श्याम सुनौ  सरन  ह्म तुम्हारे,      
अबकी  बेर  पार   करो  नन्द के  दुलारे !!

श्रीमद भागवत के आठवें स्कन्द मे लिखित यह पौराणिक काल की गजेन्द्र मोक्ष की कथा ह्म सब ने सुनी है !हम-आप सब ही जानते  हैं क़ि कैसे अस्त्र शस्त्र वाहन तक  छोड़ छाड कर शरणागत गज की जीवन रक्षा करने के लिए वह तीन लोक के स्वामी अन्तर्यामी प्रभु नंगे पाँव ही भागे चले आये थे 
भक्तों पर श्री हरि की अहेतुकी कृपा की अनगिनत -अनंत कथाएं हैं -
श्री हरि ने बालक प्रहलाद की जीवन रक्षा के लिए नरसिंह रूप धारण किया और स्तम्भ से प्रगट होकर राक्षस राज हिरंयकशिपू का संहार किया !.दुर्वासा ऋषि के क्रोध से भक्त शिरोमणि राजऋषि अम्बरीष की रक्षा भी "उन्होंने" ही की ! महाभारत में "उन्होंने" केवल अर्जुन के सारथी की भूमिका ही नही निभाई बल्कि नित्य प्रति सूर्यास्त के बाद जब सब महारथी अपने शिविरों में विश्राम करते थे योगेश्वर श्री कृष्ण ,थके हारे घायल अश्वों की सेवा सुश्रूषा में लग जाते थे ! कौन होगा उनके जैसा भक्तवत्सल ,कृपानिधान ? 
श्री हरि की लीला अपरम्पार है वह कब ,कहां, कैसे प्रगट होकर अपने प्रेमियों की रक्षा कर  देते हैं ,कोई नही कह सकता ! मैं भी अब कल ही लिखूंगा "वह" जो कुछ लिखलावायेंगे !

निवेदक:- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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