रविवार, 17 अक्टूबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 1 9 3

हनुमत कृपा
निज  अनुभव 

दरबार में  दादाजी का शरीर बैठा था लेकिन उनका मन उस समय "माँ दुर्गा" के पावन श्री चरणों पर पड़ा अपनी व्यथा की कथा कह रहा था ! जितनी देर वह वहाँ बैठे रहे ,उन्होंने माँ के अतिरिक्त किसी और की ओर ध्यान ही नहीं दिया उनके मन में सतत श्री श्री दुर्गा चालीसा का पाठ चलता रहा !वह तब जागे जब सब प्रार्थी अपनी फरियाद सुना कर वापस जा चुके थे और मुंशी जी ने उन्हें जोर से झकझोरा !

दादाजी हड़बड़ा कर उठ खड़े हुए और भोजपुरी भाषा में अपने पड़ोसी गाँव के महाबली  बाबू साहेब ठाकुर सज्जन सिंह के अन्याय ,अनाचार ,अत्याचार और असहाय गरीब गाँव वालों के उत्पीड़न  की रोमांचक  कहानी मेमसाहिब को सुनायी ! दादाजी ने आगे बताया कि उत्पीड़ित समाज से उनकी सहानुभूति होने के कारण से  उपजे बैमनस्य से बाबू साहेब ने दादाजी को निजी तौर पर सताने के लिए उन्हें एक झूठे फौजदारी मामले में फंसा दिया  है और स्थानीय दारोगा को खिला पिला कर उनके नाम से गिरफ्तारी का वारंट जारी करवा दिया है  ! अपने वंश और बिहार सूबे के डुमराओं राज के परम्परागत मधुर सम्बन्ध का वास्ता देते हुए दादाजी ने मेमसाहिबा को बताया कि लगभग एक सौ वर्षों से उनके वंशज  अपने क्षेत्र में, उस राज्य का तहसील वसूल करते आये हैं और कभी कोई शिकायत कहीं से नहीं आयी !बाबू सज्जनसिंह ह्मारे परिवार की बढ़ती ख्याति के कारण ईर्ष्यावश हमें   नीचा दिखाना चाहते हैं !

लेडी साहिबा को दादाजी की बात तर्कसंगत लगी ,उन्होंने मुंशी जी को आदेश दिया कि मोहम्दाबाद के मुख्तियार खानसाहेब अब्दुल शकूर को दादाजी के साथ बलिया भेज कर थानेदार को चेतावनी दी जाय कि ईमानदारी से तहकीकात कर के जल्द से जल्द उचित कारवायी करें अन्यथा स्वयं न्याय की तेज़ धार झेलने को तैयार रहें  !

खानसाहेब के साथ उनकी घोड़ा गाड़ी पर सवार हो कर दादाजी गाजीपुर से सीधे बलिया के पुलिस थाने आये और वहाँ ,वही हुआ जो होना चाहिए था - सत्य की विजय  !

क्रमशः 
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव  "भोला"

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