रविवार, 3 अक्टूबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 1 7 9

सब हनुमत कृपा से ह़ी क्यों ?
निज अनुभव 

मैं जो काम करने जा रहा था ,मैंने अपने इस जीवन में ,वैसा कार्य पहिले कभी नहीं किया था! सच पूछिए तो मैंने किसी और को भी वैसा काम करते कभी नहीं देखा था ! "मैं कैसे करूँगा यह?" मैं भयंकर धर्म संकट में था ! मैं अस्थिर ,लडखड़ाते कदम से काँपते  हाथों में वह यंत्र थामे धीरे धीरे सूली पर लटकी प्राणहीन --- की ओर बढ़ रहा था !

महापुरुषों  ने कहा है "जब सभी द्वार बंद  हो जाएंगे तब सच्चे साधक को ,प्रभु की अहेतुकी कृपा का एक अधखुला द्वार दृष्टिगोचर होगा जिसकी दरार से निकलती ज्योति रेख उसका मार्ग दर्शन करेगी "! प्रियजन ! ऐसे में  ही साधक निज संकट- निवारण  हेतु  अपने सदगुरु  को आवाज़ लगाते हैं और सद्गुरु उन्हें वह अधखुला द्वार दिखा देते हैं!

आठ दस कदम ही बढ़ पाया हूंगा क़ि कानों में  किसी बच्चे की मीठी आवाज़ पड़ी ! ऐसा लगा जैसे कोई छोटा बच्चा पीछे से किसी अपने को पुकार रहा है ! मुझे  कौन पुकारेगा ?यह सोच  कर मैंने उसकी पुकार अनसुनी कर दी और धीरे धीरे आगे बढ़ता रहा !पर उस ने 
मेरा पीछा न छोड़ा ! शायद वह मुझसे ही कुछ कहना चाहता है यह सोच कर मैं रुक गया !पीछे मुड़ कर देखा तो एक लगभग ३  फुट ऊंचा ७-८साल का बालक मेरे पीछे खड़ा था ! खाकी निकर और हाफ शर्ट पहने एक अनोखे रंग रूप वाला वह बच्चा न तो योरोपियन लग रहा था न एशियन  न अमरीकी रेड इंडियन लग रहा था न  ह्म भारतियों जैसा ही! 

मैं उससे पूछने ही वाला था क़ि वह मुझे क्यों पुकार रहा था क़ि उसने मेरी ओर हाथ फैला कर उस आयातित नये यंत्र को मुझसे वैसे ही मांगा ,जैसे कोई छोटा बच्चा ,नया खिलौना देख कर उससे खेलने के लिए मचलता है !हताशा और अवसाद भरे उन क्षणों में मुझे उस बालक का इस प्रकार मुझसे वह यंत्र मांगना बड़ा अटपटा और हास्यप्रद लग रहा था ! वह बालक शायद मेरे मन के भाव समझ गया ! मेरे और निकट आकर उसने शुद्ध अंग्रेज़ी भाषा में मुझसे कहा  " Sir! Pass that on to me, I shall do it for you " और उसने बार बार अपना  यह अनुरोध दुहराया ,सर मुझे दे दीजिये ये मशीन !मैं आपकी ओर से इसे चला कर दिखाऊंगा , मेरा विश्वास करिये  ,मैं इसे चलाना जानता हूँ " I shall do it for you, I know how to operate this machine .Sir Believe me ,I can do it " मुझे उसकी बात पर भरोसा नहीं हो रहा था ! जो यंत्र योरप में इसी वर्ष बना और यहाँ आज ही आया उसे इस छोटे से बच्चे ने कब और कहां देखा और चलाया होग़ा ? लेकिन उसकी आँखों की विचित्र चमक मे निहित उसके अदम्य आत्म-निश्वास ने मुझे यह सोचने पर  मजबूर कर दिया क़ि क्या मैं उसपर भरोसा कर सकता हूँ !

प्रियजन !शरणागत वत्सल कृपा निधान इष्ट देव ने अवाश्य ही मेरी पुकार सुनकर मेरी सहायता  के लिए यह नन्हा फ़रिश्ता धरती पर उतार दिया है ! क्या यह सच है ?

कल यह भेद खुलेगा 
निवेदक: व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"

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