हनुमत कृपा
निज अनुभव
मैंने अभी अपने निकटतम सम्बन्धियों ( माँ, बहनें और भाभी ) के निजी आध्यात्मिक अनुभवों का उल्लेख किया ! प्रियजन ये सभी घटनाएँ सत्य हैं !मैंने ह़ी नहीं मेरे अतिरिक्त अन्य कई पारिवारिक सदस्यों ने जिनमें ह्मारे परम पूज्यनीय चीफ जस्टिस श्री शिवदयालजी तथा उस समय के अनेक पहुँचे हुए संत-महात्मा जन भी थे , उन सभी ने उन विशेष चमत्कारिक घटनाओं को घटते देखा है ! किसी का भी नाम लेना अनुचित लगता है पर यह बता दूं क़ि उनमें से कुछ विभूतियाँ आज भी विश्व के कोने कोने में सहजता से भारतीय "आध्यात्म" भाव का प्रसार कर रही हैं !अस्तु इन पर अविश्वास करने का साहस मैं तो कभी कर ही नहीं सकता !
चलिए यह चर्चा यहीं छोड़ कर अपने तत्कालीन अनुभव कथा पर लौट आयें ! प्लेन का स्टेपनी पहिया भी अयोग्य निकला और निकटस्थ किसी टाउन में उचित रिपेयरिंग सुविधा न होने के कारण हमें रात भर के लिए उसी छोटे से नगर में रुकना पड़ा ! इस बीच हमें उस बालक को खोज निकालने के लिए कुछ और समय मिल गया! स्थानीय पोलिस अधिकारिओं के साथ साथ हमने अपना कोओरडिनेटर भेज कर उसके बताये हुए पते पर उसकी तलाश करवायी पर न तो उस नम्बर का कोई मकान वहाँ मिला और न वह बालक ही!आश्चर्य तो यह जान कर हुआ कि उस हुलिए का कोई बालक उस इलाके में कभी देखा ही नहीं गया !मन में वही प्रश्न क़ि कौन था वह ,कहाँ से आया था और अचानक ही कहां चला गया ? मेरा सर चकरा रहा था कुछ समझ में नहीं आ रहा था
प्रियतम प्रभु की उस अनपेक्षित कृपा के लिए धन्यवाद देने और उनसे अपना हार्दिक आभार व्यक्त करने के लिए उचित शब्दावली नहीं पा रहा था ! पर तभी सर्किट हाउस के एकांत में आराम कुर्सी पर बैठे बैठे मेरे मन में तुलसी मानस की ये चौपाइयां स्वतः मुखर हो गयी :--
नाथ सकल साधन मैं हीना
कीन्हीं कृपा जानि जन दीना
प्रभु की कृपा भयहु सब काजू
जनम हमार सुफल भा आजू
नाथ आज मैं काह न पावा
मिटे दोष दुःख दारिद दावा
अब कछु नाथ न चाहिय मोरे
दीँन दयाल अनुग्रह तोरे
थोड़ी देर को भूल जाएँ क़ि वह बालक कौन था ,अभी मुझे केवल यह समझ मे आया है कि मुझ को उस संकट से उबारने वाला और कोई नहीं बल्कि हमारा प्यारा प्रभु ही है ! और यही मेरा दृढ़ विश्वास है !.
तुलसी सीताराम को दृढ़ राखे विस्वास
कबहुँक बिगरत ना सुने रामचन्द्र के दास
कल सोचेंगे वह बालक कौन था !
निवेदक :-- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
चलिए यह चर्चा यहीं छोड़ कर अपने तत्कालीन अनुभव कथा पर लौट आयें ! प्लेन का स्टेपनी पहिया भी अयोग्य निकला और निकटस्थ किसी टाउन में उचित रिपेयरिंग सुविधा न होने के कारण हमें रात भर के लिए उसी छोटे से नगर में रुकना पड़ा ! इस बीच हमें उस बालक को खोज निकालने के लिए कुछ और समय मिल गया! स्थानीय पोलिस अधिकारिओं के साथ साथ हमने अपना कोओरडिनेटर भेज कर उसके बताये हुए पते पर उसकी तलाश करवायी पर न तो उस नम्बर का कोई मकान वहाँ मिला और न वह बालक ही!आश्चर्य तो यह जान कर हुआ कि उस हुलिए का कोई बालक उस इलाके में कभी देखा ही नहीं गया !मन में वही प्रश्न क़ि कौन था वह ,कहाँ से आया था और अचानक ही कहां चला गया ? मेरा सर चकरा रहा था कुछ समझ में नहीं आ रहा था
प्रियतम प्रभु की उस अनपेक्षित कृपा के लिए धन्यवाद देने और उनसे अपना हार्दिक आभार व्यक्त करने के लिए उचित शब्दावली नहीं पा रहा था ! पर तभी सर्किट हाउस के एकांत में आराम कुर्सी पर बैठे बैठे मेरे मन में तुलसी मानस की ये चौपाइयां स्वतः मुखर हो गयी :--
नाथ सकल साधन मैं हीना
कीन्हीं कृपा जानि जन दीना
प्रभु की कृपा भयहु सब काजू
जनम हमार सुफल भा आजू
नाथ आज मैं काह न पावा
मिटे दोष दुःख दारिद दावा
अब कछु नाथ न चाहिय मोरे
दीँन दयाल अनुग्रह तोरे
थोड़ी देर को भूल जाएँ क़ि वह बालक कौन था ,अभी मुझे केवल यह समझ मे आया है कि मुझ को उस संकट से उबारने वाला और कोई नहीं बल्कि हमारा प्यारा प्रभु ही है ! और यही मेरा दृढ़ विश्वास है !.
तुलसी सीताराम को दृढ़ राखे विस्वास
कबहुँक बिगरत ना सुने रामचन्द्र के दास
कल सोचेंगे वह बालक कौन था !
निवेदक :-- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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