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सब हनुमत कृपा से ही क्यों ?
निज अनुभव
यह तो मेरा अनुमान था क़ि मैं "बलि का बकरा" बनने जा रहा हूँ ! पर मेरा प्रियतम प्रभु मझसे क्या करवाना चाहता है अथवा उसके" मन में क्या है यह तो उसके सिवाय कोई भी नहीं जान सकता है फिर मै नादान कैसे जानता ? एक मशहूर कहावत है "मोरे मन कछु और है करता के कछू और"
मिनिस्टर महोदय का एलान सुन कर मैं अन्तर तक काँप गया था !उनका अनुरोध था क़ि मैं उस विशेष "गन" में गोली भर कर नीचे पंडाल के दूसरे छोर पर ,अब,खूटे से कसके बंधी उस प्यारी प्यारी गाय को हलाल करूं !
वह चाहते थे क़ि एक हिन्दू जो गाय को माता मान कर उसकी पूजा करता है ,अपने हाथों से ही अपनी गौ माता की हत्या करे ! मैं एक निष्प्राण पत्थर की मुर्ति बना कुर्सी से चिपका बैठा रहा ! किसी ने मंत्री महोदय से कान में कुछ कहा - शायद यह क़ि "भारतीय हिन्दू गौ हत्या को पाप समझते हैं " जिस पर थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए वह कुछ बड़बड़ाये !मैंने उनकी बात सुनी ,दुःख हुआ,पर क्या करता, मैं विवश था |
मंत्री महोदय स्वयं गन लेकर उधर की ओर चल पड़े जिधर गाय बंधी थी!स्टेज के सभी वी आई पी अतिथि भी उनके पीछे चल दिए! औपचारिकता निभाते हुए मैं भी उनके साथ हो लिया | नीचे उतर कर हम सब उस श्वेत-श्यामल वर्ण वाली सुंदर गाय को घेर कर खड़े हो गये | प्रियजन , अपनी इन्ही आँखों से मैंने देखा था कितना प्यार भरा था गौमाता की प्यारी प्यारी ,बड़ी बड़ी कजरारी आँखों में !वह हम सब की ओर बहुत प्यार से देख रही थी !वैसे ही जैसे चारों धाम की यात्रा पर जाने से पहले एक वयो वृद्ध माँ यह सोंच कर क़ि नजाने उस यात्रा से वह लौट पाएगी या नहीं ,बड़े प्यार से अपने सपूतों को निहारती हुई उन पर आशीर्वाद की झड़ी लगाती है!
पर तभी हम सब के सामने ,मिनिस्टर साहेब ने गाय के माथे पर गोली दाग दी! जो हुआ और जो इन आँखों ने देखा वह मैं बयान नहीं कर पाउँगा !उसका ख्याल आते ही आँखें भर आतीं हैं और कंठ अवरुद्ध हो जाता है! अस्तु उस समय का वह करुण द्रश्य मैं अभी यहाँ नहीं खींच पाउंगा जिसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
केवल इतना याद है क़ि बांस के डंडों के सहारे गर्दन टेके निर्जीव गौ माता की खुली हुई आँखों से तब भी आशीर्वाद के अश्रुकण झाँक रहे थे!
प्रियजन,अभी बहुत कुछ होना है !आज के अनुभव से कहीं अधिक महत्वपूर्ण अनुभव कल के संदेश में लिखूँगा !
निवेदक:- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
वह चाहते थे क़ि एक हिन्दू जो गाय को माता मान कर उसकी पूजा करता है ,अपने हाथों से ही अपनी गौ माता की हत्या करे ! मैं एक निष्प्राण पत्थर की मुर्ति बना कुर्सी से चिपका बैठा रहा ! किसी ने मंत्री महोदय से कान में कुछ कहा - शायद यह क़ि "भारतीय हिन्दू गौ हत्या को पाप समझते हैं " जिस पर थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए वह कुछ बड़बड़ाये !मैंने उनकी बात सुनी ,दुःख हुआ,पर क्या करता, मैं विवश था |
मंत्री महोदय स्वयं गन लेकर उधर की ओर चल पड़े जिधर गाय बंधी थी!स्टेज के सभी वी आई पी अतिथि भी उनके पीछे चल दिए! औपचारिकता निभाते हुए मैं भी उनके साथ हो लिया | नीचे उतर कर हम सब उस श्वेत-श्यामल वर्ण वाली सुंदर गाय को घेर कर खड़े हो गये | प्रियजन , अपनी इन्ही आँखों से मैंने देखा था कितना प्यार भरा था गौमाता की प्यारी प्यारी ,बड़ी बड़ी कजरारी आँखों में !वह हम सब की ओर बहुत प्यार से देख रही थी !वैसे ही जैसे चारों धाम की यात्रा पर जाने से पहले एक वयो वृद्ध माँ यह सोंच कर क़ि नजाने उस यात्रा से वह लौट पाएगी या नहीं ,बड़े प्यार से अपने सपूतों को निहारती हुई उन पर आशीर्वाद की झड़ी लगाती है!
पर तभी हम सब के सामने ,मिनिस्टर साहेब ने गाय के माथे पर गोली दाग दी! जो हुआ और जो इन आँखों ने देखा वह मैं बयान नहीं कर पाउँगा !उसका ख्याल आते ही आँखें भर आतीं हैं और कंठ अवरुद्ध हो जाता है! अस्तु उस समय का वह करुण द्रश्य मैं अभी यहाँ नहीं खींच पाउंगा जिसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
केवल इतना याद है क़ि बांस के डंडों के सहारे गर्दन टेके निर्जीव गौ माता की खुली हुई आँखों से तब भी आशीर्वाद के अश्रुकण झाँक रहे थे!
प्रियजन,अभी बहुत कुछ होना है !आज के अनुभव से कहीं अधिक महत्वपूर्ण अनुभव कल के संदेश में लिखूँगा !
निवेदक:- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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