शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 1 7 8

सब हनुमत कृपा से ही क्यों ?
निज अनुभव 

उत्सव का प्रथम अर्ध भाग सम्पन्न हो चुका था ! सभी सम्मानित अतिथियों ने पुनः अपना अपना आसन ग्रहण किया! स्टेज पर एक बार फिर चहल पहल हो गयी  ! उपहार  स्वरूप इंग्लॅण्ड से आयी स्कोच का एक कार्टन खोला गया! मिनिस्टर महोदय ने उसमे से एक बोतल खोली और उनकी सेक्रेट्री महोदया ने बियर के क्रेट मे से अनेक बोतलें खोलीं और आगंतुकों में प्रेम से वितरित कीं ! स्टील बेंड  पर फिर से करीबियन - क्रियोली गीतों की धुनें गूँज उठी! नयी इम्पोर्टेड गन से मंत्री जी  के हाथों हुई उस "गौ हत्या" समारोह के निर्विघ्न समापन की खुशी में १०-१५ मिनिट तक सभी लोग चुस्कियां ले लेकर नाचते गाते रहे !

अभी विलायत से प्राप्त एक और आधुनिक यंत्र का उद्घाटन होना शेष था ! अस्तु नाच गाने के बाद पुनः कार्यक्रम प्रारंभ हुआ ! आयातित यंत्रों के डिब्बे में से वह विशेष यंत्र भी निकाला गया !स्थानीय परम्परा के अनुरूप ,उस नये यंत्र पर "बियर" के छीटे डाल कर उसका पवित्रीकारण क़िया गया !
उसके बाद मंत्री महोदय ने मेरी बगल में बैठे गवर्नर महोदय से बहुत धीरे धीरे ,पर ,मुझे सुनाते हुए कहा "Now that the cow is no more alive, he should have no objection" और मदिरा की बूंदों से पवित्र किया हुआ वह यंत्र मेरी ओर बढाते हुए माईक पर एलान किया "So it is your turn now Comrade Srivastav to demonstrate the efficacy of this instrument which the foreign Government has so kindly gifted us "
मैंने इससे पाहिले कभी वह मशीन देखी भी नही थी ,चलाना तो दूर की बात है !उसके साथ के कागज़ जल्दी जल्दी पढ़ कर मैंने जाना क़ि वह यंत्र ,पशुओं की खाल उतारने के लिए उस विकसित देश में हाल में ही बना है और उसका प्रेक्टिकल ट्रायल करने के लिए उसे पिछड़े देशों में भेजा जा रहा है ! मैं उस समारोह में अपने देश के राजदूत को रिप्रेज़ेन्ट कर रहा था! इस स्थिति में मुझे मंत्री महोदय की बात दुबारा टालना अनुचित लग रहा था!
बिजली के तार से वह यंत्र पावर पॉइंट से जोड़ दिया गया और मैं वह यंत्र हाथ में ले कर स्टेज से नीचे उतरा और बांस की बल्लियों पर उलटी लटकी गाय की निर्जीव काया की ओर चल पड़ा! मेरे मन में विचार-शक्ति और कर्म-शक्ति का भयंकर संघर्ष हो रहा था मैं मन ही मन अर्जुन की भांति  अपने प्रियतम प्रभु से प्रार्थना कर रहा था 
आया शरण  हूँ आपकी  मैं  शिष्य शिक्षा दीजिए 
निश्चित कहो कल्याण कारी कर्म क्या मेरे लिए  
मेरे अपने प्रियजनों मुझे पूरा विश्वास है,चाहे कोई और समझे या न समझे आप तो अवश्य ही उस समय के मेरे अंतरमन की ग्लानि,दुःख और पीड़ा का अनुमान लगा ही सकते हैं! 


कल आप जान लेंगे क़ि प्यारे प्रभु ने कैसे मुझे उस धर्म संकट से उबारा !
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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