बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 1 8 9



हनुमत कृपा 
प्रियजन मेरे अपने इस जीवन के ८१वर्षों के अनुभव तथा मेरे अपने पूर्वजों के सैकड़ों वर्ष पुराने अनुभवों के Verified and Certified authentic & true statements को स्वयं देखने और पढने के बाद मेरा तो अब यह सुनिश्चित मत है क़ि अष्टसिद्धि नवनिधि के अधिपति पवनपुत्र श्री हनुमान जी ने ही उस  "नन्हे फरिश्ते" के रूप में प्रगट  होकर साउथ अमेरिका  के उस Cattle Slaughter House में ह्मारे सम्मान की  रक्षा की थी ! इतनी द्रढ़ता से मैं यह बात कैसे कह सकता हूँ  सुनिए -----
ह्मारे परिवार में ऐसा अनेक बार हुआ है क़ि क़िसी सर्वथा अपरिचित तथा  अनजाने व्यक्ति ने अति सूक्ष्मता से न जाने कहां से अचानक ही प्रगट होकर ह्मारे  पूर्वजों का मार्ग दर्शन किया और उन्हें उचित मार्ग पर डाल कर ऐसे  अंतर्ध्यान हुए क़ि फिर वह कहीं मिले  ही नहीं ! ऎसी एक घटना का उल्लेख मैं अपने पिछले संदेशों में "पितामह की तीर्थ यात्रा" शीर्षक से सविस्तार कर चुका हूँ ! 
इसके अतिरिक्त ह्मारे एक और प्रपितामह पर भी श्री हनुमान जी ने बड़ा अनुग्रह किया था ! यह घटना लगभग डेढ़ दो सौ साल पुरानी है ! ह्मारे इन दादाजी को किसीने एक झूठे फौजदारी मुकद्दमें में फंसा दिया !भारत पर उन दिनों ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया का शाशन था! दादाजी बलिया के एक छोटे से गाँव के एक सीधे सादे काश्तकार थे!  
(प्रियजन ! शायद आप जानते होंगे ,ह्म बलिया वाले बहुत सीधे होते हैं इतने क़ि शहरों के लोग हमे  "बौडम बलियाटिक" कह कर हमारा मजाक उड़ाते हैं ! लेकिन भैया मुझे तो बख्श देना प्लीज़ ,मैं तो आपके संगत में आकर अब उतना बुद्दू नहीं रह गया  हूँ ) 
हाँ तो दादाजी बिना किसी वकील मुख्तियार से सलाह लिए डर के मारे घबडा कर घरबार छोड़ कर गाँव से भाग निकले !उन दिनों बलिया जिला नहीं था ,वह गाजीपुर जिले की एक तहसील थी और बलिया वालों के लिए कचहरी अदालत हस्पताल आदि सब कुछ गाजीपुर नगर में ह़ी था ! हाँ ह्मारे दादा जी नंगे पाँव ,अपनी मटमैली घुटने तक ऊंची धोती और उतने ही धूलधूसरित गमछे से अपना तन ढाके लुक छुप कर भांग ,अफीम ,नील और खुशबूदार चमेली के बड़े बड़े बागीचों में छुपते छुपाते बलिया से गाजीपुर की ओर बेतहाशा भागे जा रहे थे !
चलते चलते शाम हो गयी! दिया बत्ती का समय हो गया ! गाजीपुर नगर निकट आ रहा था !,वहाँ के सिविल लाइन के सरकारी बंगलो में और नील के कारखानेदारों की बड़ी बड़ी कोठियों के बाहर पेट्रोमेक्स में हवा पम्प करते वर्दी पगड़ी धारी कर्मचारी नजर आने लगेt
दिनभर के भूखे प्यासे दादाजी सडक के किनारे वाले बागीचे में एक पेड़ के नीचे बैठ कर सुस्ताने लगे! शायद पल भर को उनकी आँख लगी होगी क़ि उनके कान में कुछ खटर पटर की आवाज़ आयी, जैसे कोई भारी भरकम शरीर वाला व्यक्ति लकड़ी के खडाऊं पहने  उनकी ओर आरहा है  ! वह पकड़े जाने के भय से काँप उठे और अपने को झाड़ों के पीछे छुपाने के निष्फल प्रयास करने में लग  गये ! तभी एक भारी सी आवाज़ उनके कान में पड़ी ! कोई ठेठ भोजपूरी भाषा में  उनसे कह रहा था  "का बबुआ काहे ऐसे भागत बाड़ा एन्ने ओन्ने ? बुडबक हमार बात मान  ! तोर कौनो दोष नइखे , तू झूट्ठे घबड़ाता रे "!
दादाजी ने इधर उधर घूम कर उस अनजान व्यक्ति को खोजने की कोशिश की लेकिन अँधेरे में वह उस समय कहीं नहीं दिखा! पल दो पल बाद दादाजी को ऐसा लगा जैसे वह आवाज़ धीरे धीरे उनके निकट आ रही है !  




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