सद्गुरु कहाँ हैं ?
आज मिटाकर सारे अंतर 'गुरुवर' मिले 'परम' से ऐसे
आज मिटाकर सारे अंतर 'गुरुवर' मिले 'परम' से ऐसे
विलग नहीं कर सकता कोई ,मिला दुग्ध में हो जल जैसे
कल तक हम साधकजन अक्सर कहा करते थे :
सद्गुरु कभी निकट आते हैं मिलते कभी बिछड जाते हैं
पर आज वर्तमान स्थिति यह है कि :
प्रियजन अब वह दूर नहीं हैं "वह" हर ओर नजर आते हैं !!
समय शिला पर खिली हुई है "गुरू"-चरणों की दिव्य धूप
आंसूँ पोछो,आँखें खोलो ,देखो चहुदिश "गुरू" का स्वरूप !!
वो अब हम सब के अंतर में बैठे हैं बन कर यादें
वो अब हम सब के अंतर में बैठे हैं बन कर यादें
केवल एक नाम लेने से , पूरी होंगी सभी मुरादें
"भोला"
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अभी मुझे लग रहा है जैसे महराज जी मुझसे कह रहे हैं :
"मोको कहाँ ढूढे रे वंदे मैं तो तेरे पास में"
आज धन्य मैं धन्य अति ,यद्यपि सब विधि हीन ,
निज जन जान राम मोहिं संत समागम दीन !!
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गुरुदेव डॉक्टर विश्वा मित्तर जी महाराज अमर हैं,
हमारे हृदय सिंघासन पर वह अभी भी आसीन हैं ,
वह हमारे सर्वस्व हैं !
हमे इसका अभिमान है , जी हाँ अभिमान है कि
वह हमारे स्वामी हैं और हम उनके दास !
आइये तुलसी के समान हम भी उद्घोष करें :
अस अभिमान जाय जनि भोरे
मैं सेवक गुरुवर पति मोरे
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निवेदक : दासानुदास व्ही .एन .श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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"भोला"
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अभी मुझे लग रहा है जैसे महराज जी मुझसे कह रहे हैं :
"मोको कहाँ ढूढे रे वंदे मैं तो तेरे पास में"
मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे ,मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ में ना मूरत में , ना एकांत निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में ,ना काशी कैलास में
मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे ,मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ में ना मूरत में , ना एकांत निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में ,ना काशी कैलास में
मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे ,मैं तो तेरे पास में
ना मैं जप में ना मैं तप में ,ना मैं ब्रत उपबास में
ना मैं किरिया करम में रहता नहीं जोग सन्यास में
मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे ,मैं तो तेरे पास में
खोजी हो तो तुरत पा जाये पल भर की तलाश में
कहे कबीर सुनो भाई साधो , मैं तो हूँ बिस्वास में
मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे ,मैं तो तेरे पास में
[संत कबीर दास ]
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[संत कबीर दास ]
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स्वजन !
महसूस करो कि नजरों से दूर होते हुए भी हमारे प्यारे गुरुदेव अभी इस पल भी हमारे अंग संग हैं
और हम भ्रम भूल में भटकते साधकों का मार्ग दर्शन कर रहे हैं !
केवल हमारी ओर देख कर ही वह अपने नेत्रों से निस्तारित ज्योति किरणों द्वारा
और हम भ्रम भूल में भटकते साधकों का मार्ग दर्शन कर रहे हैं !
केवल हमारी ओर देख कर ही वह अपने नेत्रों से निस्तारित ज्योति किरणों द्वारा
कर्तव्य पालन हेतु हमे उचित प्रेरणाएं दे रहे हैं ,
हमसे गले मिलते समय हमारी पीठ थपथपा रहे हैं ,
हमारी हथेली थामे वह हमारे थके हारे तन मन में नवीन ऊर्जा संचारित कर रहे हैं !
हमारी हथेली थामे वह हमारे थके हारे तन मन में नवीन ऊर्जा संचारित कर रहे हैं !
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साधकजन !
जरा सोंच कर देखिये हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमे अपना यह मानव जीवन सुधारने और उसे सजाने संवारने हेतु , बाबागुरु स्वामी सत्यानन्द जी महराज , श्रद्धेय संत प्रेम जी महाराज तथा गुरुदेव श्री विश्वामित्र महाजन जी जैसे संत महापुरुषों का समागम प्राप्त हुआ ! इन दिव्य महात्माओं के श्रीचरणों में बैठ कर हम जैसे कुटिल खल कामी कापुरुष अपना जीवन सुधार सके ,
जिनके सत्संग से हमारा जीवन परिष्कृत हुआ ,मधुर हुआ
जिनके समागम से हमने अपने दैनिक आचार -विचार- व्यवहार मंगलमय बनाये तथा
स्वस्थ एवं अनुशासित जीवन जीना सीखा !
प्रियजन श्री राम शरणंम दिल्ली के सभी गुरुजनों ने हमे इतना प्यार दिया कि
सबको मैं भूल गया तुझसे मोहब्बत करके
एक तू और तेरा नाम मुझे याद रहा
[मुंशी हुब्ब लाल साहेब 'राद भिन्डवी']
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प्रियजन
आज केवल मेरा नहीं ,श्री राम शरणम के असंख्य साधकों का कथन है कि :अपने वर्तमान [ जी हाँ हम उन्हें वर्तमान ही मानेंगे ] गुरुदेव डॉक्टर विश्वमित्तर जी महाराज के चुम्बकीय व्यक्तित्व ने हमे इतना आकर्षित कर लिया है कि अब हम किसी कीमत पर उनसे विलग नहीं होना चाहते, हम हर पल उनका आश्रय पाने को लालायित रहते हैं , हमारा मन उनसे बार बार मिलना चाहता है , ,
उनके दर्शन की तृष्णा बुझती ही नहीं !
तुलसी के शब्दों में
आज धन्य मैं धन्य अति ,यद्यपि सब विधि हीन ,
निज जन जान राम मोहिं संत समागम दीन !!
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गुरुदेव डॉक्टर विश्वा मित्तर जी महाराज अमर हैं,
हमारे हृदय सिंघासन पर वह अभी भी आसीन हैं ,
वह हमारे सर्वस्व हैं !
हमे इसका अभिमान है , जी हाँ अभिमान है कि
वह हमारे स्वामी हैं और हम उनके दास !
आइये तुलसी के समान हम भी उद्घोष करें :
अस अभिमान जाय जनि भोरे
मैं सेवक गुरुवर पति मोरे
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निवेदक : दासानुदास व्ही .एन .श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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3 टिप्पणियां:
prerak prastuti.aabhar.
आज धन्य मैं धन्य अति ,यद्यपि सब विधि हीन ,
निज जन जान राम मोहिं संत समागम दीन !!
सच उसकी असीम कृपा होती है तभी ये सौभाग्य मिलता है।
स्नेहमयी शालिनी जी, वदना जी , शिल्पा जी, एवं अतिशय प्रिय सभी टिप्पणीकर्ता :
विश्वास है आप मेरी वर्तमान मनःस्थिति आंक सके हैं ! अन्तः प्रेरणाओं पर आधारित आत्म कथा है ! कहीं कहीं अटपटी भी लगेगी ! पर निजी है ,सत्य है ! क्षमा करियेगा त्रुटियों एवं असंगताओं के लिए -- स्नेहिल आशीष
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