सद्गुरु कृपा
आध्यात्मिक गुरुजन की कृपाओं का उल्लेख करने जा रहा हूँ ! अन्तः प्रेरणा हो रही है कि क्रमानुसार शुरू से ही शुरू हो यह वर्णन ! तो सुनिए -
आध्यात्म के क्षेत्र में हमारे प्रथम एवं अंतिम मार्ग दर्शक थे ,हैं और जीवन पर्यन्त रहेंगे परम पूज्यनीय , प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद स्वामी श्री सत्यानन्द सरस्वती जी महाराज !जिनकी अनंत कृपा से मुझे मिला "राम नामामृत" ! याद आ रहा है कि ---
-- कैसे नवम्बर १९५९ में , नाम दीक्षा के समय , मुरार [ग्वालियर] में डॉक्टर बेरी के पूजा प्रकोष्ठ में ,महाराज जी के दिव्य स्वरूप के प्रथम दर्शन से मेरा रिक्त अंतरघट 'नामामृत ' से भर गया ! और सदा सदा के लिए मेरा जीवन संवर गया ! तत्काल तो उस दिव्य लाभ का वर्णन न कर सका ! तब तक गूंगा था ! गुड की मिठास का अनुभव तो कर रहा था , उसको व्यक्त नही कर पाया !
वर्षों बाद कानपूर के एक प्रेमी ,छोटेभाई जैसे भजनीक मित्र के सहयोग से रचना हुई तथा गुरुदेव महाजन जी के अनुमति से मैंने उसकी स्टूडियो रेकोर्डिंग करवा कर श्री राम शर णं नई दिल्ली को समर्पित कर दी जहाँ इसके केसेट और सीडी बने और वितरित हुए !
वह भजन था
पायो निधि राम नाम ,
सकल शांति सुख निधान
सिमरन से पीर हरे , काम कोह मोह जरे ,
आनंद रस अजर झरे ,होवे मन पूर्ण काम
[ यू ट्यूब पर "भोला कृष्णा चेनल" तथा 'श्री राम शरणं ,लाजपत नगर , नई दिल्ली की वेब साईट पर पूरा भजन उपलब्ध है ]
प्रियजन , नाम दीक्षा दिवस के बाद आगे क्या हुआ सुनिए:
उस पूजा की कोठरी में प्रज्वलित भक्ति स्नेह सिंचित , 'नाम दीप शिखा' की अखंड ज्योति के प्रकाश ने मेरे भ्रमित मन के अज्ञान का अंधकार पूर्णतः नष्ट कर दिया ! उस क्षण एक अकथनीय आत्मिक शान्ति की अनुभूति हुई ,एक अनूठा रंग चढ़ गया , तब तक के , मेरे कोरे पड़े मानस् पटल पर !
सद्गुरु हो महाराज मो पे सांई रंग डाला
शबद की चोट लगी मन मेरे बेध गया तन सारा
औषधि मूल कछु नहीं लागे का करे बैद बिचारा
कबीर ने ५-६ सौ वर्ष पूर्व गाया था और मेरे संगीत के उस्ताद गुलाम मुस्तफाखां साहेब ने भी एक दिन भारत में , कानपुर में ,मेरे स्थान पर आयोजित "अमृतवाणी सत्संग " मे , स्वामी जी के कट आउट के सन्मुख यही भजन गा कर मेरी मनोभावना उजागर की थी ! उनसे सीख कर मैंने भी यह भजन अनेक बार गाया लेकिन आज कल मेरे छोटे पुत्र माधव जी इसे इतने भाव से गाते हैं कि वो तो वो ,सब सुननेवाले भी गद गद होकर भाव विभोर हो द्रवित हो जाते हैं ! चाहता था कि आपको माधव जी का वह गायन सुनवाऊँ पर
हर चाही हुई इच्छा पूरी नहीं होती ! अस्तु आगे बढ़ते हैं :
कदाचित पहले कभी बता चूका हूँ , उस समय श्री स्वामी जी महाराज के दिव्य स्वरूप ने मुझे इतना सम्मोहित कर लिया कि मैं अपनी सुध बुध ही खो बैठा ! जीवन में कभी इतने निकट से , एक दम एकांत में, स्वामी जी के समान तेजस्वी देव पुरुष के दर्शन नहीं किये थे ! पर तब उनकी वाणी से नि:सृत 'राम नाम' ने रोम रोम में राम को रमा दिया !ऐसा कि आज यहाँ यू एस ए में भी पुत्र राघव जी की मित्र मंडली के साथ मिलकर राम नाम उच्चारित करने में बड़ा आनंद आता है --- सब मिल कर गाते हैं तथा प्रेरित करते हैं जन जन को नामोच्चारण हेतु ! आप भी सुनिए और हमारे साथ साथ बोलिए :
"बोलो राम बोलो राम"
[ केवल दो मिनट का सवाल है ]
स्वामी जी महाराज के साथ उस पूजा प्रकोष्ठ में मैंने नाम दीक्षा के समय १० - १५ मिनिट
से अधिक नहीं बिताया होगा ! लेकिन उस दिव्य दीक्षा - दर्शन ने जो अमिट छाप मेरे मानस पटल पर छोडी है उसका असर न केवल मुझ पर वरन मेरे पूरे परिवार पर पड़ा है जो जग जाहिर है ! तुलसी ने कितना सच कहा है कि :
एक घड़ी आधी घड़ी ,आधी से भी आध
तुलसी संगत साधु की हरे कोटि अपराध
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निवेदक : व्ही एन श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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