सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

शनिवार, 3 नवंबर 2012

सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज

एवं उनकी करुणा से जीवन में समय समय पर मिले अन्य गुरुजनों की कृपा =================================================  

सद्गुरु स्वामी सत्यानन्दजी  महाराज से बिछोह की बात करते करते मैं अपने पिछले आलेख में भावावेग में भूल से लिख गया था कि स्वामी जी " थे " ! 

प्रियजन , वह  मेरी गलत बयानी थी ! वास्तविकता क्या है वह मैं आपको अपनी ८३ वर्षों की अनुभूतियों के आधार पर आज  पूरे भरोसे के साथ बता रहा हूँ : 

स्वामी जी महांराज ही नहीं वरन उनके बाद एक एक करके ,गुरुदेव प्रेम जी महाराज तथा मेरे अतिशय प्रिय गुरुदेव डॉक्टर विश्वामित्तर जी महाराज हमारे जीवन के आध्यात्मिक  अन्धकार को परमानंद की ज्योति से भरने को आये और चले भी गये !  स्थूल रूप में हमसे दूर होते हुए भी उनमे से कोई भी हमसे एक पल को भी विलग नहीं हुआ ! 

ये  तीनों गुरुजन  हर समय मेंरे साथ रहे ,वे अभी भी मेंरे साथ हैं और भविष्य में भी पल पल मेंरे साथ ही रहेंगे ! 

प्रियजन यह मात्र मेरा ही अनुभव नहीं है ! श्री रामशरणम के अनेक वयोवृद्ध साधको ने जिन्हें स्वामी जी महाराज के सानिध्य का सौभाग्य मिला था , मुझे अपनी अपनी अनुभूतियों की कुछ ऐसी ही कथायें सुनाईं जिनसे मेरी उपरोक्त धारणा और पुष्ट हुई !  इन महात्माओं को भी ,गोलोक गमन के उपरांत श्री स्वामी जी महाराज ने साक्षात  दर्शन दिए और कितनी बार सूक्ष्म रूप में प्रगट होकर उनका मार्ग दर्शन किया ,उन्हें प्रेरणात्मक सुझाव दिए और उन्हें उनके अभियान में सफलता दिलवाई ! स्वामी जी महाराज के शब्दों में -

पथ प्रदर्शक "वह" कहा ,परमारथ की खांन !
कर दे पूरन  कामना , दे कर भक्ति सुदान !!


प्रियजन , संत महापुरुषों से सुना है ," जिस साधक को अपने इष्ट-स्वरूप सद्गुरु का ही एकमात्र  भरोसा हो , जिसको  केवल  उनका ही आश्रय हो ,उस साधक के सभी शुभ संकल्प उसके इष्ट-गुरुजन के आशीर्वाद एवं उनके प्रेरणात्मक  मार्ग -दर्शन से  अविलम्ब सिद्ध  हो जाते हैं !

गुरुजनों ने इस संदर्भ में हमारा ध्यान श्रीमदभगवत गीता के दूसरे अध्याय के ४८वें श्लोक [ "योगस्थ कुरु कर्माणि -------- योग उच्चते"  ]  की ओर आकर्षित करते हुए हमे पूर्ण समर्पण भाव से अपने सभी कर्म करते रहने की प्रेरणा दी और इस प्रकार हमे सफलता की एक और कुंजी प्रदान कर दी !

श्री गीताजी के उपरोक्त श्लोक का सरल हिन्दी अनुवाद , 

आसक्ति सब तज सिद्धि और असिद्धि मान समान ही 
   योगस्थ  होकर   कर्म कर ,  है   योग  समता  ज्ञान ही !!

[ श्री दीना नाथ दिनेश जी की, "श्री हरि गीता" से ] 

महापुरुषों के अनुभवों  से  मैंने जाना कि इस स्थिति को पाने के लिए इन्होने अपने प्रत्येक "क्रिया" में अपनी समग्र क्षमताओं का पूरी ईमानदारी के साथ प्रयोग किया और कर्म करते समय उन्होंने अपना "गुरुमंत्र" पल भर को भी नहीं भुलाया !  

इसके अतिरिक्त मेरा एक और अनुभूत सत्य यह है कि "सदगुरुजन अपने कर्मठ भरोसे वाले - विश्वासी शिष्यों पर पडी विषम परिथितियों से उन्हें उबारने के लिए किसी न किसी रूप में उनके निकट पहुंच जाते हैं और कभी स्थूल रूप में तो  कभी सूक्ष्म रूप में  अपने  साधकों को  प्रेरणात्मक परामर्श प्रदान करते  रहते हैं !

मुझे स्वयम इस प्रकार के अनेक अनुभव हुए हैं ! परमगुरू श्री राम के -निर्देश से मेरे सभी गुरुजनों ने ,न केवल भारत भूमि पर वरन स्वदेश से हजारों मील दूर इंग्लेंड में (१९६३ से ६६) , साउथ अमेरिका के एक करेबियंन देश में (१९७५ से ७८) तथा यहाँ यू.एस.ए में २००१ से आज २०१२ के नवम्बर मॉस तक , कभी सूक्ष्म रूप में उपस्थित होकर और कभी किसी अन्य शरीर के स्थूल रूप में  प्रगट होकर मुझे न केवल दर्शन दिये वरन निज करकमलों से मेरे वे कार्य पूरे कर दिए ,जिन्हें न कर पाने के कारण उनके इस प्यारे शिष्य की जग हंसाई की नौबत आ गई थी !

मैंने उनमें से कुछ अनुभूतियों का उल्लेख  अपनी इस ब्लॉग श्रंखला "महाबीर बिनवौं हनुमाना" के निम्नाकित अंकों में सविस्तार किया है !

हनुमत -कृपा,
सद्गुरु -कृपा ;
श्री श्री  माँ आनंदमयी  की कृपा ;
गुरू कृपा;
हमारी गुरू माँ !  --- आदि , आदि !

प्रियजन  यदि आप विस्तृत  वृतांत जानना चाहें तो मेरे ब्लॉग के उपरोक्त अंश पढ़ लें !

स्वानुभूतियों के सहारे आज जीवन की सांझ तक पहुंच कर मेरी यह दृढतम धारणा हो गयी है कि ---

अवलम्बन ले राम का ,जो सब ऊपर एक!
आशा और विश्वास की ,है वह ऊँची टेक !!

जो जन हरि के हो रहें ,हरि की करते कार !
योग क्षेम उनका सभी ,करता हरि संभार !!

[ श्री स्वामी जी महाराज के "भक्ति प्रकाश" से ]

पाठकगण , प्रार्थना है कि आप भी "श्री हरि" के बन जाइए और "उनके" संरक्षण में आ कर चिंता मुक्त हो जाइए  !

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क्रमशः 
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निवेदक : व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती  कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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