रविवार, 10 मार्च 2013


ओम नमः शिवाय
महा शिवरात्रि की हार्दिक बधाई स्वीकारें 


"शिव" 

मंगलमय   मंगलप्रद   ,   महामोद  के  रूप  !
महामहिमामय  हे  शिव , तेजोमय  ,स्वरुप  !!

हे शंकर शुभ शांतिमय  , सब  के  शरणाधार  !
स्रोत   श्रुति  आदेश  के  , परम  पुरुष सुखकार !!

दीनदयालु   दयानिधे  ,    दाता   परम  उदार  !  
सब  देवों  के  देव  हे  ,   दुःख  दोष  से   पार   !!

   शांत शरण  शिव रूप तू , परम शान्ति के स्थान !
   शंकर  आश्रय  दे  शुभ  ,   शरणागत  जन  जान !!

"भक्ति -प्रकाश"                
 रचयिता: सद्गुरु स्वामी सत्यानान्द्जी  महाराज  



महामहिमामय  देवों के देव महादेव  का स्वरूप तेजोमय और कल्याणकारी है ! "शिव"    शंकर का शब्दार्थ है " कल्याण" ! "महाशिवरात्रि" महा कल्याणकारी रात्रि है ;एक विशेष रात्रि  जो एकमात्र सौरमंडल के लिये ही नही अपितु समग्र जीव जगत के लिए मंगलप्रद है

महापुरुषों का कथन है कि जीवों के परमाधार 'परमेश्वर'  के  कृपा स्वरुप का नाम "श्री राम "है , उनके प्रेम स्वरुप का  नाम  "श्री कृष्ण"  हैं , उनके "वात्सल्य स्वरुप"  " आदि शक्ति माँ जगदम्बा" हैं तथा 'वैराग्य  स्वरुप' भगवान  शिव है !  उनके गुण , स्वभाव और  क्रिया -कलाप के कारण श्रद्धालु  भक्तजन  शिव , शंकर , भोला , महादेव  , नीलकंठ , नटराज , त्रिपुरारी , अर्धनारीश्वर , विश्वनाथ , आदि अनेकानेक  नामों से उनका नमन  करते है !

धर्माचार्यों ने "ओंकार" के मूल , विभु , व्यापक , तुरीय  शिव के  निराकार ब्रह्म स्वरूप को एक अनूठा साकार स्वरूप दिया है ;  जिसमें उन्हें अलौकिक वेशभूषा  से सुसज्जित किया है ! उनके  शरीर  को भस्म से विभूषित  किया है , उनके गले में सर्प और  रुंड मुंड की माला डाली है , उनके जटाजूट में पतित पावनी "गंगधारा" को विश्राम प्रदान किया है  , उनके भाल  को दूज के चाँद से अलंकृत किया है !  एक हाथ से डम डम डमरू बजाते तथा दूसरे में त्रिशूल लहराते "शिव शंकर"  कभी ललितकला सम्राट नटराज , तो कभी पापियों के संहारक , कभी  तांडव नृत्य की लीला से प्रलयंकारी तो कभी भक्त को मन मांगा वरदान देने वाले औघडदानी लगते हैं ! अपने सभी स्वरूपों में वह वन्दनीय हैं !

संत तुलसीदास   की अनुभूति में 'शिव" ऐसे देव हैं जो अमंगल वेशधारी  होते हुए  मंगल की राशि है ; महाकाल के भी काल  होते हुए करुणासागर हैं ,

प्रभु समरथ सर्वग्य  सिव सकल कला गुन धाम !
जोग  ज्ञान  वैराग्य   निधि  प्रनत कल्पतरु नाम !!

शिव समर्थ,सर्वग्य,और कल्याणस्वरूप ,सर्व कलाओं और सर्व गुणों के आगार हैं , योग , ज्ञान तथा वैराग्य के भंडार हैं , करुणानिधि हैं, कल्पतरु की भांति  शरणागतों कों वरदान देने वाले औघड़दानी हैं !

जय शिव शंकर औघड दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी 
जय शिव शंकर औघड दानी 

सकल सृष्टि  के सिरजन हारे , पालक रक्षक अरु संहारी 
जय शिव शंकर औघड दानी 

हिम आसन त्रिपुरारी बिराजे , बाम अंग गिरिजा महारानी !
जय शिव शंकर औघड दानी 

औरन को निज धाम देत हो , हमते करते आनाकानी !
जय शिव शंकर औघड दानी 

सब दुखियन पर कृपा करत हो,हमरी सुधि काहे बिसरानी !
जय शिव शंकर औघड दानी 


[ शब्दकार स्वरकार गायक - "भोला"]

देवों के देव महादेव की करुणा ; कृपा तथा दानवीरता  के अनगिनत दृष्टांत पौराणिक ग्रंथों  में मिलते  हैं ! "शिव" के भोलेपन को दर्शाता  एक लोकप्रिय आख्यान है उस तुच्छ चोर का , जो शिवलिंग पर लटकती ताम्बे की गंगाजली चुराने के लिए शिवलिंग पर ही चढ़ गया !"भोले" "शिव शंकर",यह सोच कर कि इस श्रद्धालु भक्त ने तो स्वयम को ही उन्हें   समर्पित कर दिया है ,उस चोर पर  इतना रीझे कि उन्होंने उसे उसी क्षण दर्शन दे दिए और उसको मुंह मांगा वरदान भी  दिया ! ऐसे औघड दानी हैं ये "शिव"!

शास्त्रों के अनुसार महा शिवरात्रि  शम्भु-पार्वती के  मांगलिक विवाह का पर्व है ! इसे  श्रद्धालुजन अति  उमंग से व्रत उपवास रख कर , भजन कीर्तन करते  हुए मनाते हैं !

महाशिवरात्रि  का पर्व  हमें यही प्रेरणा देता है कि हम अपने निज स्वरुप को पहचान कर , त्याग , तपस्या  एवं वैराग्य  का जीवन जियें ! प्रेम ,करुणा  और सत्य को अपनाएं !  हम जन जीवन के कल्याण  का शुभ संकल्प  लें !  दैनिक जीवन की कटुता वैमनस्यता और प्रतिकूलता के हलाहल  को "शिव" की भांति पान  करें और आनंद , शान्ति  एवं सुख का "अमृत"  समाज के सुयोग्य व्यक्तियों में वितरित करें ! 

प्रियजन , कैलासनिवासी दिगम्बर शिव का परिवार एक आदर्श गृहस्थ परिवार है ! आज की दुनिया में भी जिस परिवार  का स्वामी "शिव" समान हो  , गृहणी पार्वती सी हो और संतान कार्तिकेय के समान पुरुषार्थी और गणेश के समान विवेकी हो वही परिवार आदर्श गृहस्थ परिवार कहाएगा !

प्रियजन , वह  परिवार जिसके सदस्यों में परस्पर प्रीति , विश्वास और एक दूसरे के प्रति  श्रद्धा है  और जो सभी पुरुषार्थी और विवेकी हैं  उस परिवार को ही प्रसन्नता , सम्पन्नता तथा आत्मिक शान्ति का प्रसाद मिलता है  !

महा शिवरात्रि  के पावन पर्व पर अपने परिवार के "शिव" , सब के अतिशय प्रिय ,  कृष्णा जी और मेरे परमश्रद्धेय "बाबू" की प्रेरणाप्रद स्मृति  हमे उनकी "धर्म निष्ठा" ; उनकी 'कर्तव्य परायणता' तथा उनके "समग्र सद्गुणों" को अपनाने का सुझाव दे रही है !

संत मत

भारत भूमि के अनेक सिद्ध संत महात्माओं ने श्रद्धेय बाबू के उपरोक्त गुणों के कारण उनकी भूरि भूरि प्रशंसा  की , उन्हें सराहा  !  जो भी सिद्ध साधू संत  उनके संपर्क में  आये उन्होंने "शिवदयाल जी" को एक उच्च कोटि का साधक और "गृहस्थ संत" ही माना !

परमार्थ निकेतन ऋषिकेश   के "मुनि महाराज" श्री १०८ स्वामी चिदानन्दजी  ने उनके आदर्श गार्हस्थ जीवन के विषय में कहा --

"बाबूजी एक कुटुंब वत्सल गृहस्थ होकर भी सच्चे  विरागी संत थे ! निष्काम कर्मयोगी थे !  उनका प्रत्येक कर्म परमार्थ के लिए एवं अंतःकरण शुद्धि के लिए था ! भगवत गीता का सार उन्होंने "नाम जपता रहूं , काम करता रहूं " के सूत्र में अनुवादित किया  और इसे जीवन जीने का मंत्र बनाया !"

एक ज्योति जो जीवन पर्यंत तेज और प्रकाश बिखेरती रही
जो बुझ कर भी सुगंध दे रही है !

क्रमशः 
==========================
निवेदक: वही.  एन.  श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
=========================== 

कोई टिप्पणी नहीं: