सोमवार, 25 मार्च 2013

मीरा की होली

प्रेम दीवानी मीरा की होली

प्रियतम "गिरिधर" के रंग राती - मीरा
पंचरंगी चूनर से मुंह ढाके झिरर्मिट में होली खेलने जाती है और वहीं -
वोही झिरमिट में मिलो सांवरो खोल मिली तन गाती , सैयां
मै तो गिरिधर के रंग राती
मीरा बाई

समग्र मानवता को इस प्रेम-प्रीति-रस-रंग-भरी 
होली की हार्दिक बधाई  
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कुछ  "हंसगुल्ले"  भेज रहा  हूँ   देशवासियों   खाते  जाओ
होली के दिन खाकर इनको ,जन जन को यह बात बताओ 

मीरा गिरिधर हाथ बिकी थी ,"चोरन" हाथ बिके हैं हम सब 
बहुत गंवाया अब तक हमने ,  प्यारे अब कुछ नहीं गंवाओ


याद रखो कल क्या झेला था , झेल रहें हो किसे आज तुम 
"मा" "मु"  दोनों  सही नहीं हैं , कोई   नई    चेतना  लाओ  

कल - [भूतकालीन] 
कल तक जिसको स्वयम संवारा माया ने अपनी माया से 
गली  गली  में  स्थापित  कर  मूर्तिवन्त अपनी  काया से 

आज 
आज मुलायम पड़े मुलायम देखा जब 'सिबिआई डंडा' 
कमल हाथ में लें, या, अब वो लहरायें 'हथछ्पा'तिरंगा 

कल [भविष्य कालीन] 
कल  क्या  होगा यह तो सोंचो ओ  प्यारे लखनउआ वोटर     
'गज' 'दोपहिया' त्याग पियारे चढ़ जाओ उन्नति की मोटर 

उसको ही दो वोट,व्यक्ति जो हो सच्चा सेवक जनजन का            
हो  निष्काम  करे  जन सेवा और बने स्वामी जन-मन का 
उसको ही दो वोट ---- 
 
बकलम - व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" [ कानपुरी ]


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गिरिधारी कृष्ण की होली 
मीराबाई के शब्दों में  

होली के दिन न गाऊँ , ऐसा तो हो ही नहीं सकता ! आपको सुनाना है ! उनका आदेश है ! जब तक जियो गाते जाओ ! सो गा रहा हूँ  मीरा की होली : बुड्ढातोता जैसा गा पायेगा , खांसते खूस्ते गाता रहेंगा - इसी बहाने "उनको" याद कर लेता हूँ  -
गिरिधारी कृष्ण की होली मीराबाई के शब्दों में  

होरी खेलत हैं गिरिधारी 
मुरली चंग बजत है न्यारो संग जुवति ब्रिज नारी 
होरी खेलत हैं गिरिधारी 

चन्दन केसर छिडकत मोहन ,अपने हाथ बिहारी ,
भर भर मूठ गुलाल लाल चहुँ  देत सबंन पर डारी
होरी खेलत हैं गिरिधारी



छैल छबीले नवल कांन्ह संग स्यामा प्रान पियारी 
गावत चारु  धमार राग तहं , दे  दे कल  करतारी
होरी खेलत हैं गिरिधारी 

फाग जु खेलत रसिक सांवरी बाढ्यो रस ब्रिज भारी 
मीरा को प्रभु गिरिधर मिलिया ,मोहनलाल बिहारी 
होरी खेलत हैं गिरिधारी

[मीरा ]

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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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