मेरा नटवर नागर - नचा रहा है मुझे ,
इस जीवन में ,
पिछले चौरासी वर्षों से :
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लगभग एक पखवारे से मैं "महाबीर बिनवौ हनुमाना" की रचना द्वारा होने वाली अपनी ईशोपासना नहीं कर पा रहा हूँ ! आप ही कहो स्वजनों , बिना अपने मदारी के आदेश के यह परतंत्र और निर्बल बंदर- "भोला", स्वेच्छा से क्या कर सकता है ? कौन सा करतब दिखा सकता है वह अपने मदारी के इशारों के बिना ?
अपना "ब्लॉग" भेज नहीं पा रहा हूँ --लेकिन आजकल किसी दिव्य प्रेरणा से रोज प्रातः उठते ही कोई न कोई भूली बिसरी "संत वाणी" अनायास ही याद आ जाती है ! कभी मीरा , कभी तुलसी , कभी कबीर और कभी सूरदास का पद गुनगुनाता हुआ जागता हूँ और फिर सारे दिन उसका ही नशा चढ़ा रहता है और मैं वह भजन ही गाता रहता हूँ ! ऐसा लगता है जैसे "प्यारे प्रभु" मेरे उस भजन गायन को ही मेरे द्वारा उनकी आराधना मान कर पत्र पुष्प सरिस उसे स्वीकार लेते हैं ! "उनके" प्रसाद स्वरूप मेरा मन आनंदित हो जाता है ! "उनकी" उदारता हमे गद गद कर देती है और हम धन्य हो जाते हैं ! हरि इच्छा मान कर , उन्ही भजनों मे से एक आज आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ ! ----
अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल
मेरी अवस्था तक पहुचे पाठक एवं श्रोतागण जो ७० - ८० वसंत देख चुके हैं संत सूरदास के इन शब्दों की सार्थकता सहजता से ,भली भांति आँक लेंगे !
प्रियजन एक प्रार्थना है , कृपया मेरे बूढे कंठ की कर्कशता एवं गायकी के दोषों पर ध्यान न दीजियेगा ! सूर की शब्दावली में परिलक्षित इस पद के भाव समझने का प्रयास करें!
इस जीवन में ,
पिछले चौरासी वर्षों से :
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लगभग एक पखवारे से मैं "महाबीर बिनवौ हनुमाना" की रचना द्वारा होने वाली अपनी ईशोपासना नहीं कर पा रहा हूँ ! आप ही कहो स्वजनों , बिना अपने मदारी के आदेश के यह परतंत्र और निर्बल बंदर- "भोला", स्वेच्छा से क्या कर सकता है ? कौन सा करतब दिखा सकता है वह अपने मदारी के इशारों के बिना ?
अपना "ब्लॉग" भेज नहीं पा रहा हूँ --लेकिन आजकल किसी दिव्य प्रेरणा से रोज प्रातः उठते ही कोई न कोई भूली बिसरी "संत वाणी" अनायास ही याद आ जाती है ! कभी मीरा , कभी तुलसी , कभी कबीर और कभी सूरदास का पद गुनगुनाता हुआ जागता हूँ और फिर सारे दिन उसका ही नशा चढ़ा रहता है और मैं वह भजन ही गाता रहता हूँ ! ऐसा लगता है जैसे "प्यारे प्रभु" मेरे उस भजन गायन को ही मेरे द्वारा उनकी आराधना मान कर पत्र पुष्प सरिस उसे स्वीकार लेते हैं ! "उनके" प्रसाद स्वरूप मेरा मन आनंदित हो जाता है ! "उनकी" उदारता हमे गद गद कर देती है और हम धन्य हो जाते हैं ! हरि इच्छा मान कर , उन्ही भजनों मे से एक आज आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ ! ----
अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल
मेरी अवस्था तक पहुचे पाठक एवं श्रोतागण जो ७० - ८० वसंत देख चुके हैं संत सूरदास के इन शब्दों की सार्थकता सहजता से ,भली भांति आँक लेंगे !
प्रियजन एक प्रार्थना है , कृपया मेरे बूढे कंठ की कर्कशता एवं गायकी के दोषों पर ध्यान न दीजियेगा ! सूर की शब्दावली में परिलक्षित इस पद के भाव समझने का प्रयास करें!
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल
काम क्रोध को पहिर चोलना ,कंठ विषय की माल !
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल
महामोह को नूपुर बाजत ,निंदा शबद रसाल
भरम भर्यों मन भयो पखावज ,चलत कुसंगत चाल !
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल
तृष्णा नाद करत घट भीतर ,नाना विधि दे ताल
माया को कट फेंटा बांध्यो ,लोभ तिलक दे भाल
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल
कोटिक कला कांछि दिस्रराई जल थल सुधि नहिं काल
सूरदास की यहे अविद्या दूर करो नंदलाल !
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल
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ये न सोंचें कि "महाबीर बिनवौ हनुमाना" में संतत्व की चर्चा थम गयी है !
बहुत कुछ लिखा पड़ा है ! "ऊपरवाले" की स्वीकृति प्राप्त होते ही प्रकाशित कर दूँगा !
रुकावट के लिए खेद है !
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निवेदक: व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोगिनी: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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1 टिप्पणी:
काकाजी और काकीजी को pranaam
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