शुक्रवार, 22 जून 2018

             गुरु की कृपा दृष्टि हो जिस पर उसको अंतर्ज्ञान मिले
             जो न जानता हो निज को उस को अपनी पहचान मिले
गुरु की कृपा दृष्टि हो जिस पर उसको अंतर्ज्ञान मिले 

साधक ने गुरु की करुना से अपना सत्य रूप पहचाना
वह तन नहीं, एक दिन जिसको होगा मिट्टी में मिल जाना
अजर अमर वो "ईश अंश"है ,उसको "परमधाम" ही जाना
भीतर झांक तनिक जो देखे निज घट में श्री राम मिलें

समझा अपना सत्य रूप जो, औरों को भी जान गया
केवल खुद को नहीं ,व्यक्ति वह, दुनिया को पहचान गया
जो मैं हूँ वह ही सब जन हैं ,परम सत्य यह मान गया
ऐसे साधक को सृष्टि के कण कण में भगवान मिले

धन्यभाग वह साधक होता सदगुरु जिसकी ओर निहारे
केवल उसको नही परमगुरु उसके सारे परिजन तारे
गीधराज शबरी ऋषि पत्नी को जैसे श्री राम उद्धारे
प्रेमी साधक को वैसे ही सद्गुरु में श्री राम मिले

उसको जप तप योग न करना घर ब्यापार नही है तजना
कर्म किये जाना है उसको फल की चिंता कभी न करना
गुरु चिंता करता है उसकी ,निर्भय हो कर उसको रहना
ऐसे जन को उसके कर्मो के सुन्दर परिणाम मिले

जान गया है अब वह यह सच 'माया आनी जानी है'
धन दौलत की चाह न उसको 'गुरु करुना' ही पानी है
दर दर भटक भटक कर उसको झोली ना फैलानी है
ऐसे जन को बिन मांगे ही सकल सुखों की खान मिले

गुरु की कृपा दृष्टि हो जिस पर उसको अंतर्ज्ञान मिले


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