शनिवार, 14 सितंबर 2019

क्या भजन भी नाम जाप है?श्रीमती लालमुखी देवी
(१८९५ - १९६२)
लक्ष्मी पूजन के दिन , सर्व प्रथम ,
"माँ तुम्हे प्रणाम"
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तेरा दर्शन मधु सा मीठा ,वाणी ज्यों कोयल की कूक
सुरति तुम्हारी जब है आती उठती है इस मन में हूक !

तूने मुझे दियाहै जितना मेरी झोली में न समाया,
फिर भी रहा अधिक पाने को मैं आजीवन ही ललचाया !

अब भी तेरी कृपा बरसती है मुझ पर बन अमृत धारा
एक बूंद पीने से जिसके होता जन जन का निस्तारा !

जनम जनम तक तेरे ऋण से उरिण नही हो सकता माता
हर जीवन में ,मा तेरा ऋण उतर उतर दुगुना बढ़ जाता !

माँ तुम्हे प्रणाम
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"माँ " के करोड़ों रूप हैं ! जितने रूप हैं उतने ही नाम !
सृष्टि के हर खंड में, हर युग में , हर संस्कृति में , हर सम्प्रदाय में , हर मत में,
एक "माता श्री" के अलग अलग अनेको नांम हैं !

माँ के करोड़ों नामों में से चुने हुए उनके कुछ सबसे प्रसिद्ध नाम

१. विष्णु मायेति २. चेतना ३. बुद्धि ४. निंद्रा ५. क्षुधा ६. छाया ७. शक्ति ८. तृष्णा ९ . क्षमा १०.लज्जा ११.शांति १२ .श्रद्धा १३. कांति १४. लक्ष्मी १५. वृत्ति १६. स्मृति १७. दया १८. तुष्टि १९. मातृ ,तथा २०. भ्रान्ति आदि

देवी माँ इन्हीं नामों के रूप में हम् भूत प्राणियों में व्याप्त हैं और हर पल हमारी रक्षा करतीं हैं हमार मार्ग दर्शन करतीं हैं हमें दिव्य चिन्मय जीवन जीने की प्रेरणा देतीं हैं !
परमप्रिय स्वजनों 
 नवरात्रि के पावन पर्व पर 
हमारा हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करें !

प्रियजन ! अनंत काल से , सृष्टि के हर खंड ,  हर संस्कृति . सम्प्रदाय  एवं मत में
आदि शक्ति "माता श्री" की उपासना होती है ! 
देशकाल और तत्कालिक प्रचलित मान्यताओं  के अनुसार  मानवता के विभिन्न वर्गों में सिद्ध साधकों  के अनुभवों तथा  पौराणिक आख्यानों के अनुरूप आद्यशक्ति माँ के अनेकों रूप हैं,अनेकों नाम हैं  ! 
जननी माँ की प्रतिरूपनी ये दिव्य माताएं सभी साधकों की सफलता ,स्वास्थ्य ,सुख और समृद्धि की दात्री हैं !

भारतीय संस्कृति में  नवरात्रि के मंगलमय उत्सवों के नौ दिनों में  माँ की आराधना के प्रसाद स्वरूप साधकों को माँ से मिलता है   सांसारिक कष्टों से बचने का "रक्षा कवच ". सफलता हेतु मार्गदर्शन एवं  दिव्य चिन्मय जीवन जीने की कला तथा प्रेरणामय यह सन्देश "जागो ,उठो ,आगे बढ़ो उत्कर्ष करो "

सेवा निवृत्ति के  बाद लगभग पिछले २५ वर्ष कैसे जिया , ये बात चल रही थी ,कि श्राद्धों का पखवारा आया और साथ साथ लाया नवरात्री का यह "मात्र भक्ति भाव रस सिंचित" ,दिव्य दिवसों का अद्भुत समारोह !

खाली नहीं बैठा , माँ सरस्वती शारदा की विशेष अनुकम्पा से  इन २५ -३० दिनों में ,प्रेरणात्मक तरंगों में बहते हुए ,"प्रेम-भक्ति रस सेओतप्रोत अनेक रचनाएँ हुईं , और उनकी धुनें बनी ,बच्चों द्वारा उपलब्ध करवाई इलेक्ट्रोनिक सुविधाओं के सहारे उनकी रेकोर्डिंग  हुई , कृष्णा जी ने उनको  यू ट्युब पर भोला कृष्णा  चेनल पर प्रेषित भी किया !सों इस प्रकार मेरा जीवन क्रम अग्रसर  रहा , सुमिरन भजन द्वारा सेवा कार्य चलता रहा  

सरकारी सेवाओं से निवृत्ति के बाद .इससे उत्तम और कौनसी सेवा कर पाता ? इस सेवा से जो परमानंद मिलता है उस दिव्य अनुभव के लिए आदिशक्ति माँ  के अतिरिक्त और किसे धन्यवाद दूँ  !

प्रियजन   इन नौ दिनों  में जो रचनाएँ हुईं उनमें से  एक इस आलेख के अंतर्गत आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ  ! मेरी यह रचना - "सर्वेश्वरी जय जय जगदीश्वरी माँ", मेरे परम प्रिय मित्र एवं गुरुभाई श्री हरि ओम् शरण जी" के एक पुरातन भजन की धुन पर आधारित है 

इस पर स्वाध्याय  से पहले "' जाप और भजन क्या है " इस  संदर्भ में संत महात्माओं के विचारों पर मनन -चिंतन करना  उचित होगा !
नाम जाप ---
श्री मद् भगवद गीता में श्री कृष्ण की वाणी है ---यज्ञों में मैं जप  मैं हूँ !
स्वामी सत्यानंदजी महाराज -------जप करना आध्यात्मिक तप है !
भजन ----
प्रज्ञाचक्षु स्वामी शरणानंद ---
""भगवान प्यारे लगें ,उनकी याद बनी रहे   ,मन लग जाय ,इसी का नाम भजन है !यही तो भक्ति है !''
याद आना ,प्यारा लगना ,अभिलाषा का होना ,यही तो भजन है !भजन में सेवा, त्याग और प्रेम  तीनों इकट्ठे हो जाते हैं !
विचारक इसे  साधना  कहते हैं और श्रद्धालु भजन कहते हैं !

भजन भज धातु से उत्पन्न है जिसका अर्थ है ,बार बार दोहराना ,और दूसरा अर्थ है  'सेवा' !

संत तुलसीदास की मान्यता में नवधा भक्ति में चौथी भक्ति कीर्तन भजन है और पांचवीं भक्ति जाप है  ,
चौथी  भगति मम गुन गन  करइ -कपट तजि गान -
मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा  !पंचम भजन सों वेद प्रकासा !

 सिद्ध संत स्वामी  सत्यानन्द जी ने  'प्रवचन पीयूष में कहा है -कीर्तन दो प्रकार का होता है --धुनात्मक और गीतात्मक !पहला जाप है तो दूसरा भजन !
भजन से लाभ होता है ,यह भी मंत्र ही है !संतों के पद मन्त्रों के समान हैं ! उनके पदों की वाणी उनकी आत्मा से निकले हुए ह्रदय की झंकार है ,उनकी अनुभूति {सिद्ध अनुभव }है !
जब जीभ से प्रभु का कीर्तन हो ,मन से उसका चिंतन हो ,दृष्टि से उसके स्वरुप का  दर्शन हो तब भजन में लीन मनुष्य संसार  को भूल जाता है और उसका मन प्रभु से जुड़ जाता है !
उपनिषद ----
रसों वै स :--"ईश्वर का  स्वरुप रस है !"भजन -कीर्तन में ईश्वर आनंद -रस के रूप में प्रकट होता है !
नारद भक्ति सूत्र  में अखंड भजन को भक्ति प्राप्त करने का साधन बतलाया है !

श्री मद् भागवद  पुराण  में योगीश्वर कवि का कथन है -----
जैसे भोजन करने वाले को प्रत्येक ग्रास के साथ  ही तुष्टि {तृप्ति अथवा सुख }पुष्टि {जीवन शक्ति का संचार }और क्षुधा निवृत्ति --ये तीनों एक साथ मिल  जाते हैं वैसे ही  जो मनुष्य भजन करने लगता है ,उसे भजन के प्रत्येक पल में भगवान के प्रति प्रेम  , ,अपने आराध्य के स्वरूप का अनुभव और अन्य पदार्थों से वैराग्य --इन तीनों की प्राप्ति हो जाती है !
मानसिक भोजन जाप है तो शारीरिक भोजन भजन है !
सिद्ध महात्माओं के कथन को अपने जीवन में डालने वाले साधकों का सार्वजनिक अनुभव ---
धुनात्मक भजन में रम जाओ !चाहे भजन  गाओ  या जाप -करो  -अपने आराध्य के रूप ,नाम ,लीला ,गुन और धाम की स्मृति यदि उसके द्वारा सतत बनी रहती है तो मन मंदिर में वह बस जाता है !वह व्यवहारिक मन से अचेतन मन पर कम्प्युटर की भांति  छप जाता है ! 
जाप में भजन सहायक है !संगीत की मोहक शक्ति से तल्लीनता जल्दी आती है !रसिया आनंद रस में डूब जाता है स्वामीजी की वाणी में -"रम जा मीठे नाद में "बस "राम रस में डूबे रहो   किसी संत ने सूत्र दिया है  ;रस में डुबो ,रहस्य में नहीं !
जैसे पढते समय चुपचाप मन ही मन पढते है और अनायास मन कहीं और चला जाता है ,विषय से भटक जाता है तब जोर जोर से पढ़ना शुरू कर देते हैं ;ऐसे ही नाम जाप में एकाग्र मन के विचलित होने पर जोर जोर से भजन के रूप में जाप करने से मन स्थिर हो जाता है !
भजन में स्तुति ,गुणगान या  प्रार्थना (आत्मनिवेदन )हो तो  वह जाप ही हो जाता है !सीस मुकुट बंसी अधर गाने से  कृष्ण कन्हैया की छवि का ध्यान हो जाता है !सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु  गाने से धनुषधारी राम कास्वरुप दीखता है तो भजन नाम जाप ही है !

"नाम जाप मंत्र  है तो भजन आराध्य  के नाम ,रूप ,लीला गुन और धाम का सिमरन और चिंतन है ~!दोनों से ही परम कृपा मिलती है ,त्रयताप नष्ट होता है ,आनंद -रस की अनुभूति होती है ,शांति मिलती है  और ईश्वर से तार जुड़ जाता है !
दोनोंही ईश्वर की सतत स्मृति बनाए रखते हैं ,दोनों की अमृत ध्वनि  चिरकाल तक कानों में गूंजती रहती है                                                                              !================================= 

निवेदक :  व्ही .  एन.  श्रीवास्तव  "भोला"

शोध एवं संकलन सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 

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उपरोक्त भावनाओं को संजोये है  यह भजन ---YOU TUBE LINK_----------- 
                                                               https://youtu.be/ROFXxABxRcQ

राम राम भजो मन मेरे (स्वामी सत्यानन्द (?),स्वरकार-गायक- "भोला" -

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

प्रियजनों

श्री कृष्ण जन्म की हार्दिक बधाई
आइये पहले हम सब मिल कर बधाई गावें
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बधैया बाजे आंगने में
जसुदानंदन कृष्ण कन्हैया , झूलें कंचन पालने में
बधैया बाजे आंगने में
नन्द लुटावें हीरे मोती , लूट मची घर आंगने में
न्योछावर श्री कृष्ण लला की, नहि कोऊ लाजे मांगने में
बधैया बाजे आंगने में
ठुमुक ठुमुक गोपी जन नाचें ,नूपुर बाँधे पायने में
चन्द्रमुखी मृगनयनी बिरज की तोडत ताने रागने में
बधैया बाजे आंगने में

कृष्ण जनम को कौतिक देखत ,बीती रजनी जागने में
बधैया बाजे आंगने में
जसुदानंदन कृष्ण कन्हैया , झूलें कंचन पालने में,
बधैया बाजे आंगने में

रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम 
सिमरूँ निश दिन हरि नाम, यही वर दो मेरे राम ।
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम । 

मन मोहन छवि नैन निहारे, जिह्वा मधुर नाम उच्चारे,
कनक भवन होवै मन मेरा, जिसमें हो श्री राम बसेरा, or 
कनक भवन होवै मन मेरा, तन कोसलपुर धाम,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ 

सौंपूं तुझको निज तन मन धन, अरपन कर दूं सारा जीवन,
हर लो माया का आकर्षण, प्रेम भगति दो दान,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ 

गुरु आज्ञा ना कभी भुलाऊँ, परम पुनीत राम गुन गाऊँ,
सिमरन ध्यान सदा कर पाऊँ, दृढ़ निश्चय दो राम !
यही वर दो मेरे राम,
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ 

संचित प्रारब्धों की चादर, धोऊं सतसंगों में आकर,
तेरे शब्द धुनों में गाकर, पाऊं मैं विश्राम,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥

रविवार, 16 जून 2019

हे प्यारे पिता  
तेरे चरण कमलों में  शत शत नमन  
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तेरे चरणों में प्यारे 'हे पिता'    ,मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो
कि मन में मेरे सदा आसरा तेरी दया व मेहर की आस हो 
[ राधा स्वामी सत्संग - द्यालबाग ]
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आदिकाल से सभी धर्म ग्रंथों में इस सम्पूर्ण सृष्टि  के सर्जक , उत्पादक,पालक,-संहांरक सर्वशक्तिमान भगवान को  "पिता" क़ह कर पुकारा गया है!  

हिन्दू धर्म ग्रन्थों में उन्हें "परमपिता" की संज्ञा दी गयी है ! ईसाई धर्मावलंबी उन्हें अतीव श्रद्धा सहित "होलीफादर" कह कर संबोधित करते हैं ! 

हमारी "ब्रह्माकुमारी" बहनें उसी परम आनन्द दायक , अतुलित शक्ति प्रदायक , ,ज्योतिर्मय ,शान्तिपुंज  को "शिवबाबा" की  उपाधि से विभूषित करके ,सर्वशक्तिमान निराकार परब्रह्म परमेश्वर से साधको  के साथ  पिता और सन्तान  सा सम्बन्ध दृढ़  करतीं हैं ! 

कविश्रेष्ठ श्री प्रताप नारायणजी के समर्पण -भाव से भरी यह पंक्ति कितनी सार्थक है --

पितु मात सहायक स्वामी सखा तुम्ही इक नाथ हमारे हो 
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उपकारन को कछु अंत नहीं छिन ही छिन जो विस्तारे हो 
[ हे पिता ! तुम्हारे उपकार इतने विस्तृत  हैं कि उनसे उऋण  हो पाना असम्भव है ]
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https://youtu.be/jjd67BJ9X64

निवेदक:   व्ही.  एन . श्रीवास्तव "भोला"

सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 



शुक्रवार, 14 जून 2019

गायन वा
जय श्री राधा जय श्री कृष्णा श्री राधा कृष्णाय नमः -----https://youtu.be/pJFMkOQuhM4
माँ ,जग जननी जय जय---------- https://youtu.be/UvJZe4l8KKU
रामकृष्ण कहिये उठि भोर -----https://youtu.be/yLPHOz1nhjM

                                      

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इस प्रकार भजन गायन की सरलतम विधि से नामानन्द प्राप्ति के मार्ग में मेरे पथ -प्रदर्शक रहे श्री राम शरणम के तीनों सद्गुरु!
श्री प्रेम जी महाराज
बिना पुकारे आ जाते वह सेवा करने दुखी स्वजन की ,
जाने कैसे सुन लेते थे , ध्वनि दुखियों के करुण रुदन की जैसाहमारा  परम सौभाग्य रहा कि  हम दोनों को (कृष्णा जी और मुझे) आज से लगभग छै दशक  पूर्व ही मिल गये थे , हमारे सद्गुरु परम श्रद्धेय श्री स्वामी सत्यानन्द जी महांराज और उन्ही की श्रंखला के अंतर्गत स्वामी जी के बाद श्रद्धेय श्री प्रेमजी महांराज और उनके बाद आस्तिक भाव की अभिवृद्धि की परंपरा में पूर्णतः समर्पित डॉक्टर विश्वामित्र जी महांराज !स्वामी जी ने नाम दान दे कर  किया था  मनुजता का उद्धार ,  श्री  प्रेमजी महाराज ने  निःस्वार्थ सेवा का संकल्प लेकर ,घरघर जाकर , दवा खिलाकर ,किया था  रोगियों का उपचार और  डाक्टर  विश्वामित्र महाजन जी  ने  विश्व के मित्र बन कर  सौहार्दपूर्ण व्यवहार किया और  बरसायी सभी साधकों  पर प्रेम प्रीति कीे अमृत धार  !  ये सभी गुरुजन अतीन्द्रिय शक्तियों से सम्पन्न थे ,उनके आशीर्वाद में,उनकी दया दृष्टि में अपार शक्ति निहित थी !श्रीरामशरणम लाजपत नगर ,दिल्ली के इन तीनों सद्गुरु की निराला छवि, मन मोहिनी मुस्कान, आल्हादित मुखमण्डल , दिव्य तेज ; आज भी सब साधकों के  उर-अंतर में बसा है !अनजान, अपरिचित व्यक्ति  भी यदि इनके  दर्शन कर लेता था   तो इनकी   छवि को भुला नहीं पाता था फिर साधक जनों के तो कहने ही क्या!


अपनी आपबीती बताऊँ ; जब जब मैं अपनी आत्मकथा के पृष्ठ पलटता हूँ ,मुझे तीनों गुरुजनों के स्नेहिल स्पर्श का अहसास ही होता है !ये तीनों  सद्गुरु अपनी कृपा दृष्टि से  हमारे ऊपर और हमारे परिवार के ऊपर परम्  कृपालु रहे ,सहायक रहे ,पथ-प्रदर्शक रहे ,भक्ति -भाव से भरे भजन से प्रभु की उपासना का साधन साधने   के प्रेरक रहे ,हमारे लौकिक और दैवी  जीवन के निर्माणकर्ता रहे !  
मैंने पहिले भी  बताया है,कि ये  तीनों सद्गुरु  सर्वदा हमारे ऊपर बड़े दयालु ,कृपालु रहे! सेवा विनम्रता और प्रेम की प्रतिमूर्ति श्री प्रेमजी महाराज जी ने राम मन्त्र सिद्ध कर लिया था अतः वे  अपनी संकल्प शक्ति से हजारों मील दूर रहते हुए  भी हमारी  सच्ची पुकार सुन कर तत्क्षण हमारा   मार्गदर्शन करते थे , कल्याण करते  थे !दक्षिणी  अमेरिका में स्थित   गयाना में  वे  हमें मुसीबत से उबारने आये ! मौन रहकर भी साधक के मन के विचारों को जानकर उसका समाधान कर देना , पूज्य प्रेमजी महाराज की   बहुत बड़ी विशेषता थी।श्रीदेवी का विवाह संस्कार सम्पन्न करने से पूर्व जब हम दोनों उनका आशीर्वाद लेने श्री रामशरणम ,दिल्ली गए  ,उनके दर्शन किये ,उनसे मिले  पर हमने  अपनी कुछ   इच्छा प्रगट नहीं की ,कुछ माँगा भी नहीं , उनकी कुपालुता देखिये ,दर्शन करके जब हम एक आध कदम ही चले थे  तो हमें बुलवाया और कहा  'बेटी का विवाह करने जा  रहे हो ,गले नहीं मिलोगे’ ! कैसे हमारे मन की बात जान ली ,हम उनके पास इसीलिए तो गए थे !,फिर गले लगाया ,अमृतवाणी पर श्रीदेवी केलिए  आशीर्वचन  लिखकर उसके लिए अमूल्य उपहार दिया और फिडेलफ़िया अमेरिका में स्वामीजी के साथ मेरी बेटी श्रीदेवी को आशीर्वाद देने उसके घर  भी पधारे ;अदृश्य रूप से ,स्वप्न में  ! उन्होंने निराली कृपा की ,झोली तो हमारी छोटी रही ,उनकी कृपा अपरम्पार थी  !:
.श्री प्रेमजी महाराज के महानिर्वाण के बाद सर्वसम्मति से  ट्रस्ट ने डाक्टर विश्वामित्र महाजनजी को ,जिन्होंने श्री प्रेमजी महाराज के आदेशानुसार   मनाली में  रह कर पाँच वर्ष  तक प्रबल तपस्या की थी; श्रीरामशरणं रिंग रोड दिल्ली के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी के पद पर प्रतिष्ठित किया ! यद्यपि डॉ महाजन ने देवी शक्ति के आशाीष से बहुत सिद्धियां पायीं थीं जिनका प्रयोग उन्होंने अपने जीवन काल मे   साधको की मुक्ति और कष्ट निवारण के लिये किया था  लेकिन वे  उन सिद्धियों के अधिकारी है ,यह न तो किसी को बताया न जताया सिर्फ बोलते रहे  कि परम प्रभु श्री राम और  “बाबा गुरु”स्वामी जी महाराज की कृपा से हो रहा है,वे ही प्रतिपालक हैं ,सहायक हैं !.परम पूज्यनीय श्री विश्वामित्र जी महाराज जी ने दोनो गुरुजनो से विरासत मे मिले अक्षत आध्यात्मिक कोष मे कई गुना वृद्धि करते हुए देश विदेश मे जन जन तक राम नाम के अमृत प्रसाद को बांटा I एक सच्चा, सरल, विनम्र, निष्काम, निराभिमानी भक्त व गुरुमुखी, अनुशासनप्रिय शिष्य ही गुरुजनो द्वारा अपनाई गई सीधी राह पर चलकर उनके द्वारा रोपे गये बीज को विशाल वट वृक्ष बना सकता है,  अपने जीवन से यह अनुपम उदाहरण उन्होने हम सब के समक्ष रखा है I


श्री  रामकृपा से प्रेमजी महाराज के आदेशानुसार सूटर गंज कानपुर के अपने पैतृक घर में  हम प्रति रविवार सत्संग नियमित रूप से लगा  रहे थे ,उसके संचालन के  सिलसिले में पत्र-व्यवहार से डॉ विश्वामित्र महाजन से हमारा आत्मीय सम्बन्ध जुड़ा ! शायद 1980 के दशक के मध्य में मुझे "एम्स  नयी दिल्ली " में कार्यरत डॉक्टर विश्वामित्र महाजन के प्रथम दर्शन का सौभाग्य  जालंधर के साधक , मेरे परम स्नेही श्री नरेंद्र साही जी, श्री केवल वर्मा जी एवं श्री प्रदीप भारद्धाज  जी के अनुग्रह से हुआ था !जालंधर के ये तीनों साधक डॉक्टर  महाजन की आध्यात्मिक ऊर्जा से पूर्व परिचित थे ! "एम्स" में डॉ महाजन से  हमारी यह भेंट क्षणिक ही थी,सच पूछें तो  हमारी केवल राम राम ही हो पाई थी ! जो भी हो , मेरे तथा गुरुदेव विश्वामित्र जी के अटूट सम्बन्ध की वह प्रथम कड़ी थी !
अब् आगे की सुनिए :  'सेवानिवृत' हो जाने के बाद  हम और कृष्णा  बहुधा कानपुर के अपने स्थायी निवास स्थान से बाहर अपने बच्चों के पास ,कभी माधव के पास  देवास अथवा अहमदाबाद में तो  कभी राघव के पास नासिक में, कभी प्रार्थना के पास जालंधर  में तो  कभी श्री देवी के पास पिट्सबर्ग में अथवा रामजी के पास यूरोप   में लम्बे प्रवास करते रहते थे  ! ९० के दशक की बात है ,हम दोनों प्रार्थना के पास ,  जम्मू पहुंचे,उन दिनों मेरे दामाद  आलोक वही कार्यरत थे  , उसने बताया कि उसके पास जालंधर से श्री साहीजी ,प्रदीपजी और श्री केवलजी के  अनेक फोन आ रहे हैं,,सब आपको खोज रहे हैं ,उनके यहां श्रीमद्भगवद्गीता पर प्रवचन हो रहे है ,जिसमें शामिल होने के लिए  जल्द से जल्द जालंधर बुला रहे हैं !ये प्रवचन  मनाली में पाँच वर्ष की गहन  तपस्या करने के बाद  जालन्धर के साधकों को उसका अमृतमय प्रसाद बांटने के लिए  पूज्यनीय डोक्टर विशवमित्र जी महाजन जी  कर रहे  थे ,मैं तो समाप्ति के दिन अंतिम सभा में ही शामिल हो सका ;पर मेरे तथा गुरुदेव विश्वामित्र जी के अटूट सम्बन्ध की यह दूसरी कड़ी थी!


फिर तो  हमारा परम सौभाग्य रहा कि सर्वशक्तिमान श्री राम की असीम कृपा से नित  निरन्तर यह प्रेम -सम्बन्ध दृढ़ होता गया ,कालान्तर में "प्रेम भक्ति"के मिलन  का यह  नन्हा बीज विकसित होकर कितना हरिआया ;कितना फूला फला ; कितना दिव्य रसानुभूति का  मूल स्रोत्र बना , उसका अनुमान इस  दासानुदास का अंतर मन ही लगा सकता है ! रसना अथवा लेखनी के द्वारा उसकी चर्चा कर पाना कठिन ही नहीं,असंभव  भी है  ;फिर भी  मुझ जैसे साधारण प्राणी के प्रति  उनके सद्भाव और अथाह प्रेम को  दर्शाने वाले   कुछ संस्मरण प्रस्तुत करने का प्रयत्न  कर रहा हूँ !


सन २००५ में जब मैं भारत से बोस्टन लौटने के पहले गुरुदेव पूज्यनीय डोक्टर विशवमित्र जी महाजन का आशीर्वाद लेने श्री रामशरणम् गया तब भेंट हो जाने के बाद महाराज जी मुझे आश्रम के मुख्य द्वार तक स्वयम पहुँचाने आये ! यह ही नहीं, उन्होंने  इशारे से वाचमेंन को पास बुलाकर दूर खड़ी मेरी गाड़ी को आश्रम के द्वार पर लगवाने का आदेश दिया और जब तक गाड़ी नही आई, महाराजजी वहीं खड़े रहे ! उनके स्नेह को कैसे व्यक्त करू ,  फाटक तक ही नहीं अपितु गाड़ी तक आकर स्वयम दरवाज़ा खोल कर उन्होंने ,मुझे बिठाया और यह कह कर  बिदा किया "अपनी सेहत का ख्याल रखियेगा'!  मेरे साथ ऐसा पहले कभी नहीं  हुआ था, मेरे जैसे साधारण साधक को श्री महराज जी ने इतना स्नेह और सम्मान ;अपने मुख से बखानना अच्छा नहीं लगता  ! आज भी उस क्षण  क़ी याद आते ही  मेरा मन कृतज्ञता से भर जाता है , अहसास होता है कि  मैं कितना भग्यशाली हूँ ?


अब सुनिए प्रियजन,यहाँ बोस्टन पहुंचते ही मुझे मेरे जीवन का पहला हार्ट अटेक हुआ ,दो बार एन्जिओप्लस्टी हुई , तीन "स्टंट " लगे !  जीवन रक्षा हुई , प्रभु की अपार कृपा का दर्शन हुआ ! गुरुदेव श्री विश्वमित्र जी द्वारा चलते समय दिया हुआ अपने स्वास्थ के प्रति सावधानी बरतने के सुझाव का महत्व सहसा समझ में आ गया !


२००८   की बात है ,याद आ रहा है वह दिन जब दिल्ली में महाराज जी ने कृष्णा जी का हाथ पकड़ कर बड़े आग्रह से कहा था कि वह मुझे शीघ्रातिशीघ्र अमेरिका वापस ले जाएँ , मेरा स्वास्थ्य वहीं ठीक रहेगा ! सत्संग  की सभा में ,भजन गाते हुए बीच में खांसी आ जाने के कारण मुझे कई बार रुकना पड़ा ;परम कृपालु श्री महाराज जी मेरी दशा निकट से देख रहे थे ! वे जानते थे  कि भारत के प्रदूषन भरे वातावरण में मेरे स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं होगा ,उल्टा वह अधिक बिगड़ ही सकता है ! मैंने अति दुखी हो कर पूछा कि "महाराज जी मुझे क्यों अपने से दूर करना चाहते हैं ?" ! महाराज जी ने मुस्कुरा कर कहा था " श्रीवास्तव जी आप यहाँ नहीं आ पाएंगे तो क्या मैं ही वहाँ आ जाउंगा , आपजी के दर्शन करने "! महाराज जी का उपरोक्त कथन , उनकी शब्दावली ! प्रियजन , इतनी  'प्रेम-पगी" भाषा केवल दिव्य आत्माएं हीं बोल सकतीं हैं ! मुझे इस समय भी रोमांच हो रहा है , मेरी आँखें भर आयीं हैं उस क्षण के स्मरण मात्र से !

महाराज जी के कथन का एक एक शब्द सत्य हुआ ,यहाँ आकर मैं स्वस्थ हुआ ! महाराज जी ने अतिशय कृपा करके हमे प्रति वर्ष यहाँ यू.एस.ए में दर्शन दिया !भाग्यशाली हूँ ,स्थानीय साधकों ने बताया कि यहाँ पहुचने पर महाराज श्री एयर पोर्ट से ही अन्य साधकों के साथ साथ ,मेरी भी खोज चालू कर देते थे ! हा आप सब जानते हैं अस्वस्थता के कारण यहाँ सत्संग के दौरान भी मैं महाराज जी से केवल एक दो बार ही मिल पाता था परन्तु नित्य उनके सन्मुख बैठ कर , कुछ पलों तक , खुली-बंद-आँखों से उन्हें लगातार निहारते रहने का आनंद दोनों हाथों से बटोरता था !आपको याद होगा , २०१२ के अंतिम यू.एस सत्संग में, बहुत चाह कर भी मैं ,महाराज जी के निदेशानुसार उन्हें भजन नहीं सुना सका था ! न जाने क्यूँ उस समय कंठ से बोल निकल ही नहीं पाए ! कदाचित कोई पूर्वाभास था ,जिसका दर्शन करवाकर महाराजश्री ने मुझे भविष्य से अवगत करवाया था ! धन्य धन्य हैं हम, महाराजश्री हम सब पर सदा ऎसी ही कृपा बनाये रखें !2 जुलाई 2012 को उन्होने देह त्याग दिया, किन्तु वह स

सोमवार, 20 मई 2019

(1)दिन दिन प्रीति बढ़ाओ मेरे स्वामी* ॥
चरन-कँवल-छवि, उर उतारि के, अंतर सरस बनाओ  स्वामी
छलकै नयनन सोँ सनेहरस  ऐसी जुगति कराओ   मेरे स्वामी ॥*
*दिन दिन प्रीति बढ़ाओ मेरे स्वामीे*॥


*मम मन को अँधियार मिटै, अस, आतमग्यान कराओ मेरे स्वामीे* ।
*चमकत पग नख केर ज्योत सोँ , अंतर मन चमकाओ मेरे स्वामी* ॥
*दिन दिन प्रीति बढ़ाओ मेरे स्वामी*॥
*आतमग्यान कराय, जनन कै     भेद सबै बिलगाओ स्वामी*॥
*"मैंं-तू" छोड़ि सबै स्वजनन सोँ, "तू ही तू"  कहिरावौ स्वामी*॥
*दिन दिन प्रीति बढ़ाओ स्वामीे* ॥
नोट --
(बाबा/साँई/स्वामी/सतगुरु, प्यारे - कुछ भी कहिये)
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(2)
बसो मेरे मनमंदिर मे राम*
परमपुरुष  परमेश्वर प्रियतम पावन पुण्यसुधाम
बसों मेरे मन मंदिर में राम
*नज़र झुकाऊँ,     दर्शन पाऊँ लगे न कौड़ी दाम*
*परमात्मा तू स्वयं प्रकाशित ज्योतिपुंज सुखधाम
*बसो मेरे.......*
*मानवतन बलबुद्धि सहित प्रभु तुमने किया प्रदान**
माया के   भटकाये भटके   हम मूरख नादान
**बसो मेरे.....*
*काम क्रोध मद लोभ मोह ने जकड़ा निर्बल जान
*टेढ़ी टोपी डाल   अकड़ता फिरा अहं-लपटान *
*बसो मेरे.....*
*बहुतहुआ प्रभु,कृपा करो अब ,दो सुबुद्धिमतिदान*
*अहं त्याग   शरणागत हो मैं करूँ कर्म निष्काम*
*बसो मेरे मनमंदिर मे राम*************


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(3)
मन क्यों कर चिंता करता है
चिंतन कर प्यारे चिंतन कर !
जिनकी करुणा से गुरु पाया
उन करुणाकर का सिमरन कर    !!


पशु कीट पतँग योनि नहीं दी
सुर दुर्लभ मानव तन बख़्शा !
उन परम कृपालु दयालु राम के
उपकारों का सिमरन कर !


प्रारब्ध भोग सहना होगा ,
देवों ने भी उनको भोगा !
जीवन में संकट आएंगे ,
मत उनसे डर ,हरी सिमरन कर !!
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(4 )
*भुलाना चाहता हूँ सब भगर ना भूल पाऊँ मै*
*तुम्ही कोई दवा दे दो कि सब कुछ भूल जाऊं मै*
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*भुला कर सारी दुनिया को कि जब मैँ मूँद लूँ आँखें*
*मुझे बस तुम ही तुम दीखो ,जिधर नज़रँ घुमाऊँ मैं*
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*इबादतगाह गुरुद्वारोँ में केवल तुम ही तुम दीखो*
*हरिक इंसाँ हरिक शय मेँ फ़कत तुमको ही पाऊँ मैँ*
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*मुझे बरबस   सभी राहेँ तुम्हारे पास       ले आयेँ*
*हरिकमंज़िल में बतुम हो ,चाहे जिस ओर जाऊँ मैँ*
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(4 A)


भुला देते हैँ हम +उनको+, मगर +वह+ याद रखते है*!
*हमें    हर रंजोगम से , +वह+   सदा आज़ाद रखते हैँ*!


*प्रलय  से भयंकर संकट  मनुज जीवन मे आते हैँ*
*उजड़ जाती  है दुनिया, +वह+  हमें आबाद रखते हैँ ।*

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(5)
दिले नादाँ भला काहे को तू इतना घबड़ाता है ।*
*हरिक उलझन तिरी जब खुद तिरा सत्गुरु सुलझाता है ॥*


*अकेला हूँ, कोई रहबर,   न कोई हम सफ़र मेरा ।*
*तुझे जीवन में पगले हर समय  ये ग़म सताता है ॥टेक॥*


*नहीं दिखता तुझे, पर "राम" - तेरा मीत  परमेश्वर ।*
*विपत्ति आने से पहले ही मदद को पहुँच जाता है ॥*


*नहीं असहाय-निर्बल तू ,परमगुरु  की शरन मेँ आ ।*
*शरन आये को सतगुरु स्वयं श्रीहरि  से मिलाता है ॥*=
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( ६  )


प्यारे स्वजनों कहो प्रेम से   रघुपति राघव राजा राम*!
*परमसत्य परमात्मा प्यारा प्रीतिपुंज परमानंद धाम
*प्यारे स्वजनो कहो प्रेम से.योगेश्वर श्री श्यामा श्याम
*प्रेमसहित सबजन मिल बोलो  जयसियाराम जयराधेश्याम
*प्यारे स्वजनों कहो प्रेम से .............................*
*कभी सारथी बने पार्थ के दिखलाया निज रूप  महान i
और सुनाया मानवता को   श्रीमद भगवद गीता ज्ञान i  
प्यारे स्वजनों कहो प्रेम से   
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*प्यारे स्वजनों कहो प्रेम से पतित पावन सीता राम*
*प्रेमसहित बोलो मतभूलो वह है परम शक्ति गुनधाम*
*प्यारे स्वजनों कहो प्रेम से    रघुपति राघव राजा राम*!
*परमसत्य परमात्मा है वह परमानंद शांति सुख धाम*!


*जय जय राम ...*कीर्तन.....*
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( ७ )


*अपने सत्गुरु प्राण पियारे*॥
कहीं न दिखते, पर हैं   हर पल संग हमारे*!
*शीतल-वरद-हस्त सिर रखकर जगजीवन के ताप निवारेँ*॥
*अपने सत्गुरु प्राण पियारे*॥


*एक उन्हीं का  अवलम्बन है, उनपर निर्भर मम तनमन है* ।
*नहीँ कहीं है   कोई निराशा, हर दिश केवल आशा आशा* ।
*ज्योँ गुलाब की शुष्क डाल में सुरभि-गंध की भरी फुहारेँ*॥


*अपने सत्गुरु प्रान पियारे*॥


*आने दिया न ऐसा अवसर, उनके आगे फैलाता कर*  ।
*दुर्घटना घटने से पहले आ जाते गुरु रक्षक बनकर* ।
*उनकी ममता मयी गोद मेँ साधक सब दुखदर्द बिसारे*॥


*अपने सत्गुरु प्राणपियारे*॥


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( ८   )
*प्रथम दरश सतगुरु के चरना*
*अघ-नाशक मंगल शुभकरना*॥टेक॥
*दरसन सों अप्रतिम सुखपावा*
*परम सत्य  गुरु देव  बतावा*॥टेक॥
*आंसुन सोँ गुरु चरन पखारा,*
*बंदन  कर आरती    उतारा*॥टेक॥
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*बन्दौं चरन कमल गुरुवर के*॥
*दूध आलता सरिस गुलाबी  ,कोमल जस पग शिशु रघुवर के*॥टेक॥
*बन्दौं चरन कमल सतगुरु के*॥
*अंधियारे मंह मणिदीपक सम, बरत करत उजियार गहन तम*!
*दरसावत मग गुरवर दर के*॥टेक॥
*काजर सम कारो अंतर-मन   - पाप ताप संंतप्त छीन तन ।*
*भैंट लिये आया गुरु दर पे*  ॥टेक॥

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(9)
सद्गुरु  


म्हारा सतगुरु आंगन आया रे
सतगुरु मिलन भाव सिंचित मम रोम रोम हरसाया रे
नयनन सों जल धार बही तन कुम्भ प्रयाग नहाया रे l                     
तन मन निर्मल कर सद्गुरु को प्रेम सहित गुहराया रे !
पलक झार आँसुनफुहार  सों मन मंदिर चमकाया रे l
म्हारा सतगुरु ++++++++++
भाँतिभांति के सुमन गंधमय बगियन सों चुनलाया रे l   
शिवरंजनि बेला गुलाब लड़ियन  सों द्वार सजाया रे l
आंगन गलियारन चौबारन कहँ  गम गम गमकाया रे l
मनमंदिर के  आसन पर गुरु चरण कमल पधराया रे  l


म्हारा सतगुरु  आंगन आया रे ll

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( 10
परम धाम से परम धाम की यात्रा


भ्रम  भूलोँ के  तूफानो मेँ ,  फँसी जीव की    नय्या।
शरणागत जब हुआ ,मिल गया *सद्गुरु* प्रबल खिवैया ॥


कहाँ  से तू आया है मुसाफिर ,कौन गाँव  जायेग़ा !
गहरी नदिया नाव पुरानी ,निर्बल तू लहरें तूफानी !
कौन पार पहुंचाएगा ,कौन गाँव  तू जायेग़ा !!


बिन हरिकृपा मनुज निरबुद्धी कुछ भी न करपायेगा  !
परम कृपालु राम ही उसकी नय्या पार लगायेगा !!
कहाँ  से तू आया है मुसाफिर----
शून्याकाश से उतर जीव इस शून्य धरणि पर बिखरा ,  
शून्य हुई  मन बुद्धि जगत में ,माया ने धर पकड़ा !
अहंकार मद काम क्रोध मोहादि विषय ने जकड़ा !
मैं मैं करता रहा मूढ़ तू ,प्यारे प्रभु को बिसरा !!
कहाँ  से तू आया है मुसाफिर----------
पूर्ण समर्पण कर प्राणी जब हरिशरणागत होवेगा !
परमकृपालु राम माँझी बन ,नय्या पार लगाएगा !
बाँह पक़ड़ कर तेरी तुझको  परमधाम पहुंचाएगा !
परमधाम से आया है तू परम धाम  को जाएगा !!