मंगलवार, 12 नवंबर 2019

फुटकर रचना-**

ब्रज में बजत बधाई , अरे माई मैं सुनि के आई
nnd duare naubt baje aur bje shahnaaii   
नन्द दुआरे नौबत बाजे और बजे शहनाई 

rtn jdit chndn plne pr sohe kishn knhaii 
रत्न जडित चन्दन पलने पर , सोहे किशन कन्हाई 

bhr bhr thal mogra bela ,maliniya le aaii  
भर भर थाल मोगरा बेला ,माँलिनिया ले आई 
bndnwar bna phuuln se , dyodhii daii sajaaii 
बन्दनवार बना फूलन से ,ड्योढी दई सजाई 

nnd gaanv gmkaa sugndh se , prmudit log lugaaii .    Are 
नंदगांव गमका सुगंध से , प्रमुदित लोग लुगाई   ! अरे माई --------

ubtn kajr tel mahaavr , nauniyan le aaii .  Are maaii -------
उबटन काजर तेल महावर , नाउनिया ले आई   !  अरे  माई --------

nnd lutaaven knk dhaan gud rbdii khiir mlaaii . Are maaii 
नंद लुटावें कनक धान गुड़ रबडी खीर मलाई   !    अरे माई---------- 

luut luut khayen sb purjn  jy jykaar lgaaii .  Are maaii ------

लूट लूट खाएं सब पुरजन जय जयकार लगाई !-    अरे माई --------------- 


सखी धूम मची शंकर अंगना 

 शंकर अंगना गौरी के अंगना  सखी धूम मची शंकर अंगना

सखी धूम मची शंकर अंगना 

शिव गौरी घर सिद्ध विनायक , प्रगट भये तन उबटन मा 

सखी धूम मची शंकर अंगना 

बाज रही मंगल शहनाई , और बजे ढोलक चंगना 

सखी धूम मची शंकर अंगना 

चंद्रमुखी परबत कन्याएं , छेड़ें राग मधुर सुर माँ 

सखी धूम मची शंकर अंगना 

नील गगब से कौतुक देखें --सुरगण देखें ,देव गण देखें 

गौरी को सुंदर ललना ,

सखी धूम मची शंकर अंगना 

इन्द्रलोक की परियां नाचें , खनकाएं झांझर  कंगना 


सखी धूम मची शंकर अंगना 

सद्गुर बिनु  कोऊ ना ऐसो जो हमकह   उद्धारे
खुल गया राज़ कि मैं कौन हूँ क्यों आया हूँ ?
मैं नहीं वह, मुझे जिस नाम से पुकारा है ..


नामवाले बहुत आये-गये गुमनाम हुए,
बच गए वह जिन्हें उस "नाम"ने सहलाया है.

जिस्म का नाम है कुछ, आत्मा है बेनामी ,
सारी दुनिया ने फकत जिस्म को दुलराया है .

देह है वस्त्र जिसे डाल कर हम आये हैं,
सब ने पोशाक को चाहा, हमे ठुकराया है .



मुझको मुंदी नजर से ही सब कुछ दिखा दिया
तेरे खयाल ने मुझे तुझ से मिला दिया!!
 

मुझको दिखा के चकित किया रंग सृष्टि का
आनंद भरा रूप प्रभू का दिखा दिया !!

चेहरा पिया का खेंच कर मन की किताब पर
मेरे हृदय को प्यार का गुलशन बना दिया !!





जीवन बचा हुआ है मेरा  हे कपि तेरी कृपा नजर से 
तूने मग में ज्योति जगा कर .हमें बचाया सघन तिमिर से.

मैं कुछ जान न पाया ,तुमने निज इच्छा से अस्त्र सम्हाले 
आने वाले संकट मेरे ,आने से पहले ही टाले  

सच कहता हूँ , हे प्रभु मैं तो तुमको उसपल भूल गया था 
अपनी बलबुद्धी के मद में तब मैं इतना फूल गया था  

क्या होता ,मेराप्रभु ,यदितुम ,मुझपर तत्क्षण कृपा न करते
मेरी परछाईं से भी तब ,शायद मेरे परिजन डरते. 

जीवन दान दिया क्यों मुझको  हे प्रभु ह्म यह समझ न पाये ,
इक्यासी का हुआ,करूं क्या ,ऐसा जो तेरे मन भाये

यही प्रेरणा हुई ,क़ि प्यारे ,तुम अपना अनुभव लिख डालो 

लाभान्वित हों सबजन ,ऎसी कथा कहो, हरि के गुन गा लो 











-भोला इतनी  कृपा  करी  है तुमने  कैसे  धन्यवाद दू तुमको ,                                                       
मोल चुकाऊ किस मुद्रा मे सब उपकारो का मै तुमको !! 

लख चौरासी योनि घुमाकर ,तुमने दिया हमे नर चोला ,
बुद्धि विवेक ज्ञान भक्ती दे,मेरे लिये मुक्ति पथ खोला !!

ऐसे कुल मे जन्म दिया जिस पर ईश्वर् की दया बडी है,
महावीर् रक्षक है ,अपने आँगन उनकी ध्वजा गडी  है  !! 

बिन मांगे  हनुमत देते है फ़िर् काहे को अ न त जाइये  
हम से ज़्यादा उन्हे ज्ञात है हम को क्या सौगात चाहिये !!


 जन जन में दरसन देते "वह" अति मुसकान ललाम !
सृष्टि में सर्वत्र दिखे "वह" ज्यों कण कण में राम !!

ज्यो ति से ज्योति जगा सद्गुरु ने दिव्य दीप मालिका सजाई !
ध्रुव तारे सम दमक , जिन्होंने भ्रम भूलों को राह दिखायी !

*आँखों की तमन्ना है        दीदार तुम्हारा हो*
*दिल व्हाँ जाना चाहे  ज्हाँ जिक्र तुम्हारा हो**
=================
राम कृपा भरपूर पा रहे हम सब , सद्गुरु जी के प्यारे !
बिना बताये  "गुरु" ने  कैसे अपने बिगड़े काज संवारे  !! 

मेरा क्या ? है सब सखे   उनका ही ब्यापार।*  
*नाटक मे . हम कर रहे वणिक सा  व्यवहार॥
==========================================
मेरे सपने कर साकार , मुझ पर कर इतना उपकार ,
जो आनन्द दिया है तुमने , उसे सकूँगा नही सम्हार !! 

केवल गुरु पूरन समरथ है , हम सब बालक  हैं नादान !
गुरु चर्चा कर ,जोति जगाओ, मेटो गहन तिमिरअज्ञान !

9/26/2017,


मेरे प्यारे राम

 है प्रभु देव दयालु कृपा निधि ,निज चरणों मैं दो स्थान  ।
नाम ध्यान मे रहे मगन मन , केवल होवे तव गुण्रचिंतन ।
केवल यही  मांग है मेरी , और न कुछ दो कृपानिधान ।।
हर धडकन मे तेरा सिमरन , स्वास स्वास तेरा गुणगान ।।

गूँज तां रहा धरती अम्बर में अपने प्यारे प्रभु का नाम 
केवल यही मांग है मेरी और न कुछ  दो कृपा  निधान  ।।
********************************************
मोहन जैसे प्यारे सद्गुरु , जिन   महिमा   मंगलकारी      है  !
हम साधक जन का तन मन धन उन सद्गुरु पर बलिहारी है !!

निरुत्तर हूँ , नि:शब्द हूँ । 🙏🙏🙏🙏🙏
मुख पर लगी है मुहर खमोशी की ,मौन हूँ  ॥
गुरुजन की मेहर से  हटी जो धूल द्वन्द की  ,
आवरण हटा जान गया,  मैं कि    कौन हूँ  ॥
राम राम ।
[7/7, 7:30 AM] भोला कृष्णा: हे गोपाल ,
नचाते रहो जब तलक "तुम" को भावे ,
रुकुंगा नहीं , लय      बढाता    रहूंगा ।
टूटेगी जब   साँस-घुँघरू  की    लड़ियाँ ,
बिखर जाउँगा ,तोड़ जीवन की कड़ियाँ ।
उठावोगे  जब  "तुम" , लगावोगे उर  से
मैं तब भी ,  थिरक-गुनगुनाता   रहूंगा ॥   🙏🙏🙏🙏🙏🙏
 यंत्री है    'श्री सम"   हमारे ,, हम तो       यन्त्र मात्र हैं  केवल,
उनकी शक्ति बिना हम हैं शव जीव बिना निर्बल अरु निश्चल !!   
परम पिता परमात्मा बिनती एक न आन !
 सब की विपदाएं हरो ,करो विश्व कल्यान !
[12/13/2017, 19:28] भोला कृष्णा:


मनमुटाव होते वैसे ही ,      नोक झोंक का वही हाल  हैं ,
अब भी होते हैँ वे सब पर , तब अब का अंतर विशाल है ।
तब थे नव परिचय के संशय , तब था अन्जानो सा ग्यान ,
अब संशय भ्रम दूर होगये , हुई परम सच की    पहचान ।

अपनी प्यारी प्यारी रचना *भाभी* इसमें अंकित करना ।
रसमय शब्दों के अमृत से  स्वजनो के उर सिंचित करना ॥


[1/2, 20:31] Shree Devi: राम कृपा की अमृत वर्षा होवे सब पर सदा सदा ही
स्वस्थ सुखी संपन्न आप हो आनंदित मन रहे सदा ही
नया वर्ष लाए जीवन में एक नया उल्लास
गए वर्ष जो नहीं हुई वह पूरी होवे आस
पूरी होवे आस आपको मिल जाए मनमाना
प्रियवर कार्य सिद्ध होने पर राम नहीं बिसराना
राम नहीं बिसराना वह है ब्रह्म और अविनाशी
??
सबके उर पुर का वासी
उरपुर वासी राम जानता है सबकी इच्छाएं
पर देता उतना ही है जो आंचल बीच समाये
[1/2, 20:32] Shree Devi: आपने कई साल पहले भेजी थी नए वर्ष की ग्रीटिंग में
[1/2, 20:33] Shree Devi: मुझे पूरी कविता ठीक से याद नहीं है
[
[3/31, 17:22] भोला कृष्णा: ॥ भाभी राउर जीवन न्यरा ॥
परिजन रक्षण पोषण सेवन कर्म किये  परिवार संभारा  ॥ भाभी .... ॥
भैया किश्ती छोड़ गये  सहसा जिस छिन तूफान मझारा ॥
साँची सहघरि रहि बाबू की ,आजीवन उन दिया सहारा  ॥
बाबू पिता सदृष्य बने ,माँ सी बन तुमने    सबहि दुलारा ॥
एक नज़र से देखा सबको , एक समान किया निस्तारा   ॥
[4/1, 06:47] भोला कृष्णा: बुआ भतीजी ,  देवर सुत  महुँ कबहु न कोऊ भेद बिचारा
ददिया सास बहू  दिवरानी , कहँ भरसक तुव दिया सहारा ।
[4/4, 07:02] भोला कृष्णा: अब तक वह सौहार्द बना है , अब भी वही प्रीति परिजन मेँ ,
आपन बोया प्रेम  बीज ,भाभी पनपा   जन  जन के मन मेँ ।
[4/6, 09:40] Shree Devi: कविता
भाभी भाभीरानी अम्मा मिलजुल कर पकवान पकाते
नन्दें  बिटियाँ बेटे सारे ,  इक परात में मिलजुल  खाते ।
मेले से जो कपड़े , चप्पल जूते        बाबू भाभी लाते,
सब बच्चों में इक समान परिधान  सभी वो बाटे जाते  ।
कभी न कोई रार हुई   ना   मनमुटाव ही पड़ी सुनाई,
भाभी,  तुमने प्रेम प्रीति की ऐसी सुन्दर  लीक बनाई* ।    Alternate *चलाई
अब तक वह सौहार्द बना है ,अब भी वही प्रीति परिमेँ
कृष्णा गीता उमा उषा राधा
[4/6, 09:40] Shree Devi: अब तक वह सौहार्द बना है , अब भी वही प्रीति परिजन मेँ ,
आपन बोया प्रेम  बीज ,भाभी पनपा   जन  जन के मन मेँ ।

१३ मई १८ 

*राधाधारा जो बहे  तनमन की सुधि खोय*
*जिनके  उरअंतर   सदा  श्री राधेराधे होय*
*राधास्वामी कृष्णजू* *सियापियाश्रीराम* 
*लेलेवैँ उत्संग उन्ह , करमन के फल धोय* ॥5/21/2016, 06:37] 
आँखों की तमन्ना है        दीदार तुम्हारा हो*
*दिल व्हाँ जाना चाहे  ज्हाँ जिक्र तुम्हारा हो**
=================
रा

*इतनी अतिशय प्रीति ? "भक्ति" कहते हैं जिसको ,
झलक रही हर कला कृत्य मे ,    "राम" समर्पित ।
साँस साँस से "दास"  प्रार्थना  करता प्रभु     से ,
दिनदिन दूनी बढ़ै "प्रीति" तव "इष्ट" चरण  प्रति ॥
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सद्गुरु---------------

-! कहूँ ,कैसे करूँ वर्णन ,     छटा उस रूप की !
सघन घन के तिमिर में जो थी शिशिर की धूप सी !!
मूल्य उसका आंक सकता हूँ     यहां पर  शीत में,
दरस को हूँ तरसता  ,गरु- दिव्य-ऊष्ण स्वरूप की !!


मैने नहीं लिखा है कुछ भी      और न कुछ है गाया ,
मेरी कलम पकड़ कर ये सब "हरिजू" ने लिखवाया ॥
चित मन वाणी भाव कंठ स्वर , हरी कृपा से  पाया ,
हरिजू का है परम अनुग्रह ,  जो हमको  अपनाया  ॥

मेरे राम ।
जब तक गवाओगे  गाता रहूंगा 
सुमन गीत के मैं   चढ़ाता रहूंगा 
चरणपर "तुम्हारे" मिरे  प्रानप्यारे 🙏
राम राम ।
[7/7, 7:30 AM] भोला कृष्णा: हे गोपाल ,
नचाते रहो जब तलक "तुम" को भावे ,
रुकुंगा नहीं , लय      बढाता    रहूंगा ।
टूटेगी जब   साँस-घुँघरू  की    लड़ियाँ ,
बिखर जाउँगा ,तोड़ जीवन की कड़ियाँ ।
उठावोगे  जब  "तुम" , लगावोगे उर  से 
मैं तब भी ,  थिरक-गुनगुनाता   रहूंगा ॥
---------------------------------------------

अबतक बरसाते जो हम पर प्रेम प्रीति कीे अमृत धार !!
नमन करो प्यारे साधकजन गुरु चरणन को बारंबार!!-
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बोल मन क्यूँ ना शुकर मनाऊँ उन सद्गुरु का 
जिसने बिन मांगे भर दिया रिक्त भंडारा ,
सुख समृद्धि जय सुयश सफलता परमानन्द अपारा .
इतना दिया कि भिक्षा का कर पाऊँ नहीं सम्हारा ,
उन्हें छोड़ मन मूरख कह तू , जाऊं किसके द्वारा ?
बोल मन क्यों ना शुकर मनाऊँ   उन सद्गुरु का
🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾

गुरुजन की सद् प्रेरणा से ..
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  पर मैंने   ये  धुन बजाई*
*आजीवन  तुम साथ रहना    मेरे "राम राई"*॥ 
*रुक जाय जब साँस मुझको गले से लगाना*
*उत्संग लेना , सदा को,     न करना बहाना* ॥
मेरे प्यारे राम
सर्व व्यापी है तू फिर क्यों नहीं दीखता ?
प्यारे ,ऎसी नज़र दे  कि तुझे हर जगह देख पाऊँ !
जहां देखूँ ,  जिधर देखूँ , मुझे प्रभु तू नज़र आये ,
सिवा तेरे, मुझे इस जगत में , कुछ भी नहीं भाये !!
तुझे हर फूल में देखूँ , डगर की धूल में देखू  !
हे प्रभु , तुझे मैं , पग में चुभते शूल में देखूँ  !!
कुछ ऐसा कर दे ,मेरे प्यारे ,हमे ऎसी दृष्टि दें !कि
जहां देखूँ ,जिधर देखूँ , मुझे तू ही नज़र आये !!
सदा तेरा हर रूप   मेरे  प्यारे मुझे अति ही भाये !  !
!जहां देखूँ ,जिधर देखूँ , मुझे तू ही नज़र आये !! 
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[11/13/2017, 06:32] भोला कृष्णा: 
*जीवन-रक्षा* कर्म प्रथम औ *गायन* दूजा  काम ,
एक साथ करवाते तुम से ,  *करुणाकर    श्रीराम*। 
*धर्म* समझ दोनों कर्मों को करो सदा   *निष्काम*,
पाओगे अनमोल सफलता खरचै   बिना      छदाम ॥
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[7/20, 16:30] भोला कृष्णा: तुकबंदी  ☺☺☺☺
*बिस्तरे मर्ग पर लेटे हुए गाया है  यह*  !
*जब तक चलेगी साँस गाता रहूंगा मैँ* ॥
*हाले दिल  तुमको  सुनाता  रहूंगा मैँ* ॥
[7/20, 17:04] भोला कृष्णा: correction
2nd line...  
*जब तलक साँस चलेगी  युँही गाऊंगा मै* 
*सुने या ना सुने  वो    उनकौ सुनाऊंगा मैं*
*हाले दिल हाले जिगर उनको सुनाऊंगा मैं*
[7/22, 07:08] भोला कृष्णा: 
*न छैड़ो नग्मये ग़म आज तो खुशियाँ मनानी हैँ* 
or
*न छेड़ो राग ग़म का वख्त है खु़शियाँ मनाने का* ।
*तु शरणागत है ,       तेरी नाव पर करतार बैठे हैँ* ॥
^^^^^^^^^^^^^^
समय है सफर का ,  ऐ यार हम तैयार बैंठे हैं ।
बहुत हैं जा चुके इस पार बस दो यार बैठे हैँ ॥
[

+++++++++++++++++×++++++++++++++
[3/1, 4:57 PM] भोला कृष्णा: सिद्ध महात्माओं के दर्शन के साथ उनके नैनों से अविरल झरती अमृत रस धार में सराबोर होने का सौभाग्य इस दास को , अपने सद्गुरुजन की करुणा कृपा से आजीवन मिला !  वह रसधार अब तक नहीं सूखी है !
गुरुजन की इस कृपा ने मन में ऐसा आनन्द भर दिया है की सर्वत्र केवल मधुरता ही साकार दृष्टिगत होती है !े


निराश न हो,ं हमारे सद्गुरु अभी भी सब साधकों की और उसी भाव से देख रहें हैं !
आप उनके विग्रह के सन्मुख बैठ कर उनके चरणों से शुरू कर उनके मुखारविंद तक श्रद्धा प्रीति के अश्रु भरे नैनो से निहारो ,क्षण भर को उनकी प्यार भरी आँखों को देखो , और फिर अपनी अश्रुपूर्ण  आँखें बन्द करलो !
असीम आनन्द आपके मन में भर जायेगा ! महात्माओं के शब्दों में "यही हरि दर्शन है "
प्यारे ,हमारे राम आनन्दघन हैं ,जिन साधकों के मन पर बरस कर ,उनके नेत्रों से झरने लगते हैं , उन साधकों को समझो की "हरी दर्शन" हुआ! 
प्यारे पर इसका अहंकार मत करना ! सुनते ,गुनगुनाते ,ठुमुकते समय केवल उनके प्रति कृतज्ञता के अश्रु  ढलकाते रहो  ! केवल आनन्द लूटो , आनन्द वितरित करो !
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1-5-16     कोटिश नमन सदगुरुदेव 
जय जय राम

आदरणीय साधक बंधु जन.
श्री गुरु पूर्णिमा के शुभ पावन पर्व पर हार्दिक बधाई स्वीकारें |
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दास के आज के हृदयोद्गार .
सद्गुरु जन की मेहर  से जगे हमारे भाग .
अंतर्मन में छिड़ गया प्रेम भक्ति का राग ||
भस्म हुए आशीष से जनम जनम के पाप .
कर्तापन का भाव औ अहंकार की छाप !!

सद्गुरुचरणसरोज रज जो जन लावे माथ .
उनके  मस्तक पर रहे वरद  इष्ट का हाथ !!
कष्ट उसे आनन्दं दे     जपवाये हरि  नाम
नाम जाप से सफल हों उसके सारे काम !!
जय जय जय श्रीगुरुदेव . 

आजीवन नामामृत चाखन के इच्छुक सब कर्मठ जन !

शामिल हो इस नाम यज्ञ में ,सफल करें यह आयोजन !
मानव जीवन धन्य बनाए, ंशुद्ध करें मस्तिष्क सुमन !
डुबकी ले गुरु-तिरवेणी में बिमल बनालें निज तन मन !---------2-1`5-16

अर्पण हैं कोटिश प्रणाम उन, सद्गुरु स्वामी जी के चरनन !
जिनकी  कृपा कटाक्ष मात्र सो ,पाये साधकजन अस दरसन !
ज्योति किरण बन गए शिविर में स्वामीजी औ दोनों गुरुजन !!
धन्य हुए हम ,सुन स्वजनन से, दरसन चमत्कार का  वरनन !!---------3-15-16

"
गुरु आदेश  मान मन मेरे ,    जाप भजन कीर्तन कर ले रे !
छोड़ प्रशंशा मनुज मनुज की ,केवल हरि चिंतन ही कर रे !!

[6/23, 7:48 PM] भोला कृष्णा: 
राम कृपा भरपूर पा रहे हम सब , सद्गुरु जी के प्यारे !
बिना बताये  "गुरु" ने  कैसे अपने बिगड़े काज संवारे  !! 
जय जय जय गुरुदेव !!
[
6/27, 5:54 AM] भोला कृष्णा: 🙏🙏🙏🙏 बोलो राम बोलो राम बोलो राम राम राम !
केवल "एक" गुणी ,समर्थ है ,करता वही जगत कल्यान 
चर्चा एक उसी की करिये ,   बंजारिन में स्वजन सुजान !!
: केवल गुरु पूरन समरथ है , हम सब बालक  हैं नादान !
गुरु चर्चा कर ,जोति जगाओ, मेटो गहन तिमिरअज्ञान !

शनिवार, 14 सितंबर 2019

क्या भजन भी नाम जाप है?श्रीमती लालमुखी देवी
(१८९५ - १९६२)
लक्ष्मी पूजन के दिन , सर्व प्रथम ,
"माँ तुम्हे प्रणाम"
========

तेरा दर्शन मधु सा मीठा ,वाणी ज्यों कोयल की कूक
सुरति तुम्हारी जब है आती उठती है इस मन में हूक !

तूने मुझे दियाहै जितना मेरी झोली में न समाया,
फिर भी रहा अधिक पाने को मैं आजीवन ही ललचाया !

अब भी तेरी कृपा बरसती है मुझ पर बन अमृत धारा
एक बूंद पीने से जिसके होता जन जन का निस्तारा !

जनम जनम तक तेरे ऋण से उरिण नही हो सकता माता
हर जीवन में ,मा तेरा ऋण उतर उतर दुगुना बढ़ जाता !

माँ तुम्हे प्रणाम
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"माँ " के करोड़ों रूप हैं ! जितने रूप हैं उतने ही नाम !
सृष्टि के हर खंड में, हर युग में , हर संस्कृति में , हर सम्प्रदाय में , हर मत में,
एक "माता श्री" के अलग अलग अनेको नांम हैं !

माँ के करोड़ों नामों में से चुने हुए उनके कुछ सबसे प्रसिद्ध नाम

१. विष्णु मायेति २. चेतना ३. बुद्धि ४. निंद्रा ५. क्षुधा ६. छाया ७. शक्ति ८. तृष्णा ९ . क्षमा १०.लज्जा ११.शांति १२ .श्रद्धा १३. कांति १४. लक्ष्मी १५. वृत्ति १६. स्मृति १७. दया १८. तुष्टि १९. मातृ ,तथा २०. भ्रान्ति आदि

देवी माँ इन्हीं नामों के रूप में हम् भूत प्राणियों में व्याप्त हैं और हर पल हमारी रक्षा करतीं हैं हमार मार्ग दर्शन करतीं हैं हमें दिव्य चिन्मय जीवन जीने की प्रेरणा देतीं हैं !
परमप्रिय स्वजनों 
 नवरात्रि के पावन पर्व पर 
हमारा हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करें !

प्रियजन ! अनंत काल से , सृष्टि के हर खंड ,  हर संस्कृति . सम्प्रदाय  एवं मत में
आदि शक्ति "माता श्री" की उपासना होती है ! 
देशकाल और तत्कालिक प्रचलित मान्यताओं  के अनुसार  मानवता के विभिन्न वर्गों में सिद्ध साधकों  के अनुभवों तथा  पौराणिक आख्यानों के अनुरूप आद्यशक्ति माँ के अनेकों रूप हैं,अनेकों नाम हैं  ! 
जननी माँ की प्रतिरूपनी ये दिव्य माताएं सभी साधकों की सफलता ,स्वास्थ्य ,सुख और समृद्धि की दात्री हैं !

भारतीय संस्कृति में  नवरात्रि के मंगलमय उत्सवों के नौ दिनों में  माँ की आराधना के प्रसाद स्वरूप साधकों को माँ से मिलता है   सांसारिक कष्टों से बचने का "रक्षा कवच ". सफलता हेतु मार्गदर्शन एवं  दिव्य चिन्मय जीवन जीने की कला तथा प्रेरणामय यह सन्देश "जागो ,उठो ,आगे बढ़ो उत्कर्ष करो "

सेवा निवृत्ति के  बाद लगभग पिछले २५ वर्ष कैसे जिया , ये बात चल रही थी ,कि श्राद्धों का पखवारा आया और साथ साथ लाया नवरात्री का यह "मात्र भक्ति भाव रस सिंचित" ,दिव्य दिवसों का अद्भुत समारोह !

खाली नहीं बैठा , माँ सरस्वती शारदा की विशेष अनुकम्पा से  इन २५ -३० दिनों में ,प्रेरणात्मक तरंगों में बहते हुए ,"प्रेम-भक्ति रस सेओतप्रोत अनेक रचनाएँ हुईं , और उनकी धुनें बनी ,बच्चों द्वारा उपलब्ध करवाई इलेक्ट्रोनिक सुविधाओं के सहारे उनकी रेकोर्डिंग  हुई , कृष्णा जी ने उनको  यू ट्युब पर भोला कृष्णा  चेनल पर प्रेषित भी किया !सों इस प्रकार मेरा जीवन क्रम अग्रसर  रहा , सुमिरन भजन द्वारा सेवा कार्य चलता रहा  

सरकारी सेवाओं से निवृत्ति के बाद .इससे उत्तम और कौनसी सेवा कर पाता ? इस सेवा से जो परमानंद मिलता है उस दिव्य अनुभव के लिए आदिशक्ति माँ  के अतिरिक्त और किसे धन्यवाद दूँ  !

प्रियजन   इन नौ दिनों  में जो रचनाएँ हुईं उनमें से  एक इस आलेख के अंतर्गत आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ  ! मेरी यह रचना - "सर्वेश्वरी जय जय जगदीश्वरी माँ", मेरे परम प्रिय मित्र एवं गुरुभाई श्री हरि ओम् शरण जी" के एक पुरातन भजन की धुन पर आधारित है 

इस पर स्वाध्याय  से पहले "' जाप और भजन क्या है " इस  संदर्भ में संत महात्माओं के विचारों पर मनन -चिंतन करना  उचित होगा !
नाम जाप ---
श्री मद् भगवद गीता में श्री कृष्ण की वाणी है ---यज्ञों में मैं जप  मैं हूँ !
स्वामी सत्यानंदजी महाराज -------जप करना आध्यात्मिक तप है !
भजन ----
प्रज्ञाचक्षु स्वामी शरणानंद ---
""भगवान प्यारे लगें ,उनकी याद बनी रहे   ,मन लग जाय ,इसी का नाम भजन है !यही तो भक्ति है !''
याद आना ,प्यारा लगना ,अभिलाषा का होना ,यही तो भजन है !भजन में सेवा, त्याग और प्रेम  तीनों इकट्ठे हो जाते हैं !
विचारक इसे  साधना  कहते हैं और श्रद्धालु भजन कहते हैं !

भजन भज धातु से उत्पन्न है जिसका अर्थ है ,बार बार दोहराना ,और दूसरा अर्थ है  'सेवा' !

संत तुलसीदास की मान्यता में नवधा भक्ति में चौथी भक्ति कीर्तन भजन है और पांचवीं भक्ति जाप है  ,
चौथी  भगति मम गुन गन  करइ -कपट तजि गान -
मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा  !पंचम भजन सों वेद प्रकासा !

 सिद्ध संत स्वामी  सत्यानन्द जी ने  'प्रवचन पीयूष में कहा है -कीर्तन दो प्रकार का होता है --धुनात्मक और गीतात्मक !पहला जाप है तो दूसरा भजन !
भजन से लाभ होता है ,यह भी मंत्र ही है !संतों के पद मन्त्रों के समान हैं ! उनके पदों की वाणी उनकी आत्मा से निकले हुए ह्रदय की झंकार है ,उनकी अनुभूति {सिद्ध अनुभव }है !
जब जीभ से प्रभु का कीर्तन हो ,मन से उसका चिंतन हो ,दृष्टि से उसके स्वरुप का  दर्शन हो तब भजन में लीन मनुष्य संसार  को भूल जाता है और उसका मन प्रभु से जुड़ जाता है !
उपनिषद ----
रसों वै स :--"ईश्वर का  स्वरुप रस है !"भजन -कीर्तन में ईश्वर आनंद -रस के रूप में प्रकट होता है !
नारद भक्ति सूत्र  में अखंड भजन को भक्ति प्राप्त करने का साधन बतलाया है !

श्री मद् भागवद  पुराण  में योगीश्वर कवि का कथन है -----
जैसे भोजन करने वाले को प्रत्येक ग्रास के साथ  ही तुष्टि {तृप्ति अथवा सुख }पुष्टि {जीवन शक्ति का संचार }और क्षुधा निवृत्ति --ये तीनों एक साथ मिल  जाते हैं वैसे ही  जो मनुष्य भजन करने लगता है ,उसे भजन के प्रत्येक पल में भगवान के प्रति प्रेम  , ,अपने आराध्य के स्वरूप का अनुभव और अन्य पदार्थों से वैराग्य --इन तीनों की प्राप्ति हो जाती है !
मानसिक भोजन जाप है तो शारीरिक भोजन भजन है !
सिद्ध महात्माओं के कथन को अपने जीवन में डालने वाले साधकों का सार्वजनिक अनुभव ---
धुनात्मक भजन में रम जाओ !चाहे भजन  गाओ  या जाप -करो  -अपने आराध्य के रूप ,नाम ,लीला ,गुन और धाम की स्मृति यदि उसके द्वारा सतत बनी रहती है तो मन मंदिर में वह बस जाता है !वह व्यवहारिक मन से अचेतन मन पर कम्प्युटर की भांति  छप जाता है ! 
जाप में भजन सहायक है !संगीत की मोहक शक्ति से तल्लीनता जल्दी आती है !रसिया आनंद रस में डूब जाता है स्वामीजी की वाणी में -"रम जा मीठे नाद में "बस "राम रस में डूबे रहो   किसी संत ने सूत्र दिया है  ;रस में डुबो ,रहस्य में नहीं !
जैसे पढते समय चुपचाप मन ही मन पढते है और अनायास मन कहीं और चला जाता है ,विषय से भटक जाता है तब जोर जोर से पढ़ना शुरू कर देते हैं ;ऐसे ही नाम जाप में एकाग्र मन के विचलित होने पर जोर जोर से भजन के रूप में जाप करने से मन स्थिर हो जाता है !
भजन में स्तुति ,गुणगान या  प्रार्थना (आत्मनिवेदन )हो तो  वह जाप ही हो जाता है !सीस मुकुट बंसी अधर गाने से  कृष्ण कन्हैया की छवि का ध्यान हो जाता है !सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु  गाने से धनुषधारी राम कास्वरुप दीखता है तो भजन नाम जाप ही है !

"नाम जाप मंत्र  है तो भजन आराध्य  के नाम ,रूप ,लीला गुन और धाम का सिमरन और चिंतन है ~!दोनों से ही परम कृपा मिलती है ,त्रयताप नष्ट होता है ,आनंद -रस की अनुभूति होती है ,शांति मिलती है  और ईश्वर से तार जुड़ जाता है !
दोनोंही ईश्वर की सतत स्मृति बनाए रखते हैं ,दोनों की अमृत ध्वनि  चिरकाल तक कानों में गूंजती रहती है                                                                              !================================= 

निवेदक :  व्ही .  एन.  श्रीवास्तव  "भोला"

शोध एवं संकलन सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 

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उपरोक्त भावनाओं को संजोये है  यह भजन ---YOU TUBE LINK_----------- 
                                                               https://youtu.be/ROFXxABxRcQ

राम राम भजो मन मेरे (स्वामी सत्यानन्द (?),स्वरकार-गायक- "भोला" -

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

प्रियजनों

श्री कृष्ण जन्म की हार्दिक बधाई
आइये पहले हम सब मिल कर बधाई गावें
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बधैया बाजे आंगने में
जसुदानंदन कृष्ण कन्हैया , झूलें कंचन पालने में
बधैया बाजे आंगने में
नन्द लुटावें हीरे मोती , लूट मची घर आंगने में
न्योछावर श्री कृष्ण लला की, नहि कोऊ लाजे मांगने में
बधैया बाजे आंगने में
ठुमुक ठुमुक गोपी जन नाचें ,नूपुर बाँधे पायने में
चन्द्रमुखी मृगनयनी बिरज की तोडत ताने रागने में
बधैया बाजे आंगने में

कृष्ण जनम को कौतिक देखत ,बीती रजनी जागने में
बधैया बाजे आंगने में
जसुदानंदन कृष्ण कन्हैया , झूलें कंचन पालने में,
बधैया बाजे आंगने में

रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम 
सिमरूँ निश दिन हरि नाम, यही वर दो मेरे राम ।
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥
मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम । 

मन मोहन छवि नैन निहारे, जिह्वा मधुर नाम उच्चारे,
कनक भवन होवै मन मेरा, जिसमें हो श्री राम बसेरा, or 
कनक भवन होवै मन मेरा, तन कोसलपुर धाम,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ 

सौंपूं तुझको निज तन मन धन, अरपन कर दूं सारा जीवन,
हर लो माया का आकर्षण, प्रेम भगति दो दान,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ 

गुरु आज्ञा ना कभी भुलाऊँ, परम पुनीत राम गुन गाऊँ,
सिमरन ध्यान सदा कर पाऊँ, दृढ़ निश्चय दो राम !
यही वर दो मेरे राम,
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ 

संचित प्रारब्धों की चादर, धोऊं सतसंगों में आकर,
तेरे शब्द धुनों में गाकर, पाऊं मैं विश्राम,
यही वर दो मेरे राम |
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥

रविवार, 16 जून 2019

हे प्यारे पिता  
तेरे चरण कमलों में  शत शत नमन  
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तेरे चरणों में प्यारे 'हे पिता'    ,मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो
कि मन में मेरे सदा आसरा तेरी दया व मेहर की आस हो 
[ राधा स्वामी सत्संग - द्यालबाग ]
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आदिकाल से सभी धर्म ग्रंथों में इस सम्पूर्ण सृष्टि  के सर्जक , उत्पादक,पालक,-संहांरक सर्वशक्तिमान भगवान को  "पिता" क़ह कर पुकारा गया है!  

हिन्दू धर्म ग्रन्थों में उन्हें "परमपिता" की संज्ञा दी गयी है ! ईसाई धर्मावलंबी उन्हें अतीव श्रद्धा सहित "होलीफादर" कह कर संबोधित करते हैं ! 

हमारी "ब्रह्माकुमारी" बहनें उसी परम आनन्द दायक , अतुलित शक्ति प्रदायक , ,ज्योतिर्मय ,शान्तिपुंज  को "शिवबाबा" की  उपाधि से विभूषित करके ,सर्वशक्तिमान निराकार परब्रह्म परमेश्वर से साधको  के साथ  पिता और सन्तान  सा सम्बन्ध दृढ़  करतीं हैं ! 

कविश्रेष्ठ श्री प्रताप नारायणजी के समर्पण -भाव से भरी यह पंक्ति कितनी सार्थक है --

पितु मात सहायक स्वामी सखा तुम्ही इक नाथ हमारे हो 
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उपकारन को कछु अंत नहीं छिन ही छिन जो विस्तारे हो 
[ हे पिता ! तुम्हारे उपकार इतने विस्तृत  हैं कि उनसे उऋण  हो पाना असम्भव है ]
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https://youtu.be/jjd67BJ9X64

निवेदक:   व्ही.  एन . श्रीवास्तव "भोला"

सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव