माँ का आशीर्वाद
प्रथम विदेश यात्रा
प्रथम विदेश यात्रा
अमेरिकन पोस्टिंग
अमरीकी पोस्टिंग (१९७५) के विषय में बात करते करते १९६२ में अम्मा की अंतिम घड़ी तक वापस आगया था. फिर मन में यह विचार आया क़ि सबसे पहले अम्मा की शुभ कामनाओं और आशीर्वाद से की हुई अपनी प्रथम विदेश यात्रा की कहानी आपको सुना दूँ आपको यह बतला दूँ क़ि उस पहली यात्रा की कल्पना और उसके विषय में मेरे मन में तीव्र उत्कंठा कब और कैसे जागृत हुई और कैसे तात्कालिक परिस्थियों में असंभव लगने वाली यह घटना (पढ़ायी के लिए मेरी इंग्लेंड यात्रा) अचानक घट भी गई
मैं अपने जून २१ के लेख में क़ह रहा था क़ि जब १९६२ में मेरी प्यारी माँ अपने जीवन के अंतिम पडाव पर थीं.ह्म सब उनको कीर्तन सुनाते थे .और वह अपने नैनो से बूंद बूंद प्रेमाश्रु बहा कर अपने मन मन्दिर में बाल पन से बिराजे लड्डू गोपाल के चरण पखारतीं रहतीं थीं.इतनी प्रबल थी उनकी हरि प्रीति .यूँ ही भजन कीर्तन सुनते सुनते उन्होंने एक दिन मुझे अपने से चिपका लिया (मेरे पास उस दिन.की वह फोटो अभी भी है)और मेरे कान में धीरे से बोलीं "होखी बबुआ कुल होखी ,तू पढ़े खातिर बिलायत जइब ,तोहार सीसा के बडका चुका बंगला होखी ,बड़का बडका बिलायती कार पर तू घुमबा." अचानक माँ को कैसे मेरे बचपन में मुझे दिया हुआ वह आशीर्वाद, संसार छोड़ते समय याद आगया .तब उनसे पूछ न सका क्योंकि उसी शाम ---अम्मा यह संसार छोड़ कर अपने गोपालजी के धाम चली गयीं. और फिर ---------.
अम्मा के निधन के साल भर के भीतर ही मैंने एक कार खरीद ली और तब ही मेरे पास लन्दन से सूचना आयी क़ि मेरा एडमिशन वहाँ के एक टेक्निकल कालेज में हो गया है और मुझे शीघ्रातिशीघ्र लन्दन पहुच कर अपनी पढ़ायी शुरू करनी है.
मैं तब रक्षा मंत्रालय के एक आयुध बनाने वाले कारखाने में काम करता था. मुझे दो वर्ष के लिए स्टडी लीव मिल सकती थी लेकिन इसी बीच एक पड़ोसी देश ने भारत पर आक्रमण कर दिया .कर्मचारियों को लीव से वापस बुलाया जाने लगा,नये लोगों की भर्ती शुरू हो गयी. .ऐसे में मुझे स्टडी लीव कौन देता?नीचे से ऊपर तक मैं जिन जिन से क़ह सकता था मैंने कहा ,पूरी कोशिश कर ली ,पर कुछ नहीं हुआ .सब ने मना कर दिया
पर मुझे विश्वास था क़ि जब अम्मा का एक वचन सत्य हुआ ,(मेरा एडमिशन लन्दन में हो गया) तो उनका सम्पूर्ण कथन ही सच होगा.हुआ भी ऐसा ही एक दिन कारखाने के जनरल मेनेजर ने मुझे अपने ऑफिस में बुला कर कहा क़ि मिनिस्ट्री ने मेरी दो वर्ष की स्टडी लीव सेंक्शन करदी है इतनी विषम परिस्तिथि में यह सब हुआ कैसे? इसका उत्तर न मेरे पास था न मेरे जी एम् महोदय को ही ज्ञात था. इस प्रकार मेरी प्यारी माँ का आशीर्वाद उनके जाने के एक वर्ष के अंदर ही सत्य हो गया.मैं लन्दन पहुँच गया ,पढ़ायी चालू हो गयी.लन्दन में रहने को जो हॉस्टल मिला उसमे चारो ओर शीशे ही शीशे थे .
प्रियजनों अपने घर में ही माता पिता और गुरुजनों के स्वरुप में साक्षात् हमारे इष्ट देव विराजमान हैं. बस शीश झुका कर दर्शन करना है. उनका आशीष पाना है.
निवेदक : व्ही एन श्रीवास्तव "भोला"
निवेदक : व्ही एन श्रीवास्तव "भोला"
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