"प्रभु कृपा" व् "निज-पुरूषार्थ"से सिद्धि
प्रियजन , यह बिलकुल सच है क़ि मैं कोई इकलौता ऐसा व्यक्ति नहीं हूँ जो पढ़ाई के लिए लन्दन गया या जिसे साऊथ अमेरिका के एक पिछड़े देश में औद्योगिक विकास हेतु भेजा गया.और जिसे वहाँ अनेकों ऎसी सुविधाएँ मिलीं जो उसे उसके अपने देश में नहीं उपलब्ध थीं.
संसार में अनगिनत ऐसे व्यक्ति हुए हैं जो विषम से विषम परिस्थिति में जन्म ले कर भी अपने आत्म विश्वास और पुरुषार्थ के बल से भौतिक प्रगति के शिखर तक पहुँच गये .मैं .विदेश के अरबपति वारेनबुफेट्स ,बिल गेट्स और कार्लोस स्लिम के विषय में अधिक नहीं जानता,,पर इसी श्रेणी के भारत में ,उन्नीसवीं शताब्दी (१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के बाद) जन्मे अनेक महापुरुषों के विषय में खूब जानता हूँ जो घर बार छोड़ कर , केवल एक लोटा डोरी लिए जीविकोपार्जन करने निकले और वह कर दिखाया जो कोई सोच भी नहीं सकता था .ऐसे घरानों में सबसे अधिक सराहनीय है.गुज़रे जमाने के उद्योगपति सेठ घनश्यामदास बिरला जी और उनका परिवार, धीरुभाई अम्बानी और उनके दोनों पुत्ररत्न .इसके अतिरिक्त टाटा समूह, लक्ष्मी मित्तल ,नारायण स्वामी ,स्वराज पौल ,जिंदल, माल्या ऐसे अनेक उद्योगपति हैं जिन्होंने सराहनीय भौतिक प्रगति की है और देश का गौरव बढाया है .
उपरोक्त सभी उद्योग पतियों की अप्रत्याशित प्रगति के पीछे है उनका आत्म विश्वास, उनका अपना पुरषार्थ एवं अथक परिश्रम. इसके अतिरिक्त इन सभी व्यक्तियों के पास एक अन्य गुण भी है,वह है उनकी "इष्ट भक्ति"और अपने इष्ट पर उनका अखंड भरोसा हमारे समय के एक अतिशय सफल उद्योग परिवार के मुखिया ने मुझे बताया था क़ि " अपने इष्ट का स्मरण कर के कार्य प्रारम्भ करो और फिर देखो कैसी कैसी प्रेरणाएं आप से आप आतीं हैं.इष्ट स्वयम आपका मार्ग दर्शन करते हैं , आपका बोझा निज काँधे पर ले लेते हैं और आप सफल हो जाते हैं, इष्ट को भुलाया तो अनिष्ट होगा."
आवेदक: वही एन श्रीवास्तव "भोला"
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