बुधवार, 9 जून 2010

कृपा प्रसाद

गतांक से आगे
अखंड आनंदस्वरुप हरि दर्शन
श्री हनुमान जी की विशेष कृपा से प्राप्त

तीर्थ-यात्रिंयों की दर्शन-प्रतीक्षा और हमारी-आपकी कथा-प्रतीक्षा अब समापन की ओर बढ़ रही है. मिसिर जी आगे बोले:

"अन्ततोगत्वा वह मंगल दिवस आ ही गया . सूर्योदय से पहले ही सब जग कर उठ बैठे. विश्राम चट्टी पर काफी पहले से ही चहल पहल मची हुई थी. गौडिया वैष्णव भगत ढोल मजीरा बजा बजा कर "हरे कृष्ण" मन्त्र का कीर्तन, और भजन गायन कर रहे थे.

काफी दूर की एक चट्टी से किसी महिला सन्यासिनी की.प्रेमाभक्ति में ओतप्रोत मधुर वाणी कभी कभी सुनाई पड़ जाती थी. वह बड़े प्रेम से कोई कृष्ण भक्ति रचना गा रही थी. श्री जगन्नाथजी से सम्बन्धित वह पद कदाचित कृष्णोपासक कवी विद्यापति जी का है.

जगन्नाथ मन मोह लियो री

गाते बजाते, हम लोगों ने भी चट्टी से प्रस्थान किया. मंदिर के पूर्व दिशा वाले सिंघद्वार से हमने उस भव्य प्रांगण में प्रवेश किया जहाँ पहुचने क़ी इच्छा अधिकाधिक हिन्दुओं को होती ही होती है. श्री जगन्नाथ पुरी धाम भारत के चार प्रमुख धामों में से एक है .

मंदिर का विशाल प्रांगण  श्री जगन्नाथ , बलभद्र एवं सुभद्रा जी के जय कारों से गूंज गया. साथ ही "हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे -हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे " की सुमधुर धुन भी वातावरण को कृष्ण मय बना रही थी .

कहाँ कहाँ के भगत वहां एक प्रांगण में इकठ्ठा खड़े थे. हमारे ही जत्थे में जहाँ एक तरफ अवध के गंगा किनारे यू.पी. के दोकती बाजिदपुर बलिया के निवासी और कहाँ सुदूर पूर्व में मेघना-ब्रम्हपुत्र तट वाले , बालुरघाट-दिनाजपुर बंगाल के यात्री एक जुट होकर, एक ही परमेश्वर की कृपा प्राप्ति हेतु ,मिलजुल कर एक साथ समवेत स्वरों में एक ही भगवान को आवाज़ लगा रहे थे. कितने एकांकियों का एकीकरण श्री जगन्नाथ पुरी धाम में हो रहा था. .

बालूरघाट वाले मन्मथ सेन बाबू कई बार पुरी आ चुके थे. वह मालिक का हाथ पकड़ कर उन्हें सब मन्दिरों में ले जा रहे थे . महालक्ष्मी मन्दिर में उन्होंने माँ का दर्शन करवाने के बाद हमे महाप्रसाद बनने वाला स्थान दिखाया. उसके बाद वह हमे विघ्नविनाशक श्री कांचीगणेश का दर्शन कराने ले गये.

मन्मथ बाबू मालिक का हाथ पकड कर उन्हें गर्भ-गृह की सीढियां चढ़ा रहे थे . मालिक मलकिन का हाथ थामे थे. और मलकिन हमारी वाली का. हम पीछे पीछे पूजा की सामिग्री लेकर चल रहे थे. मालिक बिलकुल स्वस्थ थे . भैया, हमारी तो सांस फूल गयी थी लेकिन उनको तो कुच्छो नही भया था .

ऊपर पहुंच कर मालिक ने मन्मथ बाबू से कहा , "अरे वह महाप्रभु का आसन तो आपने अभी तक दिखाया ही नही." मन्मथ बाबू ने इशारे से उन्हें वह स्थान दिखाया और वहीं से उस आसन को साष्टांग प्रणाम किया. मालिक ने भी वहीं से उस स्थान को प्रणाम किया और फिर उसकी ओर चल पड़े."


शेष कल

निवेदक: वही एन श्रीवास्तव "भोला"

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