बुधवार, 30 जून 2010

OUR PRAYERS



हमारी प्रार्थना 


निज अनुभव --गतांक से आगे

प्रार्थना हमारी अंतरात्मा की पुकार है .जब ह्म आर्त भाव से प्रभु को पुकारते है , वे हमारी पुकार अवश्य सुनते हैं .हम चाहे अपने देश में ,हों या विदेश में ,चाहे घर में हों या मंदिर में,पूरी आस्था और विश्वास से की हुई प्रार्थना के प्रसाद स्वरूप प्रार्थी का हृदय आनंद के अमिय रस से भर जाता है. .दक्षिणी अमेरिका  की पोस्टिंग में जो भारतीय मूल के वेस्ट इंडियन हमे मिले और उनके साथ जो सत्संग का सौभाग्य मिला वह अविस्मरनीय है.उनकी प्रार्थना उनके भजन उनके कीर्तन ऐसे थे जो सैकड़ों वर्ष पूर्व भारत में प्रचलित रहे होंगे .डेढ़ दो शताबदी पहले जो कुछ उनके पूर्वज, जहाज़ों पर सवार होने से पहले ,भारत में गाते बजाते थे, आज उनके बाल बच्चे केवळ उतना ही जानते थे

केवल एकाध ही ऐसे थे जिन्हें भारत जाने का अवसर मिला था.इत्तेफाक से हमारे दोनों ही सत्संगी साथी 
भारत आ चुके थे .एक ने तो भारत में श्री औरोबिन्दो आश्रम ,( ओरोविल पोंडिचेरी) में श्रद्धेया माता जी के दर्शन भी किये थे और उनकी शिक्षाओं से बहुत प्रभावित भी हुए थे.,एक दिन के सत्संग में उन्होंने भारत में सीखा हुआ एक भजन सुनाया :-


सर्जन विसर्जन  तुम्हीं विश्वकर्ता
तुम्हीं विश्व ज्योति में हो प्राण भरता  
तुम्हीं काल के काल तुम्हीं शक्तिधारी 
स्वीकारो स्वयं वन्दना अब हमारी 

दया धर्म की मन में ज्योति जगाओ 
जीवंत पंथ मेरा प्रभु जगमगाओ 
हरो पाप मेरे भरो भाव भक्ति 
मुझे नाथ दो अपनी तुम दिव्य शक्ति 

मुझे  मोह माया के सागर  से तारो 
मेरे   काम और क्रोध को नाथ मारो 
अहंकार मेरा हरो शक्तिदाता 
मेरा कोटि कोटि है वंदन विधाता

उपरोक्त शब्द बिलकुल वैसे हैं जैसे पुरातन काल में भारत के ऋषि मुनियों ने ,परमपिता  की कृपा प्राप्ति के लिए अपनी रिचाओं के द्वारा परमात्मा के श्री चरणों पर अर्पित किये थे.. इन रिचाओं के द्वारा उन  देवपुरुषों ने प्रभु से  दिव्य जीवन की मांग की और उनसे प्रार्थना की क़ि वह उन्हें धर्म की राह पर चलाए और उनके सारे पाप मिटा दे ,उन्हें मोह माया के बंधन से मुक्त करे तथा उनके स्वभाव से अहंकार,काम,  क्रोध आदि विकारों का नाश करदें.


प्रियजन,हमने ये भजन भारत में नहीं सुना था.लेकिन यह ह्म सब को इत.ना अच्छा लगा क़ि उसी समय, हमारे बड़े पुत्र ने ,इस के शब्द ,अपनी भजन की कोपी में नोट कर लिये..यह बात १९७५-७६ की है.आज ३५ वर्ष बाद भी ,यहाँ  यू एस  में ,वह कोपी जिसमे यह भजन लिखा है अभी तक सुरक्षित है तभी तो मैं आज उसके शब्द आपको बता सका हूँ.


अपने पारिवारिक सत्संग की प्रार्थनाएँ क्रमशःआपको बताता रहूंगा. अभी प्रार्थनाओं के फल स्वरूप प्राप्त प्रभु की कृपा का वर्णन करना शुरू भी नहीं कर पाया हूँ.जैसे ही उन का आदेश मिलेगा शुरू हो जाउंगा..


निवेदक:  व्ही.एन. श्रीवास्तव "भोला"

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