पितामह बाबा जी क़ी तीर्थ यात्रा
श्री हनुमान जी द्वारा मार्ग दर्शन
रेलवे स्टेशन के तार बाबू के पास बडका स्टेशन से तार आया था क़ी दोक्ती -बाजिदपुर -बलिया के यात्री स्टीमर से गंगा पार कर के अब रेल गाडी पर सवार हो चुके हैं. स्टेशन के बड़े बाबू ने आदमी दौड़ा कर हमारे डेरे पर खबर करवायी थी.
आपको याद होगा ये वही बड़े बाबू हैं जिन्होंने यात्रा के प्रस्थान के समय बाबाजी को "काया का पिंजरा डोले रे इक सांस का पंछी बोले रे." वाला भजनं सुनाया था. और बाबा जी ने उन्हें टोका था " का ई रोये धोये वाला गीत गाये लगल बाबू ?" जिसके बाद बड़े बाबू ने गोस्वामी तुलसीदास जी का एक अति प्रसिद्द पद छेड़ दिया था . सभी लोगो की आँखे प्रेम-भक्ति के अश्रु जल से डबडबा गयीं थीं, उन्होंने गाया था
ऐसो को उदार जग माही
बिनु सेवा जो द्रवे दीन पर , राम सरिस कोऊ नाही
(कोई भी राम के समान उदार नहीं है.
अपनी कृपा के बदले वह किसी से कुछ सेवा नही मागते)
अपनी कृपा के बदले वह किसी से कुछ सेवा नही मागते)
गति जोग बिराग जतन करि नही पावत मुनि ग्यानी
सो गति जो देत गीध सबरी क़ह प्रभु न बहुत जिय जानी
(श्री राम ने गीध और भीलनी सबरी को वह गति निःसंकोच प्रदान की
जो युगों युगों तक तपस्या करने वाले मुनियों और ज्ञानियों को भी दुर्लभ थी )
जो युगों युगों तक तपस्या करने वाले मुनियों और ज्ञानियों को भी दुर्लभ थी )
पितामह बाबा भी गीध-सबरी के समान, प्रेम सहित पर-सेवा में लगे रहते थे .व्यस्तता के कारण वह कोई जप तप नह़ी कर पाते थे .स्वयं अपनी, अपनो क़ी, अड़ोसी - पड़ोसी की और अपने समाज-देश की जो भी सेवा उनसे बन पडती थी वह करते रहते थे.
पर एक क्र्म उन्होंने आजीवन निभाया. वह था रोज़ प्रातः महावीर जी की ध्वजा के नीचे यह प्रार्थना करना कि 'हे' महावीरजी हमरा के कुछू और ना चाही , बस हमरा के राम जी के भक्ती दे द, सब बचवन के सुबुद्धी द कि लगन मन लगाके प्रेम से आपन काम काज करें और हे महावीरजी बचवा सब तोहरा के कबहूँ ना भुल्वाएं ".
अर्थ न धर्म न काम रूचि , पद न चहऊं निर्बान
जनम जनम रति राम पद यह वरदान न आन
यात्रिओं को घर लाने के लिए घोडा गाड़ी रवाना की गयी. एक गाड़ी में पर्दा लगाया गया जनानी सवारिओं के लिए. बाबाजी जी के साईस गिरधर उनकी बग्घी जोत कर ले गये. डेरा पर मेला सा लग गया .सब सांस रोके प्रतीक्षा करने लगे.
आप भी थोड़ी प्रतीक्षा कर लें.
-- निवेदक- वही एन श्रीवास्तव " "भोला "
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