बुधवार, 16 जून 2010

NIJ ANUBHV

                                                          निज अनुभव  


कहाँ से प्रारंभ करूँ?   मुझे ऐसा लगता है जैसे मैंने ८१ वर्ष के अपने इस जीवन का  एक एक पल प्रियतम प्रभु की अहैतुकी कृपा की छत्र छाया में जिया है. प्रभु ने हमारे जीवन में पग पग पर अवरोधक बन कर आयीं सभी  सांसारिक भव-बाधाओं,पीडाओं,कष्टों ,रोगों से हमारी रक्षा की.,जेठ असाढ़ की तपती गरमाई और सावन-भादों की घनघोर वृष्टि से जैसे ह्म छाता ओढ़ के बच जाते हैं  ,वैसे ही अपनी  कृपा की क्षत्रछाया में रख कर उन्होंने ह्म सब को समय समय पर बड़ी बड़ी आपदाओं-विपदाओं से सुरक्षित रक्खा है.

६०  - ७० वर्ष पूर्व ,श्री हरबंस राय  "बच्चन " का एक गीत आकाशवाणी लखनऊ से छोटी बहिन माधुरी के सुगम संगीत कार्यक्रम में गाने के लिए आया.और भोला भैया इस गीत की धुन बनाने में जुट गये. बहुत ही सुंदर गीत था 
                                   
    "क्या भूलूं क्या याद करूँ मैं?"

न होगा तो धुन बनाने की धुन में मैंने हज़ारों बार तो इस प्रथम पंक्ति को गाया ही होगा . संभवतः इसी कारण आज इतने वर्ष बाद भी मुझे इस गीत  की स्मृति है . मिलन विरह की जिन भावनाओं को   बच्चन जी ने   इस कविता में  व्यक्त   किया है वह सराहनीयहै  .पर  गीत की पहली पंक्ति  आज  की   हमारी मनःस्थिति का यथार्थ  चित्रण कर रही है ,आज मेरे सन्मुख  यह प्रश्न है  क़ि  प्रियतम प्रभु  के .अनंत उपकारों में से कौन कौनसे उपकारौं  का गुणगान करूँ ?

"इतनी कृपा करी है प्रभु ने , किसको किसको याद करूं मैं
 करुणा सागर उनसा पाया    अब किससे फ़रियाद करूं मैं 

 अब केवल है यही याचना  शक्तिबुद्धि मुझको दो दाता 
कह  पाऊँ  मैं सारे जग   से   तेरी कृपा दान की गाथा

आप समझ ही गये होंगे क़ि यह कथा अंतहीन होने जा रही है . अब सवाल यह है क़ि मैं क्या बताऊँ और क्या छुपाऊं? अस्तु श्री महावीर जी की कृपा और उनकी ही प्रेरणा से मुझे जोकुछ, जैसे जैसे याद आता जाएगा मैं आपको सुनाता जाउंगा.
 .
एक आवश्यक सूचना 
पितामह की परमधाम यात्रा की कथा में ,मैं एक अति विशिष्ट सत्य बताना भूल गया था वह यह है क़ि "बचपन में हरबंस भवन बलिया की कचहरी में मैंने ,पितामह के चित्र के साथ ,एक दुसरे फ्रेम में जड़ी हुई ,उनकी वह अंतिम चिट्ठी स्वयं इन आँखों से देखी ही नही वरन पढ़ी भी है."

  
 निवेदक  व्ही एन  श्रीवास्तव "भोला"  
                                                                        

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