बुधवार, 23 जून 2010

NIJ ANUBHAV (Posting in America )


निज अनुभव गाथा 


अमेरिका की पोस्टिंग 
गतांक से आगे 

मेरे प्यारे प्रभु ने कैसी कैसी सुविधाएँ हमें, उस दूर देश में प्रदान की, उनका उल्लेख करते हुए मैंने कहा था क़ि उनकी सारी क़ि सारी कृपाओं का वर्णन करना मेरी सीमित क्षमता के बाहर है. पर उसी सन्दर्भ में मुझे एक बात अभी याद आयी जो बहुत पुरानी है,पर बताउँगा जरूर . बचपन से मेरी माँ मुझे दुलराते हुए अक्सर कहा करती थी क़ि "हमार भोला ता विलायत में पढ़ी,ओकरा पासे बड़ा बड़ा गाड़ी होखी ,और ऊ बड़का चुक्के सीसा के बंगला में रही, देख लीहा तू सब लोग" . १९३०-३६ के बीच जब अम्मा ने यह वचन कहे थे हमारा परिवार बहुत संपन्न था . तब हमारे बाबूजी ,एक ब्रिटिश कम्पनी के विशिष्ट श्रेणी के अधिकारी थे. उन्हें वो सारी सुविधाएँ प्राप्त थीं जो विलायत से आये अंग्रेजों को मिलती थी  उस जमाने में अम्मा की यह सोच समयानुकूल थी और उनके आशीर्वाद का फलीभूत होना सुनिश्चित लगता था.
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इस बीच सेकंड वर्ल्ड वार छिड़ गयी और बाबूजी ने वह कम्पनी छोड़ दी. बिजनेस में बहुत घाटा हुआ .तंगी के दिन आये. तब ह्म केवल ८-१० वर्ष के थे ..पर मैं अपनी प्यारी माँ का वह आशीर्वाद,,भूल न पाया .मुझे पूरा विश्वास था -क़ि मेरी देवी स्वरूपिणी माँ का वचन कभी खाली नहीं जा सकता. १९६२ में अम्मा को एकाएक भयंकर द्रुतगामी केंसर रोग ने घेर लिया और डॉक्टरों ने उन्हें केवल एक पखवारे का मेहमान घोषित करदिया.इस विषय में एक बात और उल्लेखनीय है --इतनी भयंकर पीड़ा झेलते हुए अम्माँ ने अपने बच्चों को चिंतामुक्त रखने के लिए ये जाहिर होने ही नहीं दिया क़ि उन्हें कितनी  पीड़ा है .सदैव वह मुस्कुराती रहतीं थीं .
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हमारी माँ के जीवन के अंतिम दो तीन दिन शेष थे. एक दिन प्रातः वह बाहर बरामदे की बड़ी आराम कुर्सी में बैठीं थीं.  पीडाओं की मंजूषा उन्होंने अपने हृदय में संजो रखी थी.एक  अनूठे तेज से जगमगाते उनके चेहरे में आगे के उनके दो दांत मोतियों की तरह चमक कर  उनके  मन में संग्रहीत परमानंद चहू ओर फैला रहे थे. निकट भविष्य में आने वाले संकट से ह्म सब अवगत थे ,अस्तु अम्मा को पल भर के लिए भी अकेले नहीं छोड़ते थे. ह्म सब  अपने काम काज से छुट्टी ले कर उन्हें घेरे रहते थे .उन्हें भी अच्छा लगता था. ह्म उन्हें कीर्तन सुनाते थे..वह स्वयम कुछ बोल  नहीं पातीं थीं लेकिन उनकी आँखों से प्रेमाश्रु टप टप टपकते  रहते  थे  


शेष कल 


निवेदक:व्ही एन  श्रीवास्तव "भोला"

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