पितामह बाबा जी की तीर्थ यात्रा:
श्री हनुमान जी द्वारा मार्ग दर्शन
पितामह बाबा , राम हित लालजी के " राम " केवल दशरथ नंदन "राम" अथवा परम पुरुष भगवान "श्री राम" की संगेमरमर की मूर्ति तक ही सीमित नही थे. उनके "राम" घट घट वासी थे . उन्हें परब्रह्म "श्री राम" का मंगल दर्शन परम पिता की समग्र सृष्टि में होता था. उन्हें संसार के सभी जड़ चेतन पदार्थो में केवल " राम" ही दिखायी देते थे. उन्हें तुलसी के इस कथन की सत्यता पर पूरा भरोसा था:
जड़ चेतन जग जीव जत सकल राम मय जानि
बंदौ सबके पद कमल सदा जोरि जुग पानि
राम ब्रह्म चिन्मय अबिनासी . सर्व रहित सब उर पुर बासी..
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू . मायाधीस ज्ञान गुनधामू..
वह एक पल को भी यह नही भूलते थे क़ि-
आकर चार लाख चौरासी, जोनि भ्रमत यह जीव अबिनासी.
कबहुक करि करुना नर देही , देत ईस बिनु हेतु सनेही.
बड़े भाग मानुस तन पावा , सुर दुरलभ सब ग्रंथिही गावा.
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा , पाइ न जेहि परलोक सवारा.
सो परत्र दुःख पावही सर धुन धुन पछताई.
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोस लगाईं..
( It is our exceptional fortune that the GOOD LORD has bestowed this human form to us which is not available even to gods-as mentioned in ancient scriptures Only Human beings are capable of performing SADHNA for liberation of their soul . One who fails to do this becomes unhappy for which he blames Bad Times his Destiny-Fate, and does not even spare GOD .)
पितामह बाबा जी की यात्रा तो चल ही रही है. आगे के विवरण की थोड़ी प्रतीक्षा कर लें .
--निवेदन :श्रीमती डॉ कृष्णा एवं :व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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