मंगलवार, 22 जून 2010

NIJ ANUBHAV GAATHA (prathm katha)


करूँ बयान कहाँ तक प्रभु जी मैं तेरे उपकार 
मेरा यह कागज़ छोटा है तेरी कृपा अपार 
(शनिवार  १९ जून २०१० के आगे)

लिखने बैठता हूँ तो एकके बाद एक ,"प्रभु -कृपा" की असंख्य मधुर स्मृतियाँ अन्तर पट पर उमड़ने लगतीं हैं. उलझ जाता हूँ उनमें . मदद के लिए कुलदेवता को पुकारता हूँ "जय  हनुमान ज्ञान गुन सागर ",बल-बुद्धि-बिद्या प्रदायक श्री हनुमान जी विलम्ब नहीं करते. उनकी प्रेरणा से लेखन पुन: शुरू हो जाता है .

किसी के अभिशाप, परमपिता की कृपा से हमारे लिए आशीर्वाद बन जाते हैं.  आज के  संसार में  प्रगति का माप दंड हैं  भौतिक उपलाब्धियाँ . किसने कितना धन जमा किया .कितनी और कौन सी कारें हैं उसके पास ?वह कैसे घर में रहता है ? प्रगति के ये प्रत्यक्ष लक्षण दूर से ही नजर आ जाते  हैं . आध्यामिक उन्नति अति सूक्ष्म होने के कारण ,स्थूल नजरों से,साधारण प्राणियों को दिखायी नहीं देती .  

आम इंसान के  दृष्टिकोण से देखें तो हमारी विदेशी पोस्टिंग  से हमें जितना सांसारिक आर्थिक ,सामाजिक और आध्यात्मिक लाभ हुआ उतना न इससे पहले कभी हुआ था न 
उसके बाद होने की कोई संभावना ही थी .

मुंबई में तब ह्म सात प्राणी  दो कमरे वाले एक साधारण से फ्लैट में रहते थे . मैं वहाँ से बस द्वारा लोकल स्टेशन जाता था  फिर ट्रेन में घंटे  भर धक्के खाते हुए ऑफिस पहुँचता  था. पाँचो बच्चे दो दो बस बदल कर  घंटेभर धक्कम धक्का करते स्कूल जाते थे . और धर्म पत्नी (जो  कानपूर दिल्ली में घर  से बाहर नहीं निकलतीं थीं)  यहाँ पर घरखर्च चलाने में मेरी मदद करने के लिए नौकरी करती थीं.उन्हें सरकारी अफसरों को हिन्दी भाषा सिखाने के लिए एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर तक दिन भर यहाँ से वहां भटकना पड़ता  था. भारत में ईमानदारी से जीने वालों का जीवन तब ऐसा ही था ,कदाचित आज भी कुछ वैसी ही परिस्थिति होगी  वहां की.

प्रियजन ,मेरे उपरोक्त कथन को आप मेरा गिला-शिकवा न समझिये..मुझे तो उस स्थिति में भी अपने ऊपर प्यारेप्रभु की अनंत कृपा का अनुभव हो रहा था. आप पूछेंगे कैसे 
इस लिए क़ि मैं, तब भी अपने को उतना ही सौभायशाली मानता था जितना आज मानता हूँ. मेरे परिवार के सभी स्वजनों ने (बच्चों और उनकी मा) ने मेरे साथ जितना सहयोग
क़िया वह असाधारण था. किसी ने हमारी परवरिश में किसी प्रकार की कमी की शिकायत कभी भी नही की --उलटे वो सब मुझे ईमानदारी से अपने कर्म करने को प्रोत्साहित करते रहे. कभी कोई कलह या मनमुटाव तक नही हुआ. आप ही कहें यह मेरा सौभाग्य नहीं तो
और क्या है? प्यारे प्रभु को बहुत बहुत धन्यवाद ,कोटिश प्रणाम 

अब विदेश में प्यारेप्रभु ने जो कुछ हमे दिया वह बता दूँ.. नहीं  बताऊंगा तो स्वयम मेरा ही मन मुझे कोसेगा और कहेगा "दुःख की गाथा गाय के सुख का दियो भुलाय" (कठिनाइया सब बता दीं लेकिन जो सुविधाएँ भविष्य में प्रभु कृपा से मिलीं वह बताना भूल गये). तो लीजिये वह सब भी बता ही दूँ. 

भारत की मध्यम वर्ग की एक रिहायशी कोलिनी के पुराने से दो कमरे के फ्लैट.से निकल कर ४८ घंटे में ह्म साऊथ अमेरिका के एक देश की राजधानी में अतलांतिक सागर तट पर वहा के मिनिस्टरों तथा सरकार के ऊँचे पदाधिकारियों के लिए निर्मित कोठिओं में से एक फर्निश्ड कोठी में बस गये. उस कोठी के विषय में जितना कहूँ कम होगा इसलिए अभी नहीं फिर कभी बताउंगा. पर आप ही सोच कर देखें.इतना चमत्कारिक बदलाव  प्रभु कृपा के अतिरिक्त और कैसे हो सकता है.यही नह़ी मैंने जीवन में किसी तरह की कोई ऐयाशी नही की लेकिन घर के गराज में कार रखने का शौक मुझे बचपन से था  रख ही सकते थे .
छोटी तनख्वाह में कार मेंटेन करना असंभव था. दर्शन मात्र से प्रसन्न हो जाते थे.पहली  नयी प्रीमियर कार १९७४ में सरकारी कोटे से मिली और मैंने दफ्तर से लोन लेकर खरीदी पर  वह भी एक वर्ष में ही भारत छोड़ने से पहले निकालनी पड़ी.,प्रियजन मुझसे बुद्धू  पर होने वाली यह प्रभु- कृपा तो देखिये -१५ दिनों के भीतर ही मेरे इष्टदेव हनुमानजी ने मुझे एक ब्रांड निउ टोयोटा करोला (१९७६ मॉडल )दिलवा दी. ह्म अपनी कार पर बैठ कर ही होटल से सरकारी कोठी तक आये .   देखा आपने मेरे इष्ट की कृपा का चमत्कार

शेष बहुत कुछ है .प्रियजन आगे देखते रहिये उनकी अनंत कृपाओं का चमत्कार 

निवेदक: व्ही एन  श्रीवास्तव "भोला"



.
  

कोई टिप्पणी नहीं: