गुरुवार, 10 जून 2010

श्री हनुमान जी की अहैतुकी कृपा


गतांक के आगे :

श्री हनुमान जी की अहैतुकी कृपा के फल स्वरुप प्राप्त
मंगल दर्शन - समग्र समर्पण

प्रियजन .मिसिर जी थोड़ी थोड़ी देर में रो पड़ते हैं और कहानी रुक जाती है. अस्तु आगे की कहानी अब मैं स्वयं  ही सुना देता हूँ . वैसे रोअक्कड़ तो मैं भी कम नहीं हूँ पर कोशिश करूंगा उतना न रोऊँ.


किसी प्रकार की भी, कैसी भी सांसारिक अथवा आध्यात्मिक उपलब्धि की प्राप्ति के लिए  मनुष्य को सबसे पहले समुचित "प्रयास" करना पड़ता है. आपने अब तक देख लिया क़ि मन्मथ बाबू की दैहिक सहायता व मानसिक प्रोत्साहन से और अपने निजी प्रयास से यात्री मंदिर के गर्भ गृह तक पहुंच पाए हैं. सबको अब "प्रार्थना" करनी है क़ि कर्मफलदेनेवाला योगेश्वर कृष्ण उनको कर्मो का उचित फल दे.
 जैसा पुरातन-वैदिक काल से हम भारतीय करते आये हैं.



.सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु , सर्वेषां शान्तिर्भवतु 
सर्वेषां पूर्णं भवतु सर्वेषां ,मंगलम भवतु

सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माकश्चिद दुखः भाग्भवेत .


ॐ शांति शांति शंति: 
(गुरुजनों का कहना है क़ि हमारी कोई भी प्रार्थना मात्र स्वार्थ सिद्धि हेतु न हो. प्रार्थना बहुजन हिताय बहुजन सुखाय होनी चाहिए)

( हे प्रभु .सबका कल्याण हो,सबको शांति प्राप्त हो
सबमे पूर्णता आये, सब सौभाग्यशाली हों.
सब सुखी हों, सब योग्य हों,
सब परस्पर एक दूसरे का भला देखें , कोई भी दुःख से पीड़ित न हो.
भीतर शांति, बाहर शान्ति, सर्वत्र शांति )

आप कहेंगे इतनी लम्बी यात्रा कर के आये और अपने लिए कुछ भी नह़ी माँगा. भैया, जब पहली बार गुरुजन ने यह प्रार्थना मुझ से करवायी तब मेरे मन में भी यही प्रश्न उठा था., पर तुरंत ही मेरी शंका का समाधान हो गया. गुरु अम्मा के बाद हमारे दूसरे आध्यात्मिक पथ प्रदर्शक बाबू (स्वर्गीय माननीय चीफ जस्टिस श्रीयुक्त शिव दयाल जी श्रीवास्तव) ने तुरत समझा दिया. .उन्होंने कहा "भोला बाबू सर्व मे हम आप सभी शामिल हैं, सब के लिए वह देगा तो हमे भी कुछ ना कुछ तो मिलेगा ही ".


फिर भटक गया मैं. चलिए वापस कथा पर आजायें .


सब यात्रिओं ने अपनी अपनी श्रद्धा भक्ति के अनुसार अपनी अपनी प्रार्थना की. पितामह बाबा ने भी त्रिमूर्ति के सामने खड़े होकर अपनी प्रार्थना की. पितामह उस स्थान पर खड़े थे जहाँ पर खड़े हो कर निमाई ठाकुर (चैतन्य महाप्रभु ) अपनी पूजा करते थे. मन्मथ बाबू मालिक के साथ खड़े थे. थोड़ी देर में पितामह वहीं जमीन पर बैठ गये..


कुछ समय तक वह खुली आँखों से त्रिमूर्ति के मनमोहक स्वरुप का दर्शन मंत्रमुग्ध हो कर रहे थे . फिर धीरे धीरे उनकी आँखें मुद गयीं और मन्मथ नाथ का हाथ पकड़े वह वहीं भूमि पर बैठ गये. उनकी बंद आँखों के कोनो से टप टप कर आंसुओं की बूंदें नीचे गिरने लगीं. पर उनके मुख मंडल पर चिंता या कष्ट का कोई चिन्ह नही था. उनका चेहरा एक अनोखे तेज से चमचमा रहा था.


धीरे धीरे पितामह का शरीर शिथिल पड़ने लगा. मन्मथ बाबू चिंतित हो कर जोर से बोले " दादा मोशाई की होच्चे आपोनाय , चोख्ह टा खोलून. कीछू बोलूँन ना मोशायी " (दादाजी आपको क्या हो रहा है., आँखे खोलिए, कुछ बोलिए तो श्रीमान.) इस बीच पृथ्वी पर शांति से पड़े पितामह के शरीर को अन्य यात्रियों ने घेर लिया . दादी माँ मूर्छित हो गयीं मिसिर जी कहीं से एक डॉक्टर खोज के ले आये.


डॉक्टर ने जांच कर के पितामह को मृत घोषित कर दिया. मंदिर में मौजूद सभी यात्री और पंडे पुरोहित उदास हो गये . होश आने पर दादी माँ पहले तो जोर जोर से रोईं फिर आश्वस्त हो कर उन्होंने मिसिर जी को आदेश दिया क़ि दादा जी का दाह एवं अंतिम सारे संस्कार विधि विधान से वही जगन्नाथपुरी धाम में ही किये जायें . बलिया साइड के सभी यात्रिओं की मदद से दादाजी का काम विधिवत सम्पन्न करवा के दादी जी, मिसिरजी और मिसराइन सब बलिया वालों के साथ वहां से वापस लौटे


प्रियजन, अभी तक आपको हम, श्री हनुमान जी की उस विशेष कृपा के विषय में कुछ बता ही नही पाए हैं. विश्वास करिये अगले अंक में, उन्ही की कृपा से आपको सब कुछ बता देंगे. .






निवेदक. व्ही एन श्रीवास्तव "भोला"

1 टिप्पणी:

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
धन्यवाद....
satguru-satykikhoj.blogspot.com