गतांक से आगे
पितामह की परमधाम यात्रा
श्री हनुमान जी का आदेश
वह अजनबी उन्हें बैठक के एक कोने में ले गया और भोजपुरी भाषा में ,बड़ा अपनत्व दिखाते हुए बोला " मालिक आप ह्म के ना चीन्ह्भ , ब़र ह्म ता तोहार सातो पीढी के जानेली तोहार बाबूजी ब़रजोर दास ,उनके पाचो भाई और तोहार बाबा राम प्रसाद दासो के ह्म देखले रहनी.आगन के महाबीरी धजा के नीचे तू लोग जौन रोजे गावेला ह्म कूल सुनले बानी. आच्छा लागेला हम के ई कूल. " उसकी बातें विचित्र थीं.उसका स्वरुप भी कुछ विचित्र ही था.उजली लुंगी और उजले अंगौछे से उसने अपना लम्बा चौड़ा तन ढक रखा था. उसके चेहरे पर एक अनोखी आभा थी..उसने हमसे गंगोत्री की जगह गंगासागर और पुरी धाम जाने की सलाह दी और यह भी कहा क़ी अपने साथ मैं मलकिन को जरुर लेजाऊं. मुझे दुविधा में देख कर उसने कहा . "मालिक तोहार बोलउआ पुरी धाम से आईल बा.उहें उनके दरबार में आपके मुक्ती लीखल बा..दरसन दे के ऊ आप के बिमान पे चढा के आपन परम धाम ले जैहें. इहाँ के कूल बेबस्था करके निकलिहा " उसकी बात ने मुझे चौका दिया .अभी मैं सम्हल भी ना पाया था क़ी वह फिर बोला की ""बाबू ह्म बड़ा दूर से अइनी हां .कुछ पन पियाव ना करइबा का? "मैं भीतर गया उसके लिए कुछ नाश्ता मंगवाने और जब लौट के आया तब तक वो गायब हो चुका था. कितना खोजवाया मैने उसे पर वह कहीं नह़ी मिले अचरज तो यह है क़ी किसी ने उन्हें आते जाते नहीं देखा .वह हमारे कुलदेव हनुमानजी की तरह "अति लघु रूप " तथा "सूक्ष्म रूप धरी" वायुमंडल में कहाँ समा गये . उनकी बात झूठलाने अथवा जग जाहिर करने का साहस मैं नह़ी कर सका अस्तु यह पत्र लिखा.
लेकिन अब जब तुम लोग यह खत पढ़ रहे होगे ,तब तक तो जो होना है हो चुका होगा. अब भविष्य के विषय में सोचना है ..
शेष अगले अंक में
निवेदक : व्ही एन श्रीवास्तव "भोला"
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