दिलवाली दिल्ली के दिलदार गायक "मुकेश"
(जुलाई २८ के अंक के आगे)
मुकेश जी के विषय में लिखित पिछले सन्देश में छपे १९७२ के चित्र में मैं ४२ वर्ष का हूँ और मुकेशजी हैं ४६ के ! उस दिन बम्बई की चौपाटी वाले सभागृह में मैं मुकेश जी से जीवन में पहली बार मिला था ! उसके बाद भी उनसे मैं केवल दो चार बार ही मिल पाया ! कारण एक तो मुकेश जी कुछ अस्वस्थ हो गए औंर दूसरे मुझे सरकारी काम से अक्सर बम्बई के बाहर टूर पर जाना पड़ा ! उधर जब मुकेश जी थोड़े स्वस्थ हुए उनकी बीमारी के कारण पिछडी हुईं रिकार्डिंग्स होने लगीं और उनके स्थानीय और विदेशी टूर्स भी चालू होगये ! हाँ , इस बीच अचानक मेरी पोस्टिंग भी साउथ अमेरिका के एक विकाशशील देश "गयाना" में हो गई और मझे ३ वर्ष के लिए बोरिया-बिस्तर उठाकर सपरिवार गयाना की राजधानी जोर्जटाउन में डेरा
डालना पड़ा ! मैं गयाना में १९७५ से १९७८ तक रहा !
१९७३ के अंत अथवा १९७४ की शुरूआत में अचानक ही मुकेश जी से मेरी मुलाकात बम्बई के एक प्रसिद्ध बिजिनेस हाउस द्वारा आयोजित पार्टी में हुई ! अपना पिछडापन छुपाने के लिए मैं पार्टीज में ,भोज के पहिले के ड्रिक्स का पूरा सेशन जान बूझ कर एवोइड करता हूँ ! हाँ तो उस पार्टी में भी काफी देर से पहुंचा !
अभी बाहर लाउंज में ही था कि डायनिंग हाल के दरवाजे से बाहर निकलते , मुकेशजी दिखाई दिए ! काफी कमजोर नजर आ रहे थे , इसलिए पहली नजर में मैं उन्हें पहचान ही नही पाया पर जब पहिचान गया फिर क्या बात थी ! इत्तेफाक से ड्रिंक्स एन्जॉय करने वालों से हांल तो खचाखच भरा था , लेकिन लाउंज बिल्कल सुनसान था ! उस समय उसमे केवल हम दो प्राणी थे ! एक मैं और दूसरे मुकेश जी !
उस दिन काफी देर तक उनसे बातें होती रहीं ! सबसे महत्व पूर्ण बात जो मैंने उस दिन जानी वह यह थी कि मुकेश जी का दिल उतना ही सुंदर और विशाल था जितनी उनकी काया तथा उनकी ख्याति थी ! विस्तार से पूरी वार्ता आपको अगले अंक में सुनाउंगा !
अभी अपना पुराना वादा पूरा कर लूँ ! आपको मुकेश जी का सबसे पहिला फिल्मी गाना खुद गा कर सुनादूँ ! ध्यान रखिये गा कि उन्होंने जब वह गाना गाया था वे बाईस के थे और आज जब मैं गा रहा हूँ उनसे चौगुनी उम्र का -अस्सी दो बयासी का हूँ !
तो सुनिए १९४५ की फिल्म "पहली नजर" में गायी मुकेश जी की गजल
दिल जलता है तो जलने दे ,आंसू न बहा फरियाद न कर
तू परदा नशीं का आशिक है , यूँ नामे वफा बर्बाद न कर
दिल जलता है तो जलने दे
मासूम नजर से तीर चला बिस्मिल को बिस्मिल और बना
अब शर्मो हया के पर्दे में , यूं छिप छिप के बेदाद न कर
दिल जलता है तो जलने दे
दिल जलता है तो जलने दे आंसू न बहा फरियाद न कर
हम आस लगाये बैठे हैं तुम वादा कर के भूल गए
या सूरत आके दिखा जावो या कहदो हमको याद न कर
दिल जलता है, दिल जलता है, दिल जलता है
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फरियादी : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
मददगार : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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1 टिप्पणी:
काकाजी प्रणाम ..बहुत ही सुन्दर संस्मरण !
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