रविवार, 7 अगस्त 2011

"मुकेश जी" और उनका नकलची "मैं" # ४ १ ६


मुकेश जी और मैं
गतांक से आगे
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यह दोस्ती कायम रहे अब जनम जनम तक
आवाज़ ये मिलजुल के लगाते चले चलो
(यह कीर्तन मंदिर में सुनाते चले चलो)
"भोला"
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बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
मंजिल की धुन में झूमते गाते चले चलो
"मुकेश जी का एक गीत"
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प्रियजन आप ही क्यों सारा जमाना जानता है कि मैं मुकेश जी का कितना जबर्दस्त फैन हूँ ! बचपन से लेकर आज बुढ़ापे के इन दिनों तक ,उनकी नकल कर के, उनकी चीजें गा गा कर, मैं,औरों से अधिक ,कभी कभी ,अपना ही , अकारण उदास हुआ जी बहला लेता हूँ ! कैसे बताऊँ ,कितना सोज़ ,कितना सुकून , कितनी तसल्ली मिलती है, अब भी इस बूढ़े ,थके हारे दिल को मुकेशजी के उन नगमों को गुनगुना कर !

आज से ६०-७० वर्ष पहले - १९४७-५० की मधुर स्मृतियाँ, बरबस ही उभर रहीं हैं, मस्तिष्क पटल पर ! विद्यार्थी जीवन की कथायें ! सोंचिये , कल्पना करिये , आपका यह भोला मित्र , स्वयम १८ वर्ष का ,अपने ही एज ग्रुप के , अपने ही जैसे सुसंस्कृत परिवारों के , अच्छे अच्छे बच्चों के सामने मुकेश जी के , कभी दर्द और कभी ओज भरे नगमे गा रहा है !

मझे अच्छी तरह याद है मेरे सामने दरी पर ,सिर झुकाए बैठीं, देश विदेश से विद्याध्यन हेतु ,काशी पधारी ,भारतीय मूल की बालिकाओं की और उनके पीछे विभिन्न छात्रावासों से आये मद्रासी, पंजाबी, गुजराती ,बंगाली तथा उत्तर भारत के सभी प्रदेशों के बालकों के चेहरे और उनका, मेरे हर गाने के बाद ज़ोरदार ताली बजाकर मुझे एक के बाद एक मुकेशजी के गीत गाते रहने का प्रोत्साहन !

सबसे पहिले "दिल जलता है तो जलने दे" गाकर, उनके बिछड़े हुए साथियों की याद दिला कर मैंने सभी श्रोताओं की आँखों में आंसू ला दिया था ! सामने वाली बालिकाओं की डबडबाई आँखें देख कर मेरी आँखें भी नम हो गयीं थीं ! यदि रक्षाबन्धन के कारण उन्हें अपने भाइयों की याद आ रही थी तो मुझे भी अपनी छोटी बहन मधु की ! कार्यक्रम के संचालक "रंगा" की फरमाईश पर महफिल का माहौल तब्दील करने के लिए फिर मैंने मुकेश जी का एक दूसरा गाना गाया - ओज भरा -

मंजिल की धुन में झूमते गाते चले चलो
बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
इंसानियत तो प्यार ओ मोहब्बत का नाम है
मोहब्बत का नाम है
इंसानियत की शान बढ़ाते चले चलो
बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
मंजिल की धुन में झूमते गाते चले चलो
बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
आज़ाद जिंदगी है तो बर्बाद क्यूँ रहे ?
बर्बाद क्यूँ रहे ?
बर्बादियों से दिल को बचाते चले चलो
बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
मंजिल की धुन में झूमते गाते चले चलो


दो दिन की जिंदगी में कोई क्यूँ उठाये गम ?
कोई क्यूँ उठाये गम ?
नगमे खुशी के सब को सुनाते चले चलो
बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
मंजिल की धुन में झूमते गाते चले चलो
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माफ करना मित्रों , ५०-६० साल बाद ये गाना गाने बैठा हूँ ऐसे में जरूर कुछ भूला भी हूँ और कुछ अंतरे भी ऊपर नीचे हुए होंगे ! लेकिन खुशी इस बात की है कि ,मैं गा पाया और मेरी सहयोगिनी ( भाई वकील वाली वकीलनी नहीं समझना उन्हें - क्योंकि मैं योगी कहलाने के कतई योग्य नहीं) मेरी वेटरन बीवी के कापते हाथों से फ्लिप का नन्हा केमरा छूटा नहीं !

आपसे , एक और गुनाह की मुआफ़ी मांगनी है ! मुकेशजी से अपनी उस दिन की बातचीत का ब्योरा मैं पूरा नहीं कर पा रहा हूँ ! बुढ़ापे से दबी ,मेरी हल्की आवाज़ को सुन पाने वाले मेरे कुछ अतिशय प्रिय , स्नेही पाठकगण मुझे विश्राम कर के धीरे धीरे लिखने की सलाह देते हैं और कुछ वैसे ही आदेश धर्मपत्नी जी तथा उनके (यूं तो मेरे भी) प्यारे प्यारे बच्चे यदा कदा पारित करते रहते हैं ! कैसे उनका स्नेहिल आदेश अनसुना कर दूँ ? पर फिर सोचता हूँ समय थोडा है और कहानी लम्बी ! देखते देखते पन्द्रह महीनों में ४०० से अधिक पृष्ठ लिख गया हूँ लेकिन लगता ऐसा है जैसे अभी कहानी शुरू ही नहीं हुई !

पुराना लेप टॉप शरारत करता था ! पूरे पूरे पृष्ठ अन्तर्ध्यान हो जाते थे ! पिछडी हुई कहानी की रफ्तार बढ़ाने के लिए, मेरे इस जन्म दिवस पर बच्चों ने मुझे एक नया लेप टॉप गिफ्ट किया ! लेकिन ये भी तो सच है न कि जब सवार मेरे जैसा बूढा हो तो अरबी घोड़ा भी क्या कर सकता है ? अन्ततोगत्वा लगता है मुझे हार माननी ही है !
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कल तक रहा तो फिर यही इक बात कहूँगा
जब तक बनेगा दास्ताँ कहता हि रहूंगा
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सह्योग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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2 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

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मुकेश जी की आवाज़ की दीवानी हूँ ! आपकी पोस्ट पर उनके बारे में पढ़कर दिल को सुकून मिलता है !

Glad to know you got a beautiful gift from loving children of yours . Keep writing for our sake . We need you.

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G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम - आप कितने दिल से किसी बात को कह जाते है ! शायद हम उतना कर पाए , यह मालूम नहीं ! आप के लगाव और प्रेम मुकेश जी की यादो को ताजा कर देती है ! अब तक देखे तो भी मुकेश के स्थान को अभी तक किसी ने भर नहीं पाया ! आप आराम से लिखे , भगवान करे आप सदैव लिखते रहे और हम आप को पढ़ते रहें !