मुकेश जी के साथ अपनी अंतिम मुलाकात की कथा सुना रहा था कि अकस्मात ही
,
लग गयी मुंह पर हमारे मौत सी मुहरे खमोशी
किसी से कुछ कह न पाया कोशिशें पुरजोर की
दस दिन पहले मैंने अपना अंतिम सन्देश इस तुकबंदी से बंद किया था
कल तक रहा तो फिर यही इक बात कहूँगा
जब तक रहूंगा दास्ताँ कहता हि रहूँगा "
इसके बाद १०-१२ दिन से एक अक्षर भी नहीं लिख पाया हूँ ! आपको याद होगा ,जब से मैंने लिखना शरू किया है तब से अभी तक मैंने अपने संदेशों में कभी एक दो दिन से अधिक का अंतराल आने ही नहीं दिया !मैंने अपने आप को २४ x ७ संदेशों के गठन में ही व्यस्त रखा ! बेचैन हो जाता था जिस दिन मैं समय से अपना सन्देश प्रेषित नहीं कर पाता था ! पर इस बार तो गजब ही हो गया ! पूरे दस दिवसों की छुट्टी मार ली और अभी भी यह नहीं कह सकता कि ये लेख भी कब तक प्रेषित कर पाऊंगा ? हाँ, आज थोड़ा सम्हला तो सोचा कि पेश्तर इसके कि कोई और प्रसंग छिड जाए मैं जल्दी जल्दी मुकेश जी के साथ अपनी अंतिम मुलाकात की कथा पूरी कर दूं !
तभी शायद उनको कुछ याद आया और मेरा हाथ मजबूती से पकड़ कर वह मुझे लाउंज के कोने में पड़े एक बड़े सोफे तक ले आये और बड़े प्यार से मुझे अपनी बगल में बैठा कर बोले " हाँ , भैया जब मुझे पिछली बार हार्ट अटैक हुआ था तब मैं कोलकत्ता में था !कुछ स्वस्थ होने पर आई .सी .यू.से निकल कर जब निजी कमरे में ;डॉक्टर्स की हिदायतों के अनुरूप विश्राम ले रहा था,एकांत में , मुझे रामायण सुनने की इच्छा हुई ! अभी अभी हार्ट अटेक से उबरा था ! भाई आप तो समझ ही रहे होंगे?" ,
प्रियजन मैं तब नहीं समझ सका था लेकिन आज स्वयम दो हार्ट एटेक्स झेलने के बाद साफ साफ समझ पा रहा हूँ !
मुकेश जी ने आगे कहा - " वहाँ कलकत्ते के हॉस्पिटल में जो भी मुझे देखने आया सबने यही कहा आपके रामायण गायन से रीझ कर भगवान राम ने ही आपकी जीवन रक्षा की है ! मैं जानता हूँ यह ध्रुव सत्य है ! केवल मेरी क्यूँ समस्त मानवता की रक्षा एक 'वह' ही कर रहे हैं"! इतना कहते कहते प्रेम भक्ति की भावनाओं से उनका कंठ अवरुद्ध हो गया ,उनकी आँखे भर आईं ! मैं भी कुछ वैसी ही स्थिति में आगया ! और हमे वह परम पुरातन भजन जों हम बहुत बचपन में स्कूलो की प्रार्थना में गाते थे याद आ गया जिसे मुकेश दादा ने आधुनिक काल में रेकोर्डों में गाकर पुनः जीवंत कर दिया
पितु मातु सहायक स्वामी सखा तुम्ही एक नाथ ह्मारे हो
जिनके कछु और आधार नहीं तिनके तुमही रखवारे हो !!
मुझसे बात करते समय उनके चहरे पर जो प्रेम और भक्ति के भाव उभरे थे ;उसके ख़याल से ,इस समय भी मेरा दिल भर आया है !ऐसा लगता है बहक रहा हूँ ;पर आज न छोडूंगा ! उनके साथ ही हूँ !
कुछ रुक कर , मुकेशजी बोले कि " भाई जब भी "उनका" ख़याल आता है तब वह कोई ना कोई मददगार भेज ही देते हैं ! उसी दिन कोलकता के मेरे होस्ट जब मुझसे मिलने आये ,मैंने उनसे अपनी हार्दिक इच्छा जाहिर कर दी ! आगले दिन बहुत सबेरे उनका सेक्रेटरी H M V के पोर्टेबल रिकोर्ड प्लेयर के साथ पोलीडोर का यही "राम गीत गुंजन" वाला एल्बम वहाँ पहुंचा गया ! फिर क्या था तन्हायी में मैंने उसे बार बार सुना ! ताप से संतप्त मेरे आकुल -व्याकुल मन को बहुत शान्ति मिली !
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दो दिनों में इतना ही लिख पाया !
आज यहीं समापन करता हूँ और कल का 'नो वादा' प्लीज़ ! कारण न पूछिए !
आपकी अनमोल दुआओं प्रेरणाओं के लिए दिली शुक्रिया
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आप सबके सदा से अपने और आगे सदा सदा भी -- अपने ही
भोला कृष्णा
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3 टिप्पणियां:
बहुत भावमय संस्मरण प्रस्तुत किया है आपने .आभार
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति.बहुत सुन्दर संस्मरण.आप के हम बहुत आभारी हैं की आप हमसे इतने सुन्दर भावों को शेयर कर रहे हैं
कका जी प्रणाम ,बहुत ही ओजपूर्ण यादगार !
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