जिस जीव पर प्रभु की असीम कृपा होती है उन्हें परम सिद्ध महापुरुषों के दर्शन स्वयमेव होते रहते हैं ! आवश्यकता पड़ने पर ये संत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में उपस्थित होकर 'जीव' के भौतिक और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान करते हैं और उस जीव के मानवीय व्यक्तित्व को उत्तरोत्तर विकसित करते रहते हैं !
फेरो न कृपा की नज़र, हे गुरुवर.......
नयन कटोरे भर भर तुमने, दिव्य प्रेम रस पान कराया।
जलते मरुथल से अन्तर पर ,तुमने अमृत रस बरसाया।।
झरने दो निर्झर।
फेरो न कृपा की नज़र,हे गुरुवर।
भटकूंगा दर दर हे स्वामी ,यदि तुमने निज हाथ छुड़ाया ।
शरण कहाँ पाऊंगा जग में ,यदि न मिली चरणों की छाया।।
ये तीनों सद्गुरु अपनी कृपा दृष्टि से हमारे ऊपर और हमारे परिवार के ऊपर परम कृपालु रहे, सहायक रहे, पथ-प्रदर्शक रहे, भक्ति-भाव से भरे भजन से प्रभु की उपासना का साधन साधने के प्रेरक रहे, हमारे लौकिक और दैवी जीवन के निर्माणकर्ता रहे ।
सद्गुरु स्वामीजी महाराज की अहैतुकी कृपा ने हमारे हृदय में नाम की ज्योति जगाई, उसके दिव्य प्रकाश में हमारा आध्यात्मिक पथ प्रशस्त किया और उन्होंने नामयोग के अंतर्गत नाम दीक्षा दे कर हमारा उद्धार किया;
प्रेमसिन्धु पूज्य प्रेमजी महाराज ने हमें कर्तव्य-परायणता का पाठ पढाया, निष्ठापूर्वक ईमानदारी से सेवा भाव की कर्तव्य भूमि पर हमें चलाया और जब कहीं पर भयावह परिस्थितियों ने हमें दबोचा, मीलों दूर रहने पर भी, अपनी संकल्प शक्ति से प्रगट हो कर हमे उबारा;
महर्षि डॉ विश्वामित्तरजी ने भजन-कीर्तन के आनंद की मस्ती में डुबो कर प्रेम-प्रीति की अमृतधार प्रवाहित करने में हमारी मदद की ।
अपने परिवार के सदस्यों के साथ ,विषेषतः दो पीढ़ियो के साथ गत वर्ष को गाने -बजाने और खेल कूद के साथ बिदाई देने और नव वर्ष का स्वागत करने का मज़ा कुछ अनिर्वचनीय ही है 1 इसलिए यह वीडियो अनमोल है ,मेरे जीवन के अनुपम उपहारों में से एक है
श्री रामशरणम के सदगुरु प्रेमजी महाराजजी की महनीय कृपा का वर्णन करना मेरे सामर्थ्य से परे है, जिनसे आत्मशक्ति पा कर मैंने अवस्थानुसार जीवन भर विवेक बुद्धि से कार्य किया, कर्मयोग की साधना में कर्म से सृष्टिकर्ता का पूजन किया । आजीविका अर्जन के विहित कर्म अपनी सरकारी नौकरी में, मैं उच्चतम शिखर पर पहुँच गया । स्वेच्छा से साठ वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त हो कर कुछ वर्षों में सब बच्चों के विवाह-संस्कार सम्पन्न कर और उनको आजीविका अर्जन के लिए स्वावलम्बी बना कर, उनके भरण-पोषण के उत्तरदायित्व से मैं मुक्त हो गया । फिर रह गया एक ही ध्येय, एक ही कार्य, एक ही लगन, एक ही चिंतन - "सर्व शक्तिमान परम पुरुष परमात्मा के गुणों का गान करना, उनकी महिमा का बखान करना, भक्तिभाव से भजन-कीर्तन करना और मगन रहना"।
परम पूज्य श्री प्रेमजी महाराज के निर्वाण दिवस २९ जुलाई मांगलिक अवसर पर मेरा उनके श्री चरणों में कोटिश नमन !
मन मंदिर में अपने "प्यारे प्रेमजी महाराज" का विग्रह प्रतिष्ठित कर, बंद नेत्रों से "प्यारे" की छवि निरंतर निहारते हुए, सुध बुध खोकर "उनका" गुणगान कर गीत संगीत द्वारा "उनकी" अनंत कृपाओं के लिए अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करना, उनकी महिमा का बखान करना, भक्तिभाव से भजन-कीर्तन करना और मगन रहना"।
यह है मेरा प्रणाम उन्हें कोटिश प्रणाम ।
निवेदक एक साधक
व्ही ,एन श्रीवास्तव "भोला"
शनिवार, 22 जून 2024
हमारे पौराणिक ग्रंथों में सुख दुःख के तीन भेद बताए हैं ; इन्हें "त्रयताप" कहा गया है !
(१). आधिदैहिक , (२). आधिभौतिक और (३).आधिदैविक( आध्यात्मिक )
(१) आधिदैहिक ताप -विषय -वासनाओं से निसृत शारीरिक सुख दुःख : है . (२) आधिदैविक ताप देवताओं की कृपा या कोप से प्राप्त सुख दुःख है जो कभी दुखदायी और कभी आनंददायी कल्याणकारी और हितकारी प्रतीत होते हैं (३) आधिभौतिक ताप सृष्टि के बाहरी साधनों के संयोग से , मानव द्वारा निर्मित सुविधाओं से उत्पन्न होने वाले दुःख -सुख है !
पर सच पूछो तो आज समस्त संसार की ही दशा दयनीय है .! ब्रह्मानंदजी ने अपनी एक रचना में आज के मानव की दुखद मनःस्थिति ,इन शब्दों में अभिव्यक्त की है :
सताया राग द्वेषों का, तपाया तीन तापों का ,
दुखाया जन्म म्रत्यु का ,हुआ है हाल तंग मेरा!!
दुखों को मेटने वाला तुम्हारा नाम सुन कर मैं
सरन में आ गिरा अब तो भरोसा नाथ है तेरा !!
आज मानवता एक के बाद एक विविध प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं को झेल रही है ! कहीं सुनामी और भूकम्प ,कहीं "आयरीन" (विनाशकारी समुद्री तूफ़ान) तथा कहीं पर भयंकर महामारिया और संक्रामक रोग हमे आये दिन त्रस्त करते रहते है ! दूसरी ओर अधिभौतिक प्रगति के फलस्वरूप मिले न्यूक्लिअर विध्वंसक अस्त्र शस्त्र , तथा मानव की सेवा के लिए आविष्कृत वायुयानों जैसे उपकरणों का दुरुपयोग कर के मानव ही दानव बना मानवता को मिटाने का संकल्प किये बैठा है ! आज परिस्थिति यह है कि ----
काम रूप जानहि सब माया ,सपनेहु जिनके धरम न दाया !
करहि उपद्रव असुर निकाया , नाना रूप धरहि कर माया !!
तामसी दुष्प्रवृत्तियों से अपनी आधिभौतिक शक्ति और तकनीकी ज्ञान तथा आधुनिक उपकरणों के दुरूपयोग से मानवता को नष्ट भ्रष्ट करने की आसुरी प्रवृत्ति वाले दानव कब तलक हमें सताते रहेंगे ? अब तो यही लगता है कि उनका अंत करने के लिए "श्री राम" जैसी परम सात्विक शक्तियों को अवतरित होना होगा और समस्त विश्व में राम राज लाना ही होगा क्योंकि
भजन: जय जय जगदीश्वरी माँ
यह रचना - "सर्वेश्वरी जय जय जगदीश्वरी माँ", मेरे परम प्रिय मित्र एवं गुरुभाई श्री हरि ओम् शरण जी" के एक पुरातन भजन की धुन पर आधारित है.
सर्वेश्वरी, जय जय जगदीश्वरी माँ, तेरा ही एक सहारा है
तेरी आंचल की छाहँ छोड़ अब नहीं कहीं निस्तारा है
सर्वेश्वरी जय जय ------------
मैं अधमाधम, तू अघ हारिणी ! मैं पतित अशुभ, तू शुभ कारिणी
हें ज्योतिपुंज, तूने मेरे मन का मेटा अंधियारा है !!
सर्वेश्वरी, जय जय --------------
तेरी ममता पाकर किसने ना अपना भाग्य सराहा है
कोई भी खाली नहीं गया जो तेरे दर पर आया है !!
सर्वेश्वरी, जय जय --------------
अति दुर्लभ मानव तन पाकर आये हैं हम इस धरती पर,
तेरी चौखट ना छोड़ेंगे ,अपना ये अंतिम द्वारा है !!
सर्वेश्वरी, जय जय ---------
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रचनाकार एवं गायक "भोला "
See Video on youtube at
http://www.youtube.com/watch?v=ZCPEhHrNV2w
साधक का ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम ही भक्ति है ! मानव हृदय में जन्म से ही उपस्थित प्रभुप्रदत्त "प्रेमप्रीति" की मात्रा जब बढ़ते बढ़ते निज पराकाष्ठा तक पहुँच जाए , जब जीव को सर्वत्र एक मात्र उसका इष्ट ही नजर आने लगे (चाहे वह इष्ट राम हो रहीम हो अथवा कृष्ण या करीम हो ) जब उसे स्वयम उसके अपने रोम रोम में तथा परमेश्वर की प्रत्येक रचना में, हर जीव धारी में, प्रकति में, वृक्षों की डाल डाल में , पात पात में केवल उसके इष्ट का ही दर्शन होने लगे, जब उसे पर्वतों की घटियों में,कलकल नाद करती नदियों के समवेत स्वर में मात्र ईश्वर का नाम जाप ही सुनाई देने लगे , जब उसे आकाश में ऊंचाई पर उड़ते पंछियों के कलरव में और नीडों में उनके नवजात शिशुओं की आकुल चहचआहट में एकमात्र उसके इष्ट का नाम गूँजता सुनाई दे तब समझो कि जीवात्मा को उसके इष्ट से "परमप्रेमरूपा -भक्ति" हो गयी है ! स्वामी अखंडानंद जी की भी मान्यता है कि " अनन्य भक्ति का प्रतीक है, सर्वदा सर्वत्र ईश दर्शन ! साधक के हृदय में भक्ति का उदय होते ही उसे सर्व रूप में अपने प्रभु का ही दर्शन होता है !
दे दो राम !! दे दो राम !!
हे राम !
मेरे राम ! मेरे राम !
सतगुरु से तव नाम सुयश सुन, जाना तुमको राम !
अविरल भक्ति, शक्ति अतुलित दे ,करवाओ निज काम !!
मेरे राम ! मेरे राम !
दे दो राम ! दे दो राम !
दे दो राम ! दे दो राम !
अविरल भक्ति दे दो राम ! अतुलित शक्ति दे दो राम ! अविरल भक्ति दे दो राम ! अतुलित शक्ति दे दो राम !
जपते जपते तव शुभ नाम !
मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम !
जपते जपते तव शुभ नाम, चलूं धर्मपथ, करूँ सुकाम !
जपते जपते तव शुभ नाम, चलूं धर्मपथ, करूँ सुकाम !
दे दो राम ! दे दो राम ! अविरल भक्ति दे दो राम !
दे दो राम ! दे दो राम ! अतुलित शक्ति दे दो राम !
दे दो राम ! दे दो राम ! मीठी वाणी दे दो राम !
दे दो राम ! दे दो राम ! मीठी वाणी दे दो राम !
दे दो राम ! दे दो राम ! मीठी वाणी दे दो राम !
सच बोलूं पर दिल न दुखाऊँ, सुयश गान कर प्रीति लुटाऊँ !
मैं प्रीति लुटाऊँ !
सच बोलूं पर दिल न दुखाऊँ, सुयश गान कर प्रीति लुटाऊँ !
मैं प्रीति लुटाऊँ !
अक्षर ब्रह्म शब्द में झलके, मुखरे स्वर में ईश्वर नाम !
अक्षर ब्रह्म शब्द में झलके, मुखरे स्वर में ईश्वर नाम !
मुखरे स्वर में ईश्वर नाम ! मुखरे स्वर में ईश्वर नाम !
दे दो राम ! दे दो राम ! दे दो राम ! दे दो राम !
मीठी वाणी दे दो राम ! मीठी वाणी दे दो राम !
दे दो राम ! दे दो राम !
मीठी वाणी दे दो राम !
सद् विवेक पावन वृत्ति दो ! सात्विक रहनी दृढ़ भक्ति दो !
सद् विवेक पावन वृत्ति दो ! सात्विक रहनी दृढ़ भक्ति दो !
हृदय शुद्ध दो ! मति प्रबुद्ध दो ! हृदय शुद्ध दो ! मति प्रबुद्ध दो !
नाम प्रीति रस भरी आंख में ऐसी दृष्टि दे दो राम !
नाम प्रीति रस भरी आंख में ऐसी दृष्टि दे दो राम !
दे दो राम ! दे दो राम ! अविरल भक्ति दे दो राम !
दे दो राम ! दे दो राम ! अतुलित शक्ति दे दो राम !
दे दो राम ! दे दो राम !
ऐसी भक्ति हो मेरे राम, सब में देखूं तुमको राम !
सब में देखूं तुमको राम, सब में देखूं तुमको राम !
ऐसी दृष्टि दो मेरे राम !
सब में देखूं तुमको राम, सब में पाऊं तुमको राम !
ऐसी दृष्टि हो मेरे राम ! सब में देखूं तुमको राम !
दे दो राम ! दे दो राम ! ऐसी दृष्टि दे दो मेरे राम !
सब में देखूं तुमको राम, सब में पाऊं तुमको राम !
नतमस्तक हो करूँ प्रणाम, सब में देख तुम्ही को राम !
नतमस्तक हो करूँ प्रणाम, सब में देख तुम्ही को राम !
दे दो राम ! दे दो राम ! अतुलित शक्ति दे दो राम !
दे दो राम ! दे दो राम ! अविरल भक्ति दे दो राम !
राम राम राम राम राम राम, राम राम राम राम राम राम !
मेरे राम मेरे राम मेरे राम मेरे राम मेरे राम मेरे राम !!
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प्रेरणा स्रोत : परम पूज्य श्री महाराजजी द्वारा गायी धुन
अयोध्या नगरी में रामलला के भुवन में पधारने की कोटिश बधाई।
सर्व विदित है कि सौभाग्यवश गुरुजन के गुरुमंत्र से, उनकी करुणा और कृपा से, उनके आशीर्वाद से मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरी हरेक सांस, मेरे हृदय की प्रत्येक धडकन, मेरा रोम रोम, मेरी शिराओं में प्रवाहित रक्त की एक एक बूंद, जो कुछ भी इस समय मेरे पास है वह सब ही "उनका" कृपा प्रसाद है । यदि उर्दू शायरों की जुबान में कहूँ तो शायद ऐसी तस्वीर बनेगी --
मुझको मुंदी नजर से ही सब कुछ दिखा दिया । तेरे खयाल ने मुझे तुझ से मिला दिया ।।
मुझको दिखा के चकित किया रंग सृष्टि का । आनंद भरा रूप प्रभु का दिखा दिया ।।
चेहरा राम का खेंच कर मन की किताब पर ।
मेरे हृदय को प्यार का गुलशन बना दिया ।।
मन मंदिर में अपने "प्यारे प्रभु" का विग्रह प्रतिष्ठित कर, बंद नेत्रों से "प्यारे" की छवि निरंतर निहारते हुए, सुध बुध खोकर "उनका" गुणगान करना, गीत संगीत द्वारा "उनकी" अनंत कृपाओं के लिए अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करना, यह है मेरा भजन कीर्तन ।